रे नृप बालक काल वश बोलत तो¨ह..
संवाद सूत्र, शिवली: होली पर्व के दूसरे दिन महाकलेश्वर मंदिर परिसर में धनुष यज्ञ लीला का मंचन
संवाद सूत्र, शिवली: होली पर्व के दूसरे दिन महाकलेश्वर मंदिर परिसर में धनुष यज्ञ लीला का मंचन हुआ। धनुष का कर्षण न हो पाने पर राजा जनक के विलाप से दर्शक भावुक हो गए। वहीं परशुराम व लक्ष्मण के बीच विद्वतापूर्ण तार्किक संवाद सुनकर रोमांचित हुए।
शनिवार को महाकालेश्वर धाम में शिव-उमा परिणय संस्कार समारोह सम्पन्न होने के बाद धनुष यज्ञ लीला का मंचन हुआ। धनुष न टूटने से व्यथित राजा जनक तजहुं आस निज निज ग्रह जाहू लिखा न विधि वैदेही विवाहू कहते हुए निराश हो जाते हैं। राजा जनक के विलाप से दर्शक भावुक हो गए। जनक ने अब जनि कोई माखै भट मानी वीर विहीन मही मैं जानी कहकर स्वयंवर में मौजूद राजाओं को झकझोर दिया। इसके बाद विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम ने धनुष उठा लिया, उनके द्वारा प्रत्यंचा चढ़ाते ही धनुष टूट गया। अजगव टूटने की गर्जना सुन महेन्द्राचल पर्वत पर तपस्या कर रहे महर्षि परशुराम सीधे मिथिला जा पहुंचे और राजा जनक से धनुष टूटने के बारे में पूछते हुए कहा कि कहु जड़ जनक धुनुष कै तोरा व बेगि दिखाव मूढ़ न तु आजू उलटहुं महि जह लग तव राजू । महर्षि परशुराम को भइया राम पर क्रोध करते देख लक्ष्मण ने व्यंग करते हुए कहा कि बहु धनुहीं तोरी लरिकाईं कबहुं न अस रिष कीन्ह गोसाईं जिसे सुन महर्षि परशुराम क्रोधित हो उठे। परशुराम व लक्ष्मण के बीच हुए विद्वता पूर्ण संवाद को सुन दर्शक रोमांचित रहे वहीं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा भ्रातृ प्रेम की प्रस्तुति देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए । इस मौके पर चेयरमैन शिवली अवधेश शुक्ल, बलदेव तिवारी, अनिल वर्मा, अविनाश मिश्रा, बाबू तिवारी मौजूद रहे।