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15 दिनों से बारिश नहीं, किसान परेशान

जागरण संवाददाता कानपुर देहात जिले में बीते 15 दिनों से बारिश नहीं हुई है। ऐसे में कि

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 12:24 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 12:24 AM (IST)
15 दिनों से बारिश नहीं, किसान परेशान
15 दिनों से बारिश नहीं, किसान परेशान

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : जिले में बीते 15 दिनों से बारिश नहीं हुई है। ऐसे में किसान धान व मक्का की फसल की सिचाई के लिए परेशान हैं। डीजल के दाम बढ़ने से नलकूप से सिचाई भी अब महंगी हो गई है। ऐसे में किसान चितित है कि पता नहीं लागत भी इस बार निकल पाएगी या नहीं। गर्मी व उमस से वैसे ही लोगों के हाल बेहाल हैं। अन्नदाता रोज बारिश की उम्मीद लगाते हैं, लेकिन बारिश न होने से निराशा हाथ लग रही है।

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गर्मी व तेज धूप ने खेतों की नमी को सुखा दिया है। इसके चलते खेतों में तैयार हो रही धान की फसल मुरझाने लगी है। दिन रात मेहनत कर बेहतर उपज का सपना संजोये किसानों के सपने टूटते दिखाई दे रहे हैं। इससे उनके चेहरों पर मायूसी के बादल छाने लगे हैं। ऐसे में फसल बचाने के लिए किसान अब नलकूप के सहारे फसल की सिचाई कर रहे। डीजल महंगा होने से अब सिचाई भी पहले के मुकाबले महंगी हो गई है। मक्का की फसल जिन्होंने पीछे बोई उन्हें भी अभी सिचाई की जरूरत है। सबसे अधिक जरूरत धान की फसल में है। पानी बिना फसल खराब होने का अंदेशा है। किसान राजेश कुमार, सुरेंद्र सिंह, बलवान सिंह, केवल सिंह, भगौती ने बताया कि आसमान से बारिश हो नहीं रही ऐसा यह पहली बार हो रहा है। धूप अधिक होने से सिचाई भी जल्दी जल्दी करनी पड़ रही, जिससे खेत में नमी बनी रहे। इससे फसल की लागत बढ़ रही है। पता नहीं अनाज बेचने से हमारी लागत निकल पाएगी या नहीं।

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क्या कहते हैं किसान

कई दिनों से बारिश न होने के कारण खेतों में तैयार हो रही धान की फसल मुरझाने लगी तो सिचाई के लिए निजी नलकूप संचालकों से संपर्क कर खेतों की सिचाई कराई। तीन दिन बाद खेत पर जाकर देखा तो पानी बिल्कुल सूख चुका था। पहली बार में करीब एक हजार रुपये प्रति बीघा खर्च आया।

दुर्विजय सिंह

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जिस तरह से कड़क धूप निकल रही है। इससे लगता है कि किसानों की धान की फसल तो पूरी तरह से चौपट हो जाएगी। 100 से 200 रुपये तक प्रति घंटा सिचाई का निजी नलकूपों में शुल्क है। जल्द बारिश न हुई तो समस्या बढ़ेगी।

कृष्ण कुमार

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महंगाई के कारण किसान दिन पर दिन गरीब और कर्जदार होता चला जा रहा है। बंबों और रजबहों में एक तो पानी नहीं रहता। कभी कभार आ भी जाए तो टेल तक पानी नहीं पहुंचता। फसल बचाने के लिए महंगी सिचाई करना मजबूरी हो गई है।

प्रह्लाद सिंह

धान की फसल बचाना वर्तमान में उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। सिचाई की मांग बढ़ने के कारण निजी नलकूप संचालक मनमानी पर उतारू हैं। बड़ी मुश्किल से पानी देने के लिए हामी भरते हैं। कुछ नलकूप वाले तो पहले ही रुपये जमा करा लेते हैं।

ओम प्रकाश


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