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World Music Day: सुर-संगीत का केंद्र रहा है कानपुर, रात भर सजती थी महफिल, जानिए- रोचक इतिहास

देश की आजादी के पहले से कानपुर में सुर-संगीत के आयोजन होते रहे हैं और देश भर के कलाकार प्रस्तुति देते थे। यहां रात भर महफिल सजती थी और हाल के बाहर चटाई लेकर श्रोता बैठकर आनंद लिया करते थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 10:49 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 10:49 AM (IST)
World Music Day: सुर-संगीत का केंद्र रहा है कानपुर, रात भर सजती थी महफिल, जानिए- रोचक इतिहास
कानपुर में बहा करती थी सुर-संगीत की धारा।

कानपुर, जेएनएन। उद्योग, व्यापार और कारोबार के लिए मशहूर कानपुर सुर, लय और ताल के लिए भी खासी पहचान रखता था। यहां साधना करके कलाकारों ने देश और दुनिया में नाम कमाया है। उनके गायन का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है। आज वे भले ही न हों, लेकिन उनके शार्गिद उनकी शैली को आगे बढ़ा रहे हैं। स्कूल, कालेज, धर्मशाला और यहां तक कि मंदिर में भी संगीत और वाद्य यंत्रों से रियाज होता था। शास्त्रीय संगीत के कई नामी कार्यक्रम आयोजित होते रहे, जिसमें नामी कलाकारों का जमघट लगता था। उनको सुनने के लिए लोगों में इस कदर दीवानगी थी कि श्रोता हाल के बाहर ही चटाई लेकर बैठ जाया करते थे। सारी रात कार्यक्रम चलता था। इनमें पंडित रविशंकर महाराज, विनायक राव पटवर्धन, बिरजू महाराज, पंडित जसराज, हर प्रकाश चौरसिया, सितारा देवी, किशन महाराज, सितारा देवी आदि शामिल हैं। 

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सबसे बड़ा संगीत का कार्यक्रम

स्मृति संस्था के संयोजक राजेंद्र मिश्रा बब्बू ने बताया कि शहर में नारायण दर्जी ट्रस्ट फूलबाग के केईएम हाल में छह दिवसीय शास्त्रीय संगीत की कांफ्रेंस आयोजित करते थे। इसका आयोजन धक्कू बाबू द्वारा होता था। यह वर्ष 1950 के आसपास शुरू हुआ था, जिसमें देश भर के कलाकार शामिल हुआ करते थे। इस समारोह के लिए कलाकार एक महीना पहले ही शहर में पहुंच जाते थे। यह संस्था 100 साल से अधिक पुरानी है। जन्माष्टमी के दिन से शुरू होकर छठी तक कार्यक्रम चलता था। यह उस जमाने का सबसे बड़ा संगीत कार्यक्रम होता था। राजेंद्र मिश्रा ने बताया कि उनके पिता मुन्नू बाबू भी संगीत के कार्यक्रम आयोजित कराते थे। कई नामी कलाकार उसमें शिरकत किया करते थे। उन्हीं की याद में आज भी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

कई घराने सिखाते थे संगीत

शहर के नामी संगीतकार संतू श्रीवास्तव बताते हैं कि आजादी के समय कानपुर में कई घराने थे, जिनका काम शास्त्रीय गायन की दीक्षा देना था। वह स्वयं उस्ताद युनुस मलिक और उस्ताद गुलाम मुस्तफा के शार्गिद रहे हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथों सम्मानित हो चुके संतू श्रीवास्तव ने बताया कि 1950 में शंकर श्रीपास वोडस महाराष्ट्र से शहर आए थे। उनके बेटे काशीनाथ शंकर वोडस और बेटी वीणा सहस्रबुद्धे थीं। इन्होंने संगीत के क्षेत्र में काफी नाम कमाया। रामपुर घराने के गुलाम मुस्तफा, साबिर खान, जाकिर हुसैन, हाफिज मियां कानपुर में रहते थे। युनुस मलिक प्रयागराज से आए। उनका स्कूल रामनारायण बाजार के पास चलता था। भीष्म देव वेदी भी कानपुर में रह रहे थे। डीएवी कालेज के प्रो. ठाकुर जयदेव ङ्क्षसह ने भी शास्त्रीय संगीत में काफी योगदान दिया।

इन संस्थाओं ने बढ़ाया मान

संतू श्रीवास्तव के मुताबिक डीएवी कालेज के इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रो. सत्यमूर्ति की दर्पण संस्था, रमेश बरौलिया की कला नयन, डा. रमेश श्रीवास्तव की कानकार्ड संस्था ने भी शास्त्रीय संगीत का मान बढ़ाया है। इसके आयोजन में कई कलाकार आते रहे हैं।


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