world museum day 2020: चौथी सदी के सिक्के और दुर्लभ तस्वीरें देखनी हैं तो बिठूर संग्राहलय जरूर जाइए
बिठूर का संग्राहलय कानपुर के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का इतिहास समेट है।
कानपुर, जेएनएन। वह धरती जो धामक और ऐतिहासिक दोनों ही महत्व की है, उसके बीच में मौजूद है इतिहास को दर्शाने वाला बिठूर संग्रहालय। इस संग्रहालय के आसपास, जहां सीता रसोई, ब्रह्मा खूंटी, ध्रुव टीला जैसे धार्मिक स्थल मौजूद हैं, वहीं संग्रहालय के अंदर 1857 के गदर की यादें आज भी उस समय की तस्वीर आंखों के सामने से गुजार देती हैं। अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने वाले नाना साहब, तात्याटोपे और अजीमुल्लाह खां की फोटो संग्रहालय की शान हैं तो भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय का फोटो भी यहां मौजूद हैं।
कानपुर का संग्रहालय पहले फूलबाग स्थित गांधी भवन में था लेकिन, कानपुर का असली इतिहास बिठूर में है। इसके चलते ही वर्ष 2005 में नानासाहब पेशवा स्मारक पार्क में कानपुर संग्रहालय को पूरी तरह से स्थानांतरित कर दिया गया। कानपुर का यह संग्रहालय अपने आप में गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है। यहां भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के क्षण की दुर्लभ फोटो मौजूद हैं।
बिठूर का इतिहास जितना पुराना है उतना ही गौरवमयी भी है। बिठूर की धरती 1857 की क्रांति की धरती है। यहां नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे और अजीमुल्लाह खां ने अंग्रेजों को बुरी तरह छकाया था। इन सभी की फोटो व उनका इतिहास संग्रहालय में संरक्षित हैं। कानपुर की स्पेलिंग बार बार बदली गईं। पहली बार से आजतक कानपुर को किस-किस तरह लिखा गया, वह भी यह सुरक्षित है।
सिर्फ इतना ही नहीं कुषाण दंश के सिक्के, अंग्रेजों की तलवारें, बाबर काल के पत्र, तात्या टोपे के खंजर जैसी निशानियां भी संग्रहालय में हैं। यहां दर्शकों को चौथी सदी तक के सिक्के देखने को मिल जाएंगे। 1857 की क्रांति का इतिहास रचने वाले तात्या टोपे के परिवार की रिहाई का परवाना 28 फरवरी 1858 में हुआ था, यह परवाना आज भी संग्रहालय में संरक्षित है। इसके साथ ही उस समय के अस्त्र-शस्त्र भी मौजूद हैं।