जब नहीं था हाथ में पैसा तब काम आया सोना, गहने गिरवी रख कर बचाई अपनों की जान
उपहार स्वरूप मिले और छोटी-छोटी बचत करके महिलाएं सोने के गहने की खरीदारी करती रहती हैं। अपनों की जान बचाने की मजबूरी में बहुत सी महिलाओं ने सोने के जेवर गिरवी रख दिए तो कुछ ने बेचना उचित समझा।
कानपुर, जेएनएन। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को गहने रखने की परंपरा रही है, इसकी वजह भले ही सुंदरता बढ़ाना माना जाता हो लेकिन असल में बुरे वक्त का साथी भी रहा है। आपत्ति-विपत्ति और खास जरूरत के समय ये गहने मददगार भी बनते रहे हैं। कोरोना संक्रमण काल में यही सोना तब काम आया जब हाथ पैसों से तंग हो गया और गहने गिरवीं रखकर अपनों की जान बचाने में मददगार बने।
उपहार स्वरूप मिले और छोटी-छोटी बचत करके महिलाएं सोने के गहने की खरीदारी करती रहती हैं, जिनकी जानकारी अक्सर घर के लोगों को भी नहीं रहती है। महिलाओं को जेवर बहुत अधिक प्रिय होते हैं लेकिन अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को चपेट में लेना शुरू किया और एक-एक घर में ही चार-पांच तक मरीज हो गए। अस्पताल और नर्सिंग होम बिना नकदी जमा कराए इलाज को तैयार नहीं थे। तीमारदारों के पास ना तो उनकी मांग पूरी करने लायक नकदी थी न ही बैंक में इतनी रकम जमा थी। ऐसे में अपनों की जान बचाने की मजबूरी में बहुत सी महिलाओं ने सोने के जेवर गिरवी रख दिए तो कुछ ने बेचना उचित समझा।
13 अप्रैल के बाद शहर में रोज एक हजार से ज्यादा रोगी रोज निकलने लगे। यह संख्या चार मई तक जारी रही। इस 22 दिन के दौरान शहर के लोगों ने वह सबकुछ देखा जो उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। कई परिवार तो ऐसे थे जहां सभी बीमार हो गए और एकदूसरे की देखभाल करने वाले तक नहीं थे। अस्पताल में भर्ती करने के पहले ही नर्सिंग होम इतनी लंबी रकम जमा करा रहे थे कि लोगों की हालत खराब हो रही थी। जिनके लक्षण कोरोना के थे और पाजिटिव नहीं थे, उन्हें कोविड अस्पताल भर्ती नहीं कर रहे थे। नॉन कोविड अस्पतालों ने इन्हें भर्ती करने के नाम पर कई-कई लाख वसूल लिए। तीमारदार को तो अपने मरीज को बचाना था फिर वह चाहे उसकी रिपोर्ट पाजीटिव आई हो या निगेटिव। कोरोना काल के दौरान शहर में रोज ही करीब एक हजार लोगों ने सोना गिरवी रखकर लोन लिया।
पिछले वर्ष सबसे ज्यादा गोल्ड लोन
सराफा कारोबारियों के मुताबिक पिछले वर्ष लॉकडाउन खुलने के बाद ज्यादा लोगों ने गोल्ड लोन लिया था या अपने जेवर गिरवी रखे थे क्योंकि उस समय काम बंद हो गए थे। लोगों के पास धन नहीं था। हालांकि लोग इतनी बड़ी संख्या में बीमार नहीं थे लेकिन लोगों के पास परिवार का पालन करने के लिए पैसा नहीं था। जितना सोना लोग छह माह में गिरवी रखते थे, उतना लोगों ने एक माह में गिरवी रखा था।
इस तरह कंपनियां देती गोल्ड लोन
गोल्ड पर लोन लेने के लिए व्यक्ति को अपनी एक आइडी लानी होती है। साथ में सोना होना जरूरी है। सोने को चेक कराया जाता है। इसके बिक्री मूल्य का 75 फीसद तक लोन दिया जाता है। सामान्यतौर पर यह अवधि 12 माह के लिए होती है। इसे आगे बढ़ाना होता है तो उसका नवीनीकरण कर दिया जाता है। बमुश्किल आधे से पौन घंटे में ये गोल्ड लोन बैंक खाते में या कैश मिल जाता है।
जनवरी से मार्च के बीच सबसे ज्यादा गोल्ड लोन
गोल्ड कंपनी के अधिकारी बताते हैं कि जनवरी से मार्च में हर साल सबसे ज्यादा गोल्ड लोन लोग लेते हैं क्योंकि इस दौरान आयकर की कटौती होती है और वेतन बहुत कम ही मिलता है। इसलिए ज्यादातर अच्छे वेतन वाले इस मौके पर गोल्ड लोन लेते हैं जिसे वे बाद में चुका देते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सामान्य दिनों में कारोबारी गोल्ड लोन ज्यादा लेते हैं। वे माल मंगाने के लिए लोन लेते हैं और माल बेचने के बाद भुगतान कर गोल्ड वापस ले लेते हैं लेकिन इस समय कोई कारोबार नहीं चल रहा है। इसलिए दो तरह के लोगों ने ही जेवर रखकर लोन लिये हैं। एक वे हैं जो किसी इमरजेंसी का सामना कर रहे थे, दूसरे दवा व्यापारी जिन्हें इस मौके पर ज्यादा से ज्यादा दवाएं खरीदनी थीं। इमरजेंसी में लोन लेने वालों की संख्या 25 फीसद से ज्यादा बढ़ी। - नवीन कुमार शुक्ला, सहायक प्रबंधक, मुथुट फाइनेंस।
पिछले वर्ष ज्यादा लोगों ने जेवर गिरवी रखे थे। इस बार लोग संक्रमण बढ़ते ही इसके लिए तैयार थे। इसलिए घर चलाने के लिए तो रुपये की जरूरत नहीं रही लेकिन जिस तरह से नर्सिंग होम में लोगों को रुपये जमा करने पड़े, उसके हिसाब से लोगों ने अपने जेवर भी अलग-अलग जगह गिरवी रखे और जिन्हें लगा कि वे रुपये लौटा नहीं पाएंगे उन्होंने जेवर बेच ही दिए। - राम किशोर मिश्रा, सचिव, यूपी सराफा एसोसिएशन।