Bikru Case Update: विकास दुबे से सीधे नहीं थे कोई संबंध, पर्यवेक्षण में लापरवाही के दोषी पाए गए चार सीओ
बिकरू कांड के बाद जांच कर रही एसआइटी ने गैंगस्टर विकास दुबे से संबंधों को लेकर 11 सीओ दोषी पाया था। अभी तक की जांच में चार सीओ के खिलाफ सीधे संबंधों के साक्ष्य नहीं मिले हैं। अब उनपर दंड का निर्धारण किया जाएगा।
कानपुर, जेएनएन। बिकरू कांड को लेकर गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) की जांच में आरोपित बनाए गए क्षेत्राधिकारियों के विकास दुबे से सीधे कोई संबंध नहीं थे। हालांकि सभी पर्यवेक्षण में लापरवाही के दोषी हैं। यह निष्कर्ष निकाला है बिकरू कांड के आरोपित पुलिसकर्मियों की जांच कर रहे एडीसीपी डॉ. अनिल कुमार ने। जल्द ही वह अपनी रिपोर्ट एडीजी, कानपुर जोन को सौंप देंगे, जिसके बाद आरोपित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दंड का निर्धारण किया जाएगा।
दो जुलाई 2020 को बिकरू में दबिश डालने गई पुलिस टीम पर विकास दुबे व उसके गुर्गों ने हमला बोल दिया था। ताबड़तोड़ गोलीबारी में सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इस संबंध में बाद में सामने आया कि विकास को जरायम की दुनिया में स्थापित करने में पुलिस और प्रशासन के लोगों की भी भूमिका थी। शासन ने इसकी जांच के लिए वरिष्ठ आइएएस संजय भूसरेड्डी के नेतृत्व में एसआइटी गठित की थी। एसआइटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में 11 सीओ और 37 पुलिस कॢमयों को विकास दुबे का साथ देने का आरोपित माना था।
आरोपित क्षेत्राधिकारियों नंदलाल (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), करुणाकर राय (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), सुंदरलाल (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), प्रेमप्रकाश (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), रामप्रकाश अरुण (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), सुभाषचंद्र शाक्य (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), लक्ष्मीनिवास (तत्कालीन सीओ बिल्हौर), अमित कुमार (तत्कालीन सीओ कार्यालय, पासपोर्ट), हरेंद्र कुमार यादव, (तत्कालीन सीओ सीसामऊ) और बृजेन सिंह (तत्कालीन सीओ बिल्हौर) की जांच तत्कालीन एसपी पश्चिम डॉ.अनिल कुमार को दी गई थी चूंकि सुभाषचंद्र शाक्य प्रोन्नत होकर आइपीएस हो गए हैं, इसलिए उनकी जांच तत्कालीन डीआइजी डॉ.प्रीतिंदर सिंह को दे दी गई थी। बाकी बचे नौ सीओ में से चार पहले ही रिटायर हो चुके हैं।
सूत्रों के मुताबिक डा. अनिल कुमार की जांच भी पूरी हो गई है। अपनी जांच में उन्होंने माना है कि शस्त्र लाइसेंस पर सीओ की संस्तुति नीचे से लगी रिपोर्ट के आधार पर होती है। सीओ कार्यालय में अपराधियों से संबंधित कोई रिकार्ड भी नहीं रहता है। ऐसे में सीधे तौर पर कोई सीओ दोषी नहीं है, मगर उन्होंने पर्यवेक्षण में लापरवाही जरूर की है। चूंकि पांच सीओ सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इसलिए उन्हेंं कोई दंड नहीं दिया जा सकता। बाकी बचे चार को पर्यवेक्षण में दोषी होने का आरोपित मानते हुए दंड निर्धारण की संस्तुति की गई है। दंड निर्धारण एडीजी स्तर से किया जाएगा।