कोरोना के प्रोटोकाल को देखते हुए उर्स व जलसों में एकत्र होने की जगह ऑनलाइन जुडऩे पर दिया गया जोर
भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखाया है। तंजीम बरेलवी उलमा अहले सुन्नत के अध्यक्ष हाफिज फैसल जाफरी ने कहा कि हजरत बंदा नवाज गेसू दराज की पैदाइश लगभग साढ़े छह सौ साल पहले अरबी महीने रजब की सात तारीख को 781 हिजरी में हुई।
कानपुर, जेएनएन। कोरोना काल में भले ही कुछ राहत मिली हो लेकिन संक्रमण बढऩे का आशंका भी बनी हुई है। ऐसे में उर्स व जलसों में लोगों की बुलाने की बजाय उनसे ऑनलाइन जुडऩे पर जोर दिया जा रहा है। उर्स में कुछ लोग शामिल हो रहे है बाकि घरों पर ही रहकर इसमें शिरकत कर रहे हैं।
सूफी चिश्ती सिलसिले के बुजुर्ग ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज का उर्स अकीदत के साथ मनाया गया। चमनगंज में हुए उर्स के दौरान काफी लोगों ने ऑनलाइन शिरकत की। इस दौरान सूफियों की जिंदगी पर रोशनी डाली गई तथा उनका अनुसरण करने की अपील की गई। उलमा ने कहा कि सूफियों ने इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम दिया है।
भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखाया है। तंजीम बरेलवी उलमा अहले सुन्नत के अध्यक्ष हाफिज फैसल जाफरी ने कहा कि हजरत बंदा नवाज गेसू दराज की पैदाइश लगभग साढ़े छह सौ साल पहले अरबी महीने रजब की सात तारीख को 781 हिजरी में हुई। हजरत बंदा नवाज कुरआन शरीफ के हाफिज होने के साथ आलिम भी थे। वे चिश्ती सूफी सिलसिले के बुजुर्ग हजरत नसीरुद्दीन चिराग देहलवी के मुरीद हो गए। उलमा ने बताया कि हजरत बंदा नवाज शरीयत और तरीकत के पाबंद थे। उन्होंने अपने मुर्शीद (गुरु) की 17 साल सेवा की। बाद मेें वे कर्नाटक के गुलबर्गा चले गए। उनकी मजार वहीं पर बनी है। उनकी मजार पर सैकड़ों अकीदतमंद पहुंचते हैं। उर्स में कोरोना से निजात व देश में खुशहाली की दुआ की गई। तबर्रुक भी बांटा गया। इस दौरान हाफिज इरफान कादरी, हयात जफर हाशमी, मोहम्मद इलियास गोपी, मोहम्मद ईशान, मोहम्मद मोईन जाफरी आदि रहे।