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सिकंदरा विधानसभा सीट : यहां बाहरियों का चमका मुकद्दर और बने सिकंदर, पहले राजपुर नाम से थी पहचान

कानपुर देहात की सिकंदरा विधानसभा सीट 2011 से पहले राजपुर के नाम से जानी जाती थी । परिसीमन के बाद भी यहां का समीकरण नहीं बदला और हमेशा की तरह यहां पर बाहरी नेताओं की किस्मत चमकती रही।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 04:56 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 04:56 PM (IST)
सिकंदरा विधानसभा सीट : यहां बाहरियों का चमका मुकद्दर और बने सिकंदर, पहले राजपुर नाम से थी पहचान
कानपुर देहात की राजपुर बन गई सिकंदरा विधानसभा सीट।

कानपुर, चुनाव डेस्क। यमुना के बीहड़ पट्टी क्षेत्र व चर्चित बेहमई कांड के कारण चर्चित कानपुर देहात की सिकंदरा विधानसभा सीट (पहले राजपुर सीट) की राजनीति में ज्यादातर स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई रही है। ज्यादातर बाहरियों का ही पलड़ा भारी रहा। आजादी के बाद जब अधिकांश जगह कांग्रेस का बोलबाला रहा तो यहां की जनता ने अर्जक संघ की स्थापना करने वाले रामस्वरूप वर्मा पर वर्षों तक अपना प्यार लुटाया। राजपुर विधानसभा क्षेत्र के नाम से पहचान रखने वाली यह सीट परिसीमन में वर्ष 2011 से सिकंदरा के नाम से हो गई तो भी बाहरी ही यहां 'सिकंदर' बनकर निकले। चारुतोष जायसवाल की रिपोर्ट...।

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मुगल रोड किनारे जैनपुर स्थित हनुमान मंदिर यहां आस्था का केंद्र्र है। इस चौखट पर बिना मत्था टेके कोई भी प्रत्याशी अपना चुनाव में न नामांकन करता है, न प्रचार शुरू करता है। इन दिनों सर्दी के साथ चुनावी मौसम में यहां आम लोगों के साथ ही खादीधारियों का जमावड़ा लग रहा है। कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता दिखाई पड़ रहे हैं, जो शायद दावेदारों के लिए टिकट व जीत की आस लगा कामना कर रहे। मुगल रोड किनारे ही रहने वाले बुजुर्ग राधेश्याम दुकान के बाहर चुनावी चर्चा करते मिल गए। बताने लगे, अब तो आए दिन नेताओं की गाड़ी मंदिर की तरफ जाती नजर आ रही है। इतने चुनाव देख लिए लेकिन, यहां के स्थानीय नेताओं की किस्मत में तो लगता है कि संघर्ष ही लिखा है। बाहर के नेता जीतते रहते हैं। पहले चेहरे की लड़ाई होती थी लेकिन, बाद में पार्टी की लड़ाई होने लगी। यहां से आगे प्रमुख कस्बा राजपुर पहुंचे।

समाजसेवी राजाराम कुशवाहा चुनावी चर्चा छेडऩे पर पुराने दिनों को याद करने लगे। बोले, वर्ष 1957 से लेकर 1991 तक के दौर में यहां के गौरीकरन गांव के रामस्वरूप वर्मा कभी निर्दलीय तो कभी शोषित समाज दल के टिकट पर जीते और छह बार विधायक बने। इसके बीच 1977 में रनियां से आए अश्विनी कुमार स्थानीय नेताओं पर भारी रहे और जीते। वर्ष 1985 में कानपुर के सजेती से आए चौधरी नरेंद्र सिंह कांग्रेस से यहां जीत गए। वर्ष 1991 के बाद से तो जैसे बाहरी प्रत्याशियों के लिए यहां लाटरी खुल गई। वर्ष 1993 में चौधरी नरेंद्र सिंह फिर विधायक बने। वर्ष 1996 में वह बसपा में शामिल हो गए और उपचुनाव भी जीत गए। 2002 में अकबरपुर के गुजराई निवासी महेश त्रिवेदी एक पार्टी में सक्रिय थे। वहां टिकट न मिला तो निर्दलीय लड़ गए। जनता स्थानीय प्रत्याशी के बजाय फिर बाहरी पर रीझ गई और महेश भी जीत गए। आगे बढऩे पर सिकंदरा के पटेल चौक पहुंचे जो कई राजनीतिक सभाओं, चुनावी चौपालों का गवाह रहा है। यहां शिक्षाविद प्रभुशंकर स्वर्णकार बताने लगे, वर्ष 2011 में यह सीट इटावा लोकसभा में परिसीमन के तहत शामिल कर ली गई और नाम राजपुर से बदलकर सिकंदरा पड़ गया। क्षेत्र बंटने से लगा कि अब शायद स्थानीय भारी रहेगा लेकिन, 2012 में औरैया से आए बसपा के इंद्रपाल जीत गए।

उन्होंने भाजपा के देवेंद्र सिंह भोले को मामूली अंतर से हराया। इस चुनाव में औरैया से कमलेश पाठक भी आए और तीसरे स्थान पर रहे। स्थानीय प्रत्याशी चौथे और पांचवें स्थान पर चले गए। 2017 के चुनाव में अकबरपुर के मथुरा पाल भाजपा से जीत गए, उनसे हारने वाले महेंद्र कटियार भी अकबरपुर से थे। बीमारी के चलते मथुरा पाल के निधन के बाद उनके बेटे अजीत पाल जीते और सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रानिक मंत्री बने। यहां के व्यापारी सुरेश सिंह, आदर्श पोरवाल कहते हैं कि इस बार के चुनाव में लड़ाई फिर बाहरी प्रत्याशियों के बीच में है। तीन प्रमुख पार्टियों के दावेदार इस विधानसभा क्षेत्र के निवासी ही नहीं हैं।

वित्तमंत्री बनकर रामस्वरूप वर्मा ने लाभ का बजट किया था पेश : वर्ष 1967 में चौधरी चरण सिंह की सरकार में यहां के विधायक रामस्वरूप वर्मा वित्तमंत्री थे। आज जहां घाटे का बजट सरकारों में पेश होता है, तब पहली बार उन्होंने 20 करोड़ रुपये लाभ का बजट पेश कर सभी को हैरान कर दिया था। उनके अर्थशास्त्र की हर तरफ तारीफ हुई थी। बाद के चुनावों में दो बार निर्दलीय जीतने वाले रामस्वरूप वर्मा अर्जक संघ की स्थापना कर 1989 और 1991 में जीते।

सिकंदरा विधानसभा सीट के चुनाव

1952 : रामस्वरूप गुप्ता : कांग्रेस

1957 : रामस्वरूप वर्मा : सोशलिस्ट पार्टी

1962 : राजनारायण मिश्रा : कांग्रेस

1967: रामस्वरूप वर्मा : सोशलिस्ट पार्टी

1969 : रामस्वरूप वर्मा : निर्दलीय

1974 : रणधीर सचान : सोशलिस्ट पार्टी

1977 : अश्विनी कुमार : जनता पार्टी

1980 : रामस्वरूप वर्मा : निर्दलीय

1985 : चौधरी नरेंद्र सिंह : कांग्रेस

1989 : रामस्वरूप वर्मा : अर्जक संघ (शोषित समाज दल)

1991 : रामस्वरूप वर्मा : अर्जक संघ (शोषित समाज दल)

1993 : चौधरी नरेंद्र सिंह : किमबपा

1996 : चौधरी नरेंद्र सिंह : बसपा

2002 : महेश त्रिवेदी निर्दलीय

2007 : मिथिलेश कटियार बसपा

2012 : इंद्रपाल बसपा

2017 : मथुरा पाल भाजपा

2017 : अजीत पाल भाजपा


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