फ्लैश बैक : हिलौली से चलती है पुरवा की राजनीति में पुरवाई, जानिए कैसे आठ बार एक ही जगह से चुना गया विधायक
उन्नाव जिले का पुरवा विधानसभा क्षेत्र है में हिलौली ब्लाक ज्यादा भारी रहा है। कहा जाने लगा कि पुरवा की राजनीति में पुरवाई हिलौली से ही बहती है। आजादी के बाद से अब तक चुनावों में हिलौली ने इस विधानसभा सीट पर 50 साल से अधिक कब्जा रखा।
कानपुर, चुनाव डेस्क। आइए आज आपको ले चलते हैं ऐसे विधानसभा क्षेत्र से परिचय कराने, जहां की राजनीतिक कहानी बड़ी दिलचस्प है। विधायकी के ताज पर अधिपत्य की लड़ाई दो ब्लाकों के बीच छिड़ी रही। यह उन्नाव जिले का पुरवा विधानसभा क्षेत्र है, जहां की राजनीतिक लड़ाई में हिलौली ब्लाक ज्यादा भारी रहा है। कहा जाने लगा कि पुरवा की राजनीति में पुरवाई हिलौली से ही बहती है। आजादी के बाद से अब तक चुनावों में हिलौली ने इस विधानसभा सीट पर 50 साल से अधिक कब्जा रखा। इसमें भी हिलौली ब्लाक के एक गांव का वर्षों तक दबदबा रहा। यहां की राजनीतिक उठापटक पर अनिल अवस्थी की रिपोर्ट...
द्वापर कालीन बिल्लेश्वर महादेव मंदिर... यह पुरवा विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी पहचान है। पौराणिक इतिहास समेटे पुरवा के राजनीतिक इतिहास की भी बड़ी विशेषता है। यहां का हिलौली ब्लाक किसी राजनीतिक मठ से कम नहीं, जिसके प्रति आस्था से पुरवा की राजनीति लंबे समय तक चलती रही। इतना कहते ही इस क्षेत्र के भ्रमण के दौरान मिले अटवा गांव के निवासी 95 वर्षीय डा. प्रेम नारायण मिश्र ने यादों में करीने से संजोए यहां के चुनावी इतिहास के पन्नेे खोलने शुरू कर दिए। बताने लगे, सही मायने में इस क्षेत्र की राजनीति का केंद्र हिलौली ब्लाक ही केंद्र रहा है। 1952 से अब तक यानी 70 में 53 वर्षों तक हिलौली से संबंध रखने वाला ही यहां विधायक बना है। इसमें भी 1984 से 2017 तक लगातार 34 वर्षों तक एक ही ग्राम सभा लउवा सिंघन खेड़ा ने अलग-अलग चेहरों के साथ विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। 1952 में गठित पहली विधानसभा से लेकर अब तक हुए चुनावों में हिलौली का पुरवा सीट पर दबदबा रहा है। कांग्रेस से रामधीन यादव यहां सबसे पहले विधायक बने। 1957 में निर्दलीय परमेश्वरदीन वर्मा और 1962 में पुन: रामधीन यादव को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। 1967 में असोहा ब्लाक के लाखन धोबी ने हिलौली क्षेत्र के एकाधिकार के मिथक को तोड़ा था। उसके बाद 1969, 1974, 1977 और 1980 तक क्रमश: दुलारे लाल, गया सिंह, चंद्रभूषण व पुन: गया सिंह ने चुनावी बाजी जीतकर हिलौली के सिर विधायकी का ताज नहीं सजने दिया। इस दौरान 1974 और 1980 में पुरवा ब्लाक को भी प्रतिनिधित्व का मौका मिला। 1984 के चुनाव में हृदय नारायण दीक्षित के विधायक निर्वाचित होते ही हिलौली पुन: चर्चा में आ गया। उसके बाद से हिलौली अब तक पुरवा की राजनीतिक धुरी में रहा है। 1984 से 93 तक लगातार चार बार हृदय नारायण दीक्षित और उसके बाद उनके पड़ोसी गांव के उदयराज यादव 1996 से 2012 तक विधायक रहे। 2017 में इसी ब्लाक के अनिल सिंह को सफलता मिली।
34 वर्षों तक लउवा गांव रहा वीवीआइपी
17 विधानसभा चुनावों में हिलौली ब्लाक ने 12 बार अगुवाई की। इसी ब्लाक की ग्राम सभा लउवा सिघन खेड़ा के हृदय नारायण दीक्षित और उदयराज यादव चार-चार बार विधायक निर्वाचित हुए और 34 वर्षों का रिकार्ड बनाया।
टिकट में भी मिली तरजीह
सपा ने 1993 से लेकर 2017 तक हिलौली को तरजीह दी। 1993, 1996 में हृदय नारायण और 2002, 2007 व 2012, 2017 में उदयराज यादव को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने 1989 में धरम प्रकाश श्रीवास्तव, 1991 व 1993 में केडी शुक्ला, 1996, 2002, 2007 में हृदय नारायण दीक्षित को और 2012 में अमरनाथ लोधी को प्रत्याशी बनाया। बसपा ने 1989, 1991 में हरीशंकर यादव, 2002 में केडी शुक्ला, 2007 में पारा के डा. शाहिद हुसैन और 2017 में अनिल सिंह को प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने 1952, 1957, 1962 में रामधीन यादव, 2007 में केडी शुक्ला को प्रत्याशी बनाया।
पुरवा में कब कौन रहा विधायक
1952- रामधीन यादव (हिलौली)
1957- परमेश्वर दीन वर्मा (हिलौली)
1962- रामधीन यादव (हिलौली)
1967- लाखन (असोहा)
1969- दुलारेलाल (असोहा)
1974- गया सिंह (पुरवा)
1977- चंद्रभूषण (नवाबगंज)
1980- गया सिंह (पुरवा)
1984- हृदय नारायण दीक्षित (हिलौली)
1989- हृदय नारायण दीक्षित (हिलौली)
1991- हृदय नारायण दीक्षित (हिलौली)
1993- हृदय नारायण दीक्षित (हिलौली)
1996- उदयराज यादव (हिलौली)
2002- उदयराज यादव (हिलौली)
2007- उदयराज यादव (हिलौली)
2012-उदयराज यादव (हिलौली)
2017- अनिल सिंह (हिलौली)