उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनाव से पहले ही शुरू हुआ सियासी रस्साकशी का क्रम
भगवाधारी तलाश रहे नया ठिकाना। बुआ और भतीजे में तो शह-मात का खेल शुरू हो ही चुका है। अछूता भगवा दल भी नहीं है। बिहार और सूबे में उप चुनाव का परिणाम देखने के बाद अब दोनों दल और दलों के मुखिया उलझन में हैं ।
कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। 2022 के चुनावी संग्राम को भले एक साल से अधिक का वक्त हो पर सियासी दलों में मोर्चेबंदी के लिए मंथन शुरू होने के साथ ही शह और मात का खेल भी शुरू चुका है। बुआ और भतीजे में तो शह-मात का खेल शुरू हो ही चुका है। अछूता भगवा दल भी नहीं है, उसके माननीय भी नए ठिकाने तलाशने में लगे हैं। 2017 में दूसरे दलों से आकर शहर के साउथ की प्रतिष्ठा वाली सीट और शहर के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र को मोदी लहर में फतह करने वाले माननीय सैफई वाले भइया से उप चुनाव से पहले भेंट कर चुके हैं, एक ने उनसे भोगनीपुर तो दूसरे ने जीती सीट पर ही टिकट की ख्वाहिश जताई। उन्होंने हामी तो भरी, पर शर्त रख दी कि साइकिल की सवारी करनी है तो अभी सवार हो जाएं, ऐन चुनाव से पहले सम्भव न होगा। बिहार और सूबे में उप चुनाव का परिणाम देख अब दोनों उलझन में हैं कि करें तो करें क्या।
भतीजे की शादी में सूट की फरमाइश
नगर निगम बोर्ड के सबसे वरिष्ठ सदस्य के पुत्र की शादी की तैयारियों की आजकल साथी पार्षदों में खूब चर्चा है। सभी को शादी का कार्ड भी बंट चुका है। न्योता मिलने के बाद से सभी पार्षद बरात की तैयारी में जुटे थे उसके बीच किसी ने शरारतन एक सूचना लीक कर दी। उसके बाद से पुत्र की शादी की तैयारी में लगे पार्षद की जान मुश्किल में है। दरअसल मिष्ठान के साथ न्योता देने गए पार्षद से मौसी ने डिमांड रख दी कि क्योंकि वह उनकी बहन हैं तो उनके समेत बहनोई को नेग स्वरूप शादी के लिए वस्त्र भी भेंट करने होंगे। शिष्टाचार के नाते उन्होंने हामी भर दी। ये जानकारी लीक होने के बाद से पार्षद बरात में पहन कर आने के लिए सूट की डिमांड कर रहे हैं। साथ ही धमका भी रहे हैं कि नहीं मिला तो सभी स्वच्छता कर्मी के परिधान में आकर द्वारचार के दौरान सफाई बंदोबस्त संभालेंगे।
फुस्स हो गया साहब का पटाखा
दीपावली से एक माह पहले से धूम-धड़ाका के कारोबारियों का संगठन मनचाहे लोगों को ही लाइसेंस दिलाने की कवायद में लग गया था। लाइसेंस आवेदकों में दो और नाम बढऩे पर मोनोपॉली पर संकट आ गया। तमाम उठापटक के बाद रास्ता निकाला गया कि संख्या न बढ़ाने के तर्क के साथ बीते साल वालों की सूची पर ही आदेश करा लिया जाए। सेवा से खुश पुलिस और प्रशासन के मुखिया के नायब ने मुराद पूरी कर ही दी थी कि एक आवेदक के पक्ष में तगड़ी पैरवी शुरू हो गई। वर्दी वाले नायब ने बात बिगड़ते देखी तो खुद की हामी दे दी, पर प्रशासन के नायब अड़ गए। दरअसल सेवा ही इसलिए हुई कि संख्या संगठन के माफिक रहे। सत्ता से जुड़े लोगों के भी दखल पर कनिष्ठ अफसर को फाइल सौंप दी गई। कोई फैसला होता उससे पहले एनजीटी की बंदिश ने दोनों नायबों की मशक्कत पर पानी फेर दिया।
साहब को चाहिए बड़ा बंगला
शहर को सजाने संवारने वाले महकमे में दो अफसरों के बीच बंगले की रस्साकसी पर खूब मजे लिए जा रहे हैं। दरअसल विभाग के तकनीकी इकाई के मुखिया के सेवानिवृत्त होने के बाद उनके बड़े बंगले को पाने के लिए महकमे के मुखिया के नायब के नायब जुगाड़ में लग गए। दरअसल पद के लिहाज से दोनों ही अधिकारी समकक्ष हैं, पर उनके आवासों में बड़ी असमानता है। तकनीकी इकाई के मुखिया के लिए आवंटित बंगला एडमिन के छोटे साहब के आवास से बड़ा और आलीशान है। उसके खाली होने पर छोटे साहब को अपने रुतबे के हिसाब से बंगला मुफीद लगा, पर तकनीकी इकाई के मुखिया उनकी कवायद में रोड़ा बन गए। वह किसी भी सूरत में अपने पदनाम को आवंटित बंगले से दावा छोडऩे को तैयार नहीं हैं। ऐसे में दोनों के बीच की रस्साकसी मातहतों में मौज का विषय बनी हुई है।