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सूबे की ढाई हजार कंपनियों ने नहीं जमा किया एक लाख कर्मचारियों का पीएफ Kanpur News

ईपीएफओ का पीएफ जमा न करने वाली 2424 कंपनियों को नोटिस सरकारी विभागों को संविदा कर्मचारी देने वाली कंपनियां भी शामिल।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 11:43 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 11:43 PM (IST)
सूबे की ढाई हजार कंपनियों ने नहीं जमा किया एक लाख कर्मचारियों का पीएफ Kanpur News
सूबे की ढाई हजार कंपनियों ने नहीं जमा किया एक लाख कर्मचारियों का पीएफ Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए दी गई भविष्य निधि सेवा के साथ सेवा प्रदाता ही खिलवाड़ कर रहे हैं। कर्मचारियों का पीएफ अंशदान न जमा करने पर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने सख्ती दिखाकर नोटिस जारी करना शुरू किया तो उत्तर प्रदेश के एक चौथाई जिलों में ढाई हजार कंपनियां ऐसी निकलीं, जिन्होंने अपने कर्मचारियों का पीएफ अंशदान ही नहीं जमा किया। इनमें केवल निजी ही नहीं, सरकारी विभागों में संविदा कर्मचारी मुहैया कराने वाली सेवा प्रदाता कंपनियां भी शामिल हैं।

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पीएफ के दायरे में आने वाली हर कंपनी को अपने कर्मचारियों का पीएफ अंशदान उसी माह जमा करना होता है। ईपीएफओ पीएफ जमा न करने वाली कंपनियों को दो श्रेणी में रखता है। एक वह जिन्होंने एक महीने का पीएफ नहीं जमा किया। दूसरी श्रेणी वह, जिसमें दो महीने या उससे अधिक का पीएफ अंशदान नहीं दिया। इन्हें नोटिस जारी की जाती है और जवाब न मिलने पर 7ए की कार्रवाई शुरू की जाती है।

जारी किया गया नोटिस

ईपीएफओ ने कानपुर मंडल (प्रदेश के एक चौथाई जिले) में पीएफ न जमा करने वाली 2424 कंपनियों को नोटिस जारी किया है। इसमें 530 पहली श्रेणी और शेष दूसरी श्रेणी की हैं। प्रभावित होने वाले कर्मचारियों की संख्या करीब एक लाख है। इन दागी कंपनियों में सरकारी कार्यालयों को संविदा पर कर्मचारी उपलब्ध कराने वाली भी कंपनियां हैं। ये कंपनियां केस्को, नगर निगम, दलहन अनुसंधान केंद्र, विवि आदि सरकारी संस्थानों में संविदा कर्मचारियों उपलब्ध कराती हैं।

इनका ये है कहना

ईपीएफओ फेडरेशन के राष्ट्रीय सलाहकार राजेश शुक्ला का कहना है कि पीएफ जमा न करने पर नोटिस देने के बाद 7ए की कार्रवाई होती है। सुनवाई में दोषी पाए जाने पर कंपनी का खाता सीज कर दिया जाता है। फिर भी कंपनियां नहीं सुधरती हैं तो आइपीसी की धारा 706 व 709 के तहत मुकदमा किए जाने का प्रावधान है। इस कार्रवाई में महीनों लग जाते हैं। जो मुकदमे दर्ज हैं, वह भी सालों से लंबित पड़े हैं। ऐसे में दागी कंपनियां बेखौफ होकर कर्मचारियों का हक डकार जाती हैं। 


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