कानपुर में कोरोना की दूसरी लहर में टमाटर की लालिमा उड़ी और फूलों की खुशबू, संकट में कारोबारी
फूल उगाने वाले किसान जहां अप्रैल में नवरात्र व मांगलिक कार्र्यों के साथ सहालग में कमाई की आस लगाए थे लेकिन कोरोना कफ्र्यू ने उनके अरमान छलनी कर दिए। किसानों की सब्जियां खेत में ही सूख रही हैं। बिक्री न होने से किसान तोड़ तक नहीं रहे हैं।
कानपुर (शैलेंद्र त्रिपाठी)। बागवां ने खून-पसीने से सींचकर फूल और सब्जियां उगाए थे लेकिन बेरहम कोरोना की दूसरी लहर ने अरमानों पर पानी फेर दिया। पौधों पर लगे-लगे मुरझाए फूलों की खुशबू उड़ गई तो टमाटर की लालिमा गायब हो चुकी है। मेहनत बर्बाद होते देख अब बागवां बेजार है। कुछ लोगों ने जैसे-तैसे बेचना शुरू किया तो बिचौलियों ने भी खूब फायदा उठाया। उनकी पैदावार को माटी मोल खरीदकर मुनाफा कमाया। सरसौल, महाराजपुर और नर्वल के दर्जनों गांवों में फूलों की खेती बहुतायत में होती है। दूसरी ओर गंगा कटरी से जुड़े एक दर्जन से अधिक गांवों में रेती में तरबूज, खेरबूजा, लौकी, टिंडा, कद्दू आदि की खेती होती है। फूल उगाने वाले किसान जहां अप्रैल में नवरात्र व मांगलिक कार्र्यों के साथ सहालग में कमाई की आस लगाए थे लेकिन कोरोना कफ्र्यू ने उनके अरमान छलनी कर दिए। किसानों की सब्जियां खेत में ही सूख रही हैं। बिक्री न होने से किसान तोड़ तक नहीं रहे हैं।
- केस-1 : नर्वल निवासी सत्यप्रकाश ने लौकी, तरोई व गेंदा के फूल की दो बीघा में खेती की थी। नवरात्र व सहालग में अच्छी आमदनी की आस थी तो सोचा कि इंटरमीडिएट में पढऩे वाले बेटे की स्कूल व कोचिंग की फीस जमा हो जाएगी लेकिन कोरोना कफ्र्यू के चलते सब्जी औने-पौने दाम में बेची। फूल बिके ही नहीं। अब तो कर्ज लेकर इंतजाम करने की सोच रहे हैैं।
- केस-2 : नयाखेड़ा निवासी राम ने दो साल पहले बेटी की शादी की थी। सोचा था, इस बार फसल से बेटी की शादी का कर्ज उतर जाएगा लेकिन कोरोना के चलते ऐसा नहीं हो पाया। पिछली बार भी सब्जी व फूलों की खेती लॉकडाउन में बर्बाद हो गई थी। इस बार गेंदा व बैगन की खेती में लागत तक नहीं निकल पाई।
गेंदे से नहीं निकल पाई लागत : महाराजपुर के नजफगढ़, विपौसी, सलेमपुर, लालूखेड़ा, सुबंशीखेड़ा सहित दो दर्जन गांवों में गेंदा व गुलाब की खेती होती है। सुबंशीखेड़ा निवासी किसान अजीत निषाद बताते हैं कि नवरात्र में तो चार-पांच दिन तो फूलों का ठीकठाक भाव मिला लेकिन उसके बाद बिकने में भी आफत है। लागत निकलना मुश्किल है। नागापुर निवासी अनुरंजन त्रिपाठी ने बताया कि एक बीघा बटाई पर गेंदा लगवाया था। दो हजार से अधिक की लागत आई थी जबकि बिक्री मात्र दो सौ की हुई।
400 की टमाटर की क्रेट 80 रुपये में बिक रही : टमाटर की खेती करने वाले नागापुर के शिवसागर ने बताया कि कोरोना कफ्र्यू से पहले एक क्रेट टमाटर तीन से चार सौ रुपये में खेत से ही बिक जाता था। अब तो 70-80 रुपये में ही बिक रहा। मजबूरी में खेत में ही सूख रहा है। बैगन की खेती किए भगवंतखेड़ा निवासी रामपरन बताते हैं कि कोई बिना पैसों के भी नहीं पूछ रहा है। फसलों बर्बाद होते देख रहे हैं।
रेती की खेती भी हुई फीकी : डोमनपुर, नरायनपुर, विपौसी,नागापुर आदि गांवों में रेती में टिंडा,लौकी, कद्दू, तरबूज आदि की फसलें खूब होती हैं लेकिन कफ्र्यू ने किसानों के अरमान रौंद डाले। डोमनपुर गौशाला के राजेंद्र बताते कि टिंडा की गठरी जो सात-आठ सौ रुपये में बिकती थी वो दो-ढाई सौ में बिक पा रही है। लागत निकलना भी मुश्किल है। लौकी, कद्दू,ककड़ी आदि को कोई पूछने वाला नहीं है। तरबूज की मिठास भी कफ्र्यू में फीकी पड़ गई है। कुछ लोग मजबूरी में साइकिल से गांवों में फेरी कर सौ-दो सौ की बिक्री कर लेते हैं लेकिन रास्ते में कई बार पुलिस रोकती-टोकती है।