थर्ड जेंडर रुद्रांशी ने उसकी रूह जनानी थी... कविता सुनाकर झकझोर दिया सुनने वालों का मन
Facebook Live शो में रुद्रांशी ने कहा यहां से समाज की समझ शुरू हो जाती है जो शरीर को स्त्री या पुरुष के रूप में देखना चाहती है।
कानपुर, जेएनएन। विकास प्रकाशन कानपुर और वाड्मय पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में अायोजित फेसबुक लाइव पर शो पर आईं अजमेर राजस्थान थर्ड जेंडर रुद्रांशी ने पुरुस्कृत अपनी कवित उसकी रुह जनानी थी... सुनाकर सभी के मन झकझोर दिए। उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ समाज का थर्ड जेंडर के प्रति नजरिया रखा। साथ ही समाज के दोहरे चरित्र पर चोट की और सम्मान के साथ जीने का अधिकार का मुद्दा उठाया।
रुद्रांशी ने जीवन का दर्द बयां करते हुए कहा कि बच्चों को नहीं पता होता कि कौन क्या है लेकिन समझ आने के बाद वो चिढ़ाने लगते हैं, जैसा कि मेरे साथ हुआ। यहां से समाज की समझ शुरू हो जाती है जो शरीर को स्त्री या पुरुष के रूप में देखना चाहती है। इस समाज में न बच्चे सुरक्षित हैं न स्त्री और न ही थर्ड जेंडर। उन्होंने कहा कि न जाने कितने नामों से हम पुकारे जाते हैं और उपहास उड़ाता है। यही कारण है कि परिवार पर भी सामाजिक दबाव बन जाता है और वो ऐसे बच्चों को त्यागने पर मजबूर हो जाते हैं।
रुद्रांशी कहते हैं कि वर्तमान समाज में संविधान की मान्य अवधारणाओं को देखें तो हम पाते हैं कि शिक्षा और ससम्मान के साथ जीने का अधिकार सभी को प्राप्त है फिर आख़िर यह वर्ग क्यों शिक्षा से वंचित है। रुद्रांशी का असली नाम रुद्रांश सिंह राठौड़ है, वह अंग्रेज़ी साहित्य से एमए की पढ़ाई कर रही है और प्रोफेसर बनना चाहती हैं। वह अपनी लेखनी से उन आंसुओं को आवाज दे रही हैं, जो कभी बचपन में बहाए हैं। मानोबी बंदोपाध्याय, लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी को अपना आदर्श मानती है और इतना समर्थ बनना चाहती है कि इस वर्ग की बेहतरी के लिए प्रयास कर सकें। रुद्रांशी कहती हैं कि समाज को किसी का नाम तय करने का कोई हक़ नहीं है, इस समाज को सिर्फ अपनी मानसिकता बदलनी है। उन्होंने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत कविता उसकी रूह जनानी थी... सुनाकर दर्द बयां किया। इस दौरान डॉ फ़ीरोज़, डाॅ. शगुफ्ता, डाॅ. कामिल, डाॅ. आसिफ, मुनवर, महेन्द्र भीष्म, राकेश शंकर, डाॅ. लता, डाॅ. अफरोज, डॉ विमलेश, नियाज़ अहमद, अकरम, मनीष, दीपांकर, कामिनी, इमरान, राशिद, रिंकी, गिरिजा भारती, अनुराग, अनवर खान, केशव बाजपेयी आदि लाइव थे।