अब्दुल रहीम ने कहा, संघर्ष के पहियों को रोक नहीं पाए अवरोध और लक्ष्य तक ले गई हिम्मत
मैं साहित्य क्षेत्र से जुड़ी और कई मंचों पर कविता पाठ करके मुझमें साहस आया और अब मेरा साहित्य रुझान मुझे आगे ले जा रहा है।
कानपुर, जेएनएन। विकास प्रकाशन कानपुर और वाङ्मय त्रैमासिक पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में थर्डजेंडर/ट्रांसजेंडर पर आयोजित 'मेरी कहानी-मेरी ज़बानी' फेसबुक लाइव परिचर्चा में एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट व कवि अब्दुल रहीम ने अपने जीवन संघर्ष और किन्नर समुदाय से जुड़े कई पहलुओं पर प्रकाश डाला। साथ ही समुदाय के साथ भेद-भाव और दिक्कतों पर खुलकर बात कीं।
उन्होंने बताया कि जन्म लड़के के रूप में हुआ लेकिन लड़कियों के साथ खेलना रहना और कपड़े पहनना पसंद था। यह मेरे घर वालों को अच्छा नहीं लगता था। बाहर मुझसे मिलने वाले मुझे अजीब तरह से देखते और पुकारते थे लेकिन मैं समझ ही नहीं पाया था कि मैं क्या हूँ? एमकॉम एवं भारतीय शास्त्रीय संगीत से एमए अब्दुल रहीम ने बताया कि मुझे सबसे अलग समझा गया लेकिन ये अवरोध मेरे संघर्ष के पहियों को रोक नहीं पाए। मेरी हिम्मत मुझे लक्ष्य तक ले गई। शिक्षित होने के बावजूद लोग मुझे रोजगार नहीं दे रहे थे, जिससे मैं अवसाद में चली गयी थी फिर किन्नर समुदाय का साथ मिलने पर नई पारी की शुरुआत हुई। 15 साल बाद घर वाले ले गए और शादी करने के लिए दबाव बनाने लगे। इसके बाद मेरे बताने पर डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने जो बताया उसे सुन घर वाले खामोश हो गए।
उन्होंने कहा कि अब मैं अपने पार्टनर के साथ खुश हूँ और मेरी अपनी दुनिया है, जिसमें खुल कर रह सकती हूं। मैं साहित्य क्षेत्र से जुड़ी और कई मंचों पर कविता पाठ करके मुझमें साहस आया और अब मेरा साहित्य रुझान मुझे आगे ले जा रहा है। इसके साथ किन्नरों के अच्छे जीवन एवं समस्याओं के समाधान के लिए भी कार्य कर रही हैं। अंत में थर्डजेंडर पर खुद की लिखी कविता सुनाकर व्यथा बयां की। राज हीरामन(मॉरीशस) डॉ. इकरार, डॉ. भारती अग्रवाल, डॉ. शगुफ्ता, डॉ. लता, डॉ. विमलेश, डॉ. कामिल, डॉ. विजेंद्र, डॉ. लवलेश, डॉ. शमीम, डॉ. आसिफ, अकरम हुसैन आदि लाइव रहे।