Move to Jagran APP

...तो कैंट में रहने वाले भी बन सकेंगे जमीन के मालिक, केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार

केंद्र सरकार के निर्णय के बाद देश में कई छावनियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। कैंट बोर्ड में ज्यादातर निर्माण नियमों के विपरीत होने के चलते नामांतरण अथवा दाखिल खारिज में भी मुश्किलें आती हैैं। इस पर भी असमंजस बना है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 09:59 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 09:59 AM (IST)
...तो कैंट में रहने वाले भी बन सकेंगे जमीन के मालिक, केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार
कैंट बोर्ड क्षेत्र में रहने वालों को होगा फायदा।

कानपुर, जेएनएन। केंद्र सरकार की ओर देश की सभी 62 छावनियों का अस्तित्व समाप्त किए जाने की कवायद शुरू कर दी गई है। यदि ऐसा हुआ तो छावनी में रहने वालों को संपत्ति के मामले में फायदा जरूर मिलेगा।

loksabha election banner

कैंट बोर्ड में किसी भी संपत्ति की रजिस्ट्री करानी हो तो इसके लिए अनुमति लेनी जरुरी होती है। बोर्ड के नियम के मुताबिक संपत्ति मालिक ग्राउंड फ्लोर के साथ एक खंड ही बना सकता है। उसे इससे ऊपर के निर्माण की अनुमति नहीं है। वहीं, कैंट बोर्ड में ज्यादातर निर्माण नियमों के विपरीत होने के चलते नामांतरण अथवा दाखिल खारिज में भी मुश्किलें आती हैैं। कैंट निवासी सुमित तिवारी बताते हैं कि इसका दाखिल खारिज भी मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस में दर्ज होता है। इसका सीधा मतलब है कि रक्षा विभाग इन संपत्तियों का स्वामी होगा।

ओल्ड ग्रांट और लीज पर हैैं संपत्तियां

कैंट बोर्ड में संपत्तियां ओल्ड ग्रांट अथवा लीज पर भी हैं। इन सब कारणों से यहां के निवासी खुद को मलवा का ही मालिक मानते हैं, संपत्ति का नहीं। बोर्ड उपाध्यक्ष लखन लाल ओमर बताते हैं कि यदि कैंट बोर्ड नगर निगम में शामिल हो गया तो नगर निगम के नियमों के मुताबिक अमूल चूल परिवर्तन करके संपत्तियों को फ्री होल्ड कराया जा सकेगा। रक्षा विभाग की जमीन न होने पर संपत्ति के वास्तविक मालिक उपयोगकर्ता होंगे।

निर्माण में भी मिलेगी छूट

बोर्ड में मकान बनाने का नियम स्पष्ट है। ग्राउंड फ्लोर के साथ एक खंड का निर्माण किया जा सकता है, जबकि नगर निगम के नियमों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। कैंट बोर्ड वर्तमान में करीब छह हजार मकानों का कर निर्धारण करता है। जबकि यहां कई अवैध बस्तियां भी बसी हुई हैं, जहां व्यवसायिक गतिविधियां तो चलती ही हैं। मीरपुर तलऊआ, कब्रिस्तान, नई बस्ती यह कुछ ऐसी जगह हैं, जहां अवैध निर्माण कर लोग रह रहे हैं। यह संपत्तियां कर निर्धारण प्रक्रिया से दूर रहती हैं। उपाध्यक्ष बताते हैं कि नगर निगम में शामिल होने से जहां कुछ फायदे होंगे तो नुकसान भी होगा। अभी कैंट बोर्ड पानी का बिल ही लेता है जबकि सीवर टैक्स नहीं लिया जाता है। तब यह टैक्स भी देना होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.