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बच्चा ठीक से सुन नहीं पाता, नवजात के सुनने की क्षमता की जांच करना होता है काफी अहम

केंद्र सरकार के नवजात एवं शिशु श्रवण जांच कार्यक्रम के अंतर्गत नवजात के सुनने की क्षमता की जांच जन्म लेने वाले दिन से लेकर एक साल तक निश्शल्क की जाती है। बच्चे के सुनने की क्षमता की जांच करना काफी अहम होता है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 07 Jul 2021 02:04 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jul 2021 05:44 PM (IST)
बच्चा ठीक से सुन नहीं पाता, नवजात के सुनने की क्षमता की जांच करना होता है काफी अहम
बच्चे को सुनने में समस्या आना, जांच जरूरी।(फोटो: दैनिक जागरण)

कानपुर, जेएनएन। श्रवण दिव्यांगता से पीड़ित बच्चे सुन नहीं पाते इसलिए भाषाई ज्ञान से वंचित होने के कारण मानसिक रूप से भी पिछड़ जाते हैं। यह एक बड़ी त्रासदी है, क्योंकि तीन साल की उम्र तक बच्चों में भाषा की समझ 85 फीसद तक विकसित हो जाती है। यदि इस उम्र तक पहुंचने से पहले ही बच्चों को उचित जांच व उपचार की सुविधा मिल जाए तो इनके लिए सामान्य जीवन जीना संभव हो सकता है।

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नवजात शिशुओं की श्रवण जांच

केंद्र सरकार ने श्रवण दिव्यांगता को गंभीरता से लेते हुए नवजात बच्चों की श्रव्यता की जांचों को अनिवार्य रूप से लागू किया है। ये जांचें अब भारत में आसानी से उपलब्ध हैं। केंद्र सरकार ने श्रवण दिव्यांगता के दूरगामी प्रभावों को देखते हुए नवजात एवं शिशु श्रवण जांच कार्यक्रम का एक प्रोटोकाल विकसित किया है, जिसमें नवजात के सुनने की क्षमता की जांच जन्म लेने वाले दिन से लेकर एक साल का होने तक निशुल्क की जाती है।

छोटे बच्चों के लिए जरूरी जांचें

इसमें दो प्रमुख जांचें हैं, जो बच्चे के एक साल का होने तक करा ली जानी चाहिए। इन दोनों जांचों को तब किया जाता है, जब बच्चा सो रहा होता है और इन्हें करने में कुछ मिनट का ही समय लगता है। यह जांचें दर्द रहित होती हैं।

1. इवाक्ड ओटोअकास्टिक एमीशंस (ईओएई)

इस जांच में एक प्लग बच्चे के कान में लगाया जाता है और ध्वनियां को भेजी जाती हैं। प्लग में लगा माइक्रोफोन ध्वनियों के प्रति सामान्य कान की ओटोअकास्टिक प्रतिक्रियाओं (उत्सर्जन) को रिकार्ड करता है। श्रवण दिव्यांगता होने पर कोई उत्सर्जन नहीं होता है।

2. आडिटरी ब्रेन स्टेम रिस्पांस (एबीआर)

इसमें बच्चे की खोपड़ी पर वायर (इलेक्ट्रोड्स) चिपका दिए जाते हैं और छोटे-छोटे ईयरफोन की सहायता से कान में ध्वनियां भेजी जाती हैं। इस जांच में यह देखा जाता है कि ध्वनियों के प्रति मस्तिष्क क्या गतिविधि दिखाता है। ये दोनों इलेक्ट्रोफिजिकली टेस्ट अति विश्वसनीय हैं एवं तीन माह से कम उम्र के बच्चों में आसानी से हो जाते हैं।

अगर इन जांचों से पता चलता है कि बच्चे की सुनने की क्षमता सामान्य नहीं है, तब बेरा (ब्रेनस्टेम इवोक्ड रिस्पांस आडियोमेट्री) और ए.एस.एस.आर. (आडिट्री स्टेडी स्टेट रिस्पांस) जांचें की जाती हैं। सुनने के हायर र्कािटकल सेंटर की जांच के लिए एम.एल.आर.(मिडिल लेटेंसी रिस्पांस) एवं एल.एल.आर. (आडिट्री लेट रिस्पांस) जांचें भी कराई जाती हैं।

किस उम्र में कौन सी जांच कराएं

जन्म के एक माह के अंदर ओ.ए.ई. (ओटोएकास्टिक एमिशन) एवं ए.बी.आर. द्वारा स्क्रीनिंग। ’अगर, ओ.ए.ई. एवं ए.बी.आर. जांच फेल आएं तो बेरा एवं ए.एस.एस.आर. द्वारा सुनिश्चित करना चाहिए। ’छह माह तक जो बच्चे कम सुनते हैं, उन्हें सुनने की मशीन लगवा देनी चाहिए। ’जो बच्चे अत्यधिक श्रवण दिव्यांगता का शिकार हैं, उनमें एक साल की उम्र में काक्लीयर इंप्लांट करा देना चाहिए। इससे ऐसे बच्चे भी सामान्य रूप से बोलना और सुनना शुरू कर देते हैं।

जांचें कराने में न करें देरी

जो बच्चे जन्म के समय देर से रोएं। ’

जिन्हेंं जन्म लेने के बाद पीलिया हो जाए। ’

जो तीन दिन से ज्यादा आई.सी.यू. में भर्ती हों और उन्हेंं ऑक्सीजन दी गई हो। ’

जिन नवजात शिशुओं की मां को गर्भावस्था के दौरान पीलिया या वायरस का संक्रमण जैसे गलसुआ आदि हो गया हो।


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