Move to Jagran APP

अनोखी परंपरा : बैंडबाजा व बरातियों को लेकर झांझी के घर जाती है टेसू की बरात Kanpur News

टेसू व झांझी की शादी के बाद ही शुरू होते हैं विवाह बाकायदा कार्ड छपवाकर दिया जाता है निमंत्रण।

By AbhishekEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 12:15 PM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 03:18 PM (IST)
अनोखी परंपरा : बैंडबाजा व बरातियों को लेकर झांझी के घर जाती है टेसू की बरात Kanpur News
अनोखी परंपरा : बैंडबाजा व बरातियों को लेकर झांझी के घर जाती है टेसू की बरात Kanpur News

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा... विजयादशमी के दिन हमीरपुर से लेकर झांसी तक और कानपुर से उरई होते हुए इटावा तक बुंदेली धरती पर यह परंपरागत गीत गूंजने लगता है। अपने कटे सिर से महाभारत को देखने वाले बर्बरीक की अधूरी प्रेम कहानी को पूरा कराकर भविष्य के नव जोड़ों के लिए राह प्रशस्त करने की ब्रज क्षेत्र में प्रचलित टेसू झांझी की परंपरा को मध्य उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड की धरती सहेज रही है। कहीं बाकायदा कार्ड छपवाकर लोगों को नेह निमंत्रण दिया जाता है तो कहीं आज भी बैंड बाजा के साथ बरात पहुंचती है और टेसू का द्वारचार के साथ स्वागत किया जाता है। कहीं झांझी, कहीं झेंझी तो कहीं झिंझिया या झूंझिया, अलग-अलग नाम से जानी जाने वाली इस परंपरा का भाव समान है। टेसू-झांझी के विवाह के बाद ही इस क्षेत्र में शहनाई बजने की शुरुआत होती है।

loksabha election banner

दिबियापुर आइए, टेसू झांझी की शादी का बुलावा है..

ब्रज के घर-घर में टेसू झांझी के विवाह की मनाई जाने वाली परंपरा का उल्लास देखना हो तो औरैया के दिबियापुर में आइए। यहां टेसू झांझी के विवाह में सारी रस्में निभाई जाती हैं। लोग मिलकर टेसू और झांझी तैयार करते हैं। बाकायदा कार्ड छपवाया जाता है। जनाती होते हैं, बराती होते हैं। बैंड बाजा लेकर टेसू की बारात इलाके में घूमती है और बाराती नाचते हुए झांझी के घर पहुंचते हैं। टेसू का द्वारचार से स्वागत होता है। विवाह की रस्म की जाती है। झांझी की पैर पुजाई होती है। इसके बाद कन्यादान किया जाता है। झांझी की ओर से आए लोग व्यवहार लिखाते हैं। प्रीतिभोज भी दिया जाता है।

टेसू झांझी की इस परंपरा को अब दिबियापुर के युवा सहेज रहे हैं। एक दौर था जब किशोर-किशोरियां टेसू-झांझी लेकर घर-घर से निकलते थे और गाना गाकर चंदा मांगते थे। बुजुर्ग देशराज प्रजापित, रामदास पोरवाल, शिवकुमार अवस्थी बताते है कि यह प्राचीन परंपरा है, जिसे युवाओं ने वृहद रूप दिया है। उन्होंने टेसू झांझी समिति बनाई। हर साल कोई एक परिवार झांझी के लिए जनाती बनता और एक परिवार टेसू की तरफ से बराती। शरद पूर्णिमा के दिन धूमधाम से शादी होती है। गांव-कस्बा, हर जगह आयोजन होता है। ट्रैक्टरों से बारात निकलती है। शहर में रथ व कारों के काफिले की बारात होती है। लोग यह भी मानते हैं कि अगर किसी लड़के की शादी में अड़चन आ रही है तो तीन साल झांझी का विवाह कराए, लड़की की शादी में दिक्कत आ रही है तो टेसू का विवाह कराने का संकल्प ले।

इटावा में निकलती है टेसू-झांझी की शोभा यात्रा

ब्रज क्षेत्र से सटे इटावा के मकसूदपुरा, बकेवर और भरथना में टेसू-झांझी का विवाह धूमधाम से किया जाता है। यहां कुंभकार ही टेसू झांझी बनाते हैं और लोग उनसे ले जाते हैं। इसके बाद शरद पूर्णिमा पर गाड़ीपुरा मोहल्ले में टेसू झांझी की शोभायात्रा निकाली जाती है। दशहरा पर रावण के पुतले का दहन होते ही, बच्चे टेसू लेकर निकल पड़ते हैं और द्वार-द्वार टेसू के गीतों के साथ नेग मांगते हैं, वहां लड़कियों की टोली घर के आसपास झांझी के साथ नेग मांगने निकलती है। कुंभकार अनिल कुमार कहते हैं, परंपरा कब से है याद नहीं, हम तो बचपन से यही देख रहे हैं।

टेसू-झांझी से होती है बुंदेलखंड में शुभ कामों की शुरुआत

साहित्यकार रामशंकर द्विवेदी बताते हैं, यह बुंदेलखंड की काफी पुरानी परंपरा है। समय के साथ बदलाव आया है। अब कम लोग ही पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हैं। यहां माना जाता है कि शुभ कार्यों की शुरुआत इस विवाह के बाद ही होती है। अनुश्रुति है कि झिंझिया नाम की राजकुमारी को टेसू नाम के राजकुमार ने राक्षस से आजाद कराया था। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में सात दिन तक इसका धूमधाम से आयोजन होता है। विवाह की पूरी रस्में निभाई जाती हैं।

कानपुर देहात में अधूरे प्रेम के मिलन की परंपरा

कानपुर देहात के ग्रामीण इलाके हों या फिर शहरी, यहां सामूहिक आयोजन भले न हो लेकिन घर-घर में टेसू झांझी का विवाह होता है। इसे अधूरे प्रेम को मिलाने की परंपरा के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि इस विवाह के बाद अन्य वैवाहिक कार्यक्रमों में कोई अड़चन नहीं आती। शरद पूर्णिमा की रात में मनाए जाने वाले इस विवाह समारोह में महिलाएं मंगलगीत गाती हैं। सीधामऊ निवासी बुजुर्ग शिवनारायन तिवारी कहते हैं, यह परंपरा महाभारत कालीन है। भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक महाबलशाली योद्धा थे। महाभारत का युद्ध देखने आते समय उन्हें झांझी से प्रेम हो गया। उन्होंने युद्ध से लौटकर झांझी से विवाह करने का वचन दिया, लेकिन अपनी मां को दिए वचन, कि हारने वाले पक्ष की तरफ से वह युद्ध करेंगे के चलते वह कौरवों की तरफ से युद्ध करने आ गए और श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया। वरदान के चलते सिर कटने के बाद भी वह जीवित रहे। युद्ध के बाद मां ने विवाह के लिए मना कर दिया। इस पर बर्बरीक ने जल समाधि ले ली। झांझी उसी नदी किनारे टेर लगाती रही लेकिन वह लौट कर नहीं आए।

अब वह बात कहां...

टेसू अटर करें, टेसू मटर करें, टेसू लई के टरें... यह गाना गाते हुए बच्चों की टोली बिधनू में दिखती है। वह टेसू और झांझी के विवाह की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हालांकि बड़े लोगों में अब इस पर्व के प्रति उदासीनता हो गई है। कठेरुआ गांव के 70 वर्षीय श्रीकांत तिवारी कहते हैं, हमारे बचपन में टेसू और झांझी पर्व के प्रति इतना उल्लास रहता था कि रात भर पूरा गांव जागता था। कुंभकार टेसू और झांझी बनाते थे। दशहरा मेला में लड़कियां झांझी और लड़के टेसू के नाम की मटकी खरीदकर लाते थे। झांझी कन्या के रूप में टेसू को राजा के रूप में रंग कर टेसू वाली मटकी में अनाज भर कर एक दीया जलाते थे और घर घर जाकर अनाज और धन इकट्ठा करते थे। लोग बच्चों को इस आयोजन में खुले दिल से सहयोग करते और विवाह की रात पूरा साथ देते थे। अब वह बात नहीं है।

एकता और समानता का पर्व भी है टेसू झांझी का विवाह

बकौली की 95 वर्षीय पार्वती तिवारी बताती हैं कि टेसू और झांझी केवल पर्व या मेला नहीं था। यह एकता का प्रतीक था। सामाजिक सद्भाव की दीया जलाता था। हर घर का अनाज और पैसा एक साथ मिलकर एक हो जाता है। न कोई ऊंचा न कोई नीचा। लड़कियों में अजब उल्लास रहता था तो लड़कों में भी। लड़कियों को भी उतना ही सहयोग दिया जाता था, जितना लड़कों को। गांव के बड़े लोग शामिल होते थे। कुछ लोग बराती बनते थे, कुछ लोग जनाती। फिर दशहरा से लेकर चतुर्दशी तक तैयारी चलती थी। रात में स्त्रियां और बच्चे इकट्ठा होते थे। नाच गाना होता था। बरात आती थी। खील, बताशे, रेवड़ी बांटी जाती थी। साथ ही शादी की रीति-रिवाज की भी शिक्षा मिल जाती थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.