आतंकी मामा मंडल ने सुप्रीम कोर्ट में दी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती, दिल्ली-मुंबई में विस्फोट के लिए उन्नाव में छिपाया था आरडीएक्स
उन्नाव में 27 जून 2007 को औद्योगिक क्षेत्र से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद कर आतंकी नूर इस्लाम को गिरफ्तार किया गया था। 19 जुलाई 2012 को स्थानीय न्यायालय से आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रिहाई के लिए दाखिल अर्जी खारिज कर दी थी।
उन्नाव, जागरण संवाददाता। लखनऊ से 27 जून, 2007 को गिरफ्तार किए गए हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हूजी) से जुड़े आतंकी नूर इस्लाम उर्फ मामा ने अपनी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुज्ञा याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।
कौन है नूर इस्लाम : नूर इस्लाम उर्फ मामा मंडल बंगाल के जिले चौबीस परगना के बंगदा में ग्राम बासघटा का रहने वाला है। यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने लखनऊ से उससे गिरफ्तार करने के बाद उसकी निशानदेही पर औद्योगिक क्षेत्र दही चौकी उन्नाव में राजमार्ग किनारे अधबनी दुकानों के पीछे छिपाया गया 2.250 किलो आरडीएक्स, 10 डेटोनेटर की छड़ें बरामद की थीं, जो दिल्ली और मुंबई में विस्फोट के लिए रखी गई थी।
कोर्ट सुना चुका आजीवन कैद की सजा : इसी मामले में नूर इस्लाम को अपर सत्र न्यायाधीश एक्स कैडर जगदीश प्रसाद चतुर्थ ने 19 जुलाई, 2012 को विस्फोट पदार्थ अधिनियम-1908 समेत अन्य धाराओं में दोषी करार देते हुए सश्रम आजीवन कारावास व 10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई थी। जुर्माना अदा न करने पर दो वर्ष की अतिरिक्त सजा काटने का आदेश दिया था। इसके अलावा धारा 16-बी (विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम-1967) के तहत 10 वर्ष के सश्रम कारावास के साथ पांच हजार रुपये जुर्माना लगाया था।इसके बाद से वह लखनऊ जेल में बंद है।
हाई कोर्ट से मांगी थी रिहाई : नूर इस्लाम ने सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अपील की थी। 26 फरवरी, 2020 को हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति देवेंद्र उपाध्याय और न्यायमूर्ति फैज आलम खान की पीठ ने उसकी अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद 13 अप्रैल, 2022 को हाईकोर्ट की डबल बेंच में फिर अपील की। इस पर सुनवाई कर न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव ने उच्चतम न्यायालय में डाली गई विशेष अनुज्ञा याचिका का हवाला देते हुए अर्जी को खारिज कर दिया था।
दाखिल की विशेष अनुज्ञा याचिका : हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उसकी ओर से विशेष अनुज्ञा याचिका दाखिल की गई है। याचिका पर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रतिवाद करने के लिए विशेष सचिव निकुंज मित्तल ने डीएम और एसपी को पांच मई को पत्र भेजा है। इसमें संबंधित अभिलेख उपलब्ध कराने और अधिवक्ता का सहयोग करने के लिए कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई 11 जुलाई को होनी है। एडीएम न्यायिक ने जिला शासकीय अधिवक्ता अनिल त्रिपाठी, संबंधित न्यायालय को भी पत्र की प्रति उपलब्ध कराते हुए तैयारी के लिए कहा है।
क्या है विशेष अनुज्ञा याचिका : हाई कोर्ट लखनऊ खंडपीठ के अधिवक्ता प्रशांत सिंह अटल व सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता विदुषी बाजपेई ने बताया कि स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी) या विशेष अनुज्ञा याचिका यानी हाईकोर्ट से जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना या फिर उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका करना है।