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राममूरत और गया बाबा से पाठा में आई दहशत, गौरी पर खत्म हुआ डकैतों का काला अध्याय

चित्रकूट से डकैतों का अब अंत हो गया है। यहां पाठा के जंगलों में राममूरत की दहशत कायम रही तो गया बाबा की बादशाहत में ददुआ ने भी साथ में काम किया था। बुद्धि भुजबल माताबदल लखना सिंह और जनार्दन सिंह के गैंग भी सक्रिय रहे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 31 Oct 2021 02:38 PM (IST)Updated: Sun, 31 Oct 2021 02:38 PM (IST)
राममूरत और गया बाबा से पाठा में आई दहशत, गौरी पर खत्म हुआ डकैतों का काला अध्याय
चित्रकूट में गौरी के साथ डकैतों का अंत हो गया।

चित्रकूट, [शिवा अवस्थी]। चित्रकूट के बीहड़ क्षेत्र पाठा में वर्ष 1960 में सबसे पहले सक्रिय हुए डकैत राममूरत सोनी और गया बाबा के कारण दहशत आई थी। अब साढ़े पांच लाख के इनामी गौरी यादव के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद डर का अध्याय खत्म हो गया है। पुलिस फाइलों में गया बाबा तक लिखा-पढ़ी अधिक मिलती है।

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हालांकि, इससे पहले भी कई डकैत सक्रिय रहे, लेकिन उनका वैसा खौफ नहीं रहा, जैसा बाकी डकैतों का था। उप्र के चित्रकूट की मानिकपुर तहसील की करीब 110 ग्राम पंचायतें पाठा क्षेत्र में हैं। इन गांवों में विकास कार्य कराने से पहले हमेशा रंगदारी देनी पड़ी। राममूरत सोनी, गया बाबा, ददुआ, रागिया, ठोकिया, बलखडिय़ा से लेकर बबुली कोल तक अपनी चौथ वसूलते रहे। गौरी यादव भी उनमें से ही एक था। हालांकि, शुरुआत में इतनी ज्यादा रंगदारी वसूलने, अपहरण या हत्या की घटनाएं नहीं हुईं। ददुआ की बादशाहत आने के बाद इनमें इजाफा हुआ। वैसे, गरीबों की मदद से उसकी राबिन हुड जैसी छवि बन गई थी।

वर्ष 1960 से पहले भी पाठा में -बुद्धि भुजबल, माताबदल, लखना सिंह और जनार्दन सिंह जैसे डकैत सक्रिय रहे। इनमें से ज्यादातर ने वर्ष 1982 में आत्मसर्पण करके यह राह छोड़ दी। बागी जीवन से सामान्य जिंदगी जी रहे जनार्दन सिंह ने बताया कि वह जीवन बेहद खतरों से भरा था। लोग जरा सी वजह से डकैत बन जाते हैं। लूट, हत्या जैसी वारदातें कर देते हैं, जबकि धैर्य रखकर कुछ बेहतर किया जा सकता है। खुद पर लगे दाग खत्म भी किए जा सकते हैं।

दोस्ती, बदले की भावना और इज्जत के लिए बन गए डकैत

जनार्दन सिंह के मुताबिक, पाठा में ज्यादातर लोग डकैत के रूप में दोस्ती, बदले की भावना और खुद की इज्जत बचाने को लेकर उतरे। जंगलों में उनकी सक्रियता पहले अपनी निजी खुन्नस को लेकर हुई और बाद में वह बागी जीवन जीने लगे। इससे लोगों को परेशानी भी हुई। अब डकैत मुक्त चित्रकूट नई कहानी लिखने को तैयार है।

पाठा में मारे जा चुके डकैत

शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ : 22 जुलाई, 2007

अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया उर्फ डाक्टर : चार अगस्त, 2008

सुंदर पटेल उर्फ रागिया : 24 दिसंबर, 2011

सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा : 16 जुलाई, 2015

बबुली कोल व लवलेश कोल : 16 सितंबर, 2019


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