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जीएसवीएम मेडिकल कालेज में सफल प्रयोग, देसी बैलूनिंग डिवाइस से बचाई पांच हजार प्रसूताओं की जान

जीएसवीएम मेडिकल कालेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की पहल पर देसी बैलूनिंग डिवाइस का प्रयोग किया गया । अबतक पांच हजार से अधिक प्रसूताओं पर पर सफल प्रयोग करके उनकी जान बचाई जा चुकी है ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 09:52 AM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 09:52 AM (IST)
जीएसवीएम मेडिकल कालेज में सफल प्रयोग, देसी बैलूनिंग डिवाइस से बचाई पांच हजार प्रसूताओं की जान
कानपुर के जच्चा-बच्चा अस्पताल में डॉक्टरों ने किया प्रयोग।

कानपुर, ऋषि दीक्षित। प्रसूताओं के लिए रक्तस्राव घातक होता है, कई बार मौत की वजह भी बनता है। इसे रोकने के लिए जीएसवीएम मेडिकल कालेज की डाक्टरों ने सस्ती बैलूनिंग डिवाइस ईजाद की है। अब तक पांच हजार से अधिक प्रसूताओं पर सफल प्रयोग किया जा चुका है। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में इस तकनीक से सीमित संसाधनों में डिवाइस तैयार कर रक्तस्राव रोका जा सकता है। यह तकनीक मातृ मृत्युदर के ग्राफ को नीचे लाने में भी मददगार है। इसे तैयार करने में कैथेटर एवं कंडोम आदि का इस्तेमाल किया जाता है और नाम मात्र की आती है।

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एलएलआर हास्पिटल (हैलट) के अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल में ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में महिलाएं प्रसव या गर्भपात के बाद रक्तस्राव (ब्लीडिंग) की समस्या लेकर आती हैं। अधिक रक्तस्राव होने से कई तो शाक में चली जाती हैं। रक्तस्राव रोकने वाली दवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रसूताओं की जान बचाने के लिए स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष प्रो. किरन पांडेय ने डा. संगीता आर्या और डाॅ. पविका से विमर्श कर अध्ययन किया। उनके निर्देशन में जनवरी 2017 से जनवरी 2018 तक जूनियर रेजीडेंट (जेआर) डा. नूपुर ने रक्तस्राव के साथ अस्पताल में आने वाली 350 प्रसूताओं पर कंडोम बैलूनिंग टेंपोनेड डिवाइस का इस्तेमाल किया। उनकी एक साल निगरानी कराई। उस डाटा का तुलनात्मक विश्लेषण भी कराया, जिसके बेहतर परिणाम मिले।

प्रसव के बाद होती समस्या

प्रसव के बाद गर्भाशय या बच्चेदानी में कड़ापन नहीं आने से मांसपेशियां व खून की नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं। गर्भाशय की मांसपेशियों में लचीलापन आने से अंदरूनी हिस्से में रक्तस्राव होने लगता है। रक्तस्राव रोकने के लिए मांसपेशियों व रक्त नलिकाएं दबाने (प्रेशर) और गर्भाशय को आकार देने के लिए फुलाने की जरूरत पड़ती है। इसमें ये कारगर है।

ऐसे बनती और काम करती है डिवाइस

देसी डिवाइस के लिए कैथेटर (यूरिन वाला), कंडोम, सिरिंज और स्लाइन की जरूरत होती है। कैथेटर के ऊपर कंडोम चढ़ाया जाता है। कंडोम बैलूनिंग टेंपोनेड डिवाइस प्राइवेट पार्ट के रास्ते गर्भाशय में डाली जाती है। सिङ्क्षरज से स्लाइन डालकर फूलाने से गर्भाशय आकार में आने लगता है। डिवाइस का प्रेशर पडऩे से अंदरूनी ब्लीङ्क्षडग प्वाइंट बंद हो जाते हैं। संक्रमण रोकने व अंदर की गंदगी और ब्लड की निकासी के लिए पाइप डाला जाता है। फिर उसे सील कर दिया जाता है। 24 से 48 घंटे बाद धीरे-धीरे सिङ्क्षरज से स्लाइन निकालकर प्रेशर कम कर बाहर निकाल लिया जाता है।

-चार साल में पांच हजार से अधिक प्रसूताओं की जान बचाई है। यह सस्ती एवं सुलभ है, जो लेबर रूम में दो मिनट में तैयार हो सकती है। इसका इस्तेमाल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित होगा। सीएचसी-पीएसची में सीमित संसाधनों से आसानी से तैयार हो सकती है। इसके लिए स्टाफ नर्स, वार्ड आया एवं मिडवाइफ को भी प्रशिक्षित किया जा सकता है। -प्रो. किरन पांडेय, विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।


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