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सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी लहलहाएंगी फसलें, कृत्रिम बारिश का हुआ सफल परीक्षण

एचएएल में मेक इन इंडिया के तहत निर्मित इस डोनियर-228 एयरक्राफ्ट में अब आइआइटी कृत्रिम बारिश के लिए उपकरण लगाएगा।

By Edited By: Published: Thu, 28 Feb 2019 08:44 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 10:54 AM (IST)
सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी लहलहाएंगी फसलें, कृत्रिम बारिश का हुआ सफल परीक्षण
सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी लहलहाएंगी फसलें, कृत्रिम बारिश का हुआ सफल परीक्षण
 कानपुर [जागरण स्पेशल]। कृत्रिम बारिश के लिए बुधवार को आइआइटी में स्वदेशी एयरक्राफ्ट का सफल परीक्षण किया गया। एचएएल में 'मेक इन इंडिया' के तहत निर्मित इस डोनियर-228 एयरक्राफ्ट में अब आइआइटी कृत्रिम बारिश के लिए उपकरण लगाएगा। इससे कृत्रिम बारिश की लागत में करीब 90 फीसद की कमी आ जाएगी। इस संबंध में आइआइटी और एचएएल के बीच जल्द ही बैठक होगी।
बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर व ललितपुर समेत सूखा प्रभावित सात जिलों में इस वर्ष कृत्रिम बारिश कराए जाने की योजना है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी बनाई है। इसमें छह विभागों के सचिव और आइआइटी एयरोस्पेस विभाग के अध्यक्ष प्रो. एके घोष व सिविल इंजीनिय¨रग विभाग के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी शामिल हैं। प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के मुताबिक सिंचाई, पर्यावरण और कृषि विभाग की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण होगी। कमेटी की सिफारिश के अनुसार ही जल प्रबंधन, कृषि एवं पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण पर रोकथाम के लिए कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के एयरक्राफ्ट व उसमें लगने वाले उपकरण के जरिए कृत्रिम बारिश कराने का खर्च साल भर में 50 से 60 करोड़ रुपये आता है। स्वदेशी एयरक्राफ्ट व स्वदेशी उपकरणों के जरिए इस घटाकर पांच से छह करोड़ पर लाया जा सकता है।
दो बार विजिट कर चुकी है टीम
 कृत्रिम बारिश कराने के लिए 30 दिसंबर को प्रदेश सरकार की ओर से गठित कमेटी की बैठक हुई थी। इसके बाद एचएएल की टीम ने दो बार आइआइटी के एयर-स्ट्रिप का दौरा किया। भौगोलिक सर्वेक्षण करने के बाद परीक्षण के लिए टीम अपना एयरक्राफ्ट लाई है।
पड़ोसी देशों की मदद करेगा आइआइटी
कृत्रिम बारिश के परियोजना समन्वयक दीपक सिन्हा ने बताया कि बांग्लादेश, नेपाल व भूटान समेत पड़ोसी देशों की मांग पर उन्हें इस तकनीक का लाभ दिया जाएगा इसका फाइनेंशियल मॉडल तैयार किया जा रहा है। उप निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि परीक्षण सफल हुआ है, अब इसी वर्ष बारिश कराने की तैयारी है। यूएस का सिर्फ एक उपकरण स्वदेशी एयरक्राफ्ट में सिर्फ बादलों के बीच मैटेरियल का छिड़काव करने के लिए सीडिंग उपकरण यूएस से मंगाया जाएगा। एयरक्राफ्ट में क्लाउड कंडन्सेशन न्यूक्लियर काउंटर, क्लाउड प्रोब जैसे उपकरण लगाए जाएंगे जो कृत्रिम बादल बनाएंगे। क्लाउड कंडन्सेशन यह भी बताएगा कि बादल में कितने कण मौजूद हैं जो घने बादल बना सकते हैं। क्लाउड प्रोब यह बताएगा कि बादल में कितना लिक्विड है, तापमान कितना है व हवा कितनी अनुकूल है।
मंगलयान-2 के परीक्षण के कारण इसरो से नहीं मिल सका था एयरक्राफ्ट
पहले कृत्रिम बारिश के लिए इसरो के एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जाना था लेकिन मंगलयान-2 के परीक्षण के कारण यह यान नहीं मिल सका। इसके बाद एचएएल ने इसके लिए तैयारी की।

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