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आंतों के जख्म भरेंगे पेट के कीड़े

साफ-सफाई (हाईजीन हाइपोथिसिस) के प्रति अत्यधिक सजगता भी सेहत पर भारी पड़ रही है। इससे संक्रमण (इंफेक्शन) का स्तर तो घटा है लेकिन प्रतिरोधक क्षमता की कम हो गई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 03:23 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 06:20 AM (IST)
आंतों के जख्म भरेंगे पेट के कीड़े
आंतों के जख्म भरेंगे पेट के कीड़े

जागरण संवाददाता, कानपुर : साफ-सफाई (हाईजीन हाइपोथिसिस) के प्रति अत्यधिक सजगता भी सेहत पर भारी पड़ रही है। इससे संक्रमण (इंफेक्शन) का स्तर तो घटा है, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता की कम हो गई है। जिससे आटो इम्यून डिजीज बढ़ी हैं। इसमें पेट की गंभीर बीमारी क्रोंस (आंतों के जख्म) कई गुणा बढ़ गई है। ऐसे में नए रिसर्च में दूषित भोजन के जरिए पेट में कीड़े (स्केरिस) पहुंचा कर इलाज शुरू किया है। इसमें जख्म भरने में मदद मिल रही है। यह जानकारी शुक्रवार को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज सभागार में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिसनर्स (आइएमए सीजीपी) के 37वें वार्षिक रिफ्रेशर कोर्स में दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल के गैस्ट्रोइंटोलाजी के प्रो. गौर हरि दास चौधरी ने दी।

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उन्होंने कहाकि स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ने से मिनरल/आरओ वाटर तथा पैक्ड फुड का सेवन करते हैं। इससे संक्रमण कम होने से मित्र और दुश्मन बैक्टीरिया के बीच जंग नहीं होती है। इसलिए प्रतिरक्षण प्रणाली कमजोर होने से आटो इम्यून बीमारी बढ़ी है। कई ऐसे हारमोन्स व केमिकल बनते हैं। इसलिए छोटी-बड़ी आंत में ब्लीडिंग, पेप्टिक अल्सर और कोलाइटिस के केस बढ़े हैं। खासकर अल्सरेटिव कोलाइटिस एवं क्रोंस में छोटी-बड़ी आंत में जख्म हो जाता है। बीस वर्षो में कोंस के मरीज दो गुना हो गए हैं। इसकी गंभीरता को देखते हुए नए शोध एवं अध्ययन हो रहे हैं। इसमें दूषित भोजन के साथ पेट में कीड़े (स्केरिस) खिलाने पर रिसर्च चल रहा है। इसके शुरुआती परिणाम बेहतर हैं। ऐसा करने से आंत के जख्म भर गए। प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि हुई।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि इजरायल में गाय-भैंस तक को साफ-सुथरा पानी और खाना देते हैं। इसलिए वहां क्रोंस के सर्वाधिक मरीज हैं। इसके प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. पीयूष मिश्रा तथा चेयरपर्सन डॉ. वीके मिश्रा, डॉ. अजमल हसन, डॉ. एसके गौतम थे।

कार्यक्रम में मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य प्रो. आरती लालचंदानी, आइएमए अध्यक्ष डॉ. अर्चना भदौरिया, सचिव डॉ. बृजेंद्र शुक्ल, डॉ. रीता मित्तल, डॉ. कुनाल सहाय, डॉ. विकास मिश्रा थे।

एस्प्रिन से रक्तस्राव का खतरा :

प्रो. चौधरी ने कहाकि गले की नसें मोटी और पेट में जख्म होने से खून की उल्टियां या मल के साथ रक्त आता है। इसका इलाज इंडोस्कोपी विधि से संभव है। वहीं दर्द निवारक दवाओं के अधिक सेवन से लीवर खराब हो रहा है। हार्ट के आठ फीसद मरीजों में एस्प्रिन दवा की वजह से रक्तस्राव का खतरा रहता है।

एक सीमा तक ही सफाई बेहतर

डॉ. चौधरी का कहना है कि एक सीमा तक ही सफाई बेहतर है। प्रकृति को अपनाएं। स्वस्थ आहार व नियमित व्यायाम करें। बर्गर-पिज्जा कम खाएं। सौ से कम टीडीएस वाला पानी न पीएं।

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पढ़ाई का तनाव व खेलकूद में कमी से बच्चों को डायबिटीज

कानपुर : बनारस हिदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्रो. कमलाकर त्रिपाठी ने मधुमेह और हार्ट फेल्योर पर जानकारी दी। कहा, पब्लिक स्कूलों में पढ़ाई का बोझ बच्चों को तनाव दे रहा है। खेलकूद से दूरी उन्हें मोटापा दे रही है, जिससे डायबिटीज की चपेट में आ जाते हैं। इससे बचाव के लिए बचपन से उनकी जीवनशैली-खानपान में सुधार जरूरी है। पहले बच्चे पैदल स्कूल जाते थे। शिक्षक बागवानी एवं अन्य श्रमदान कराते थे। किताबों का भी बोझ नहीं था। इसलिए डायबिटीज व मोटापा नहीं था। अब तनाव बढ़ा है और शारीरिक श्रम कम हुआ है। वहीं डायबिटीज नियंत्रित न होने से हार्ट फेल्योर तथा किडनी खराब हो जाती है। इसलिए डायबिटीज की पहचान कर इलाज कराएं। अन्य अंगों की सुरक्षा को नियमित जांच कराते रहें। मोडी डायबिटीज (मैच्योरिटी आनसेट डायबिटीज ऑफ द यंग) जन्मजात हैं। जीन के माध्यम से एक से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होती है। इसके लिए जिम्मेदार जीन की पहचान के लिए शोध हो रहा है। उन्होंने कहाकि कुछ नई दवा डायबिटीज नियंत्रित करने के साथ हार्ट और किडनी को सुरक्षित रखती हैं। इसके प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. एसके अग्रवाल तथा चेयरपर्सन डॉ. बृजमोहन, डॉ. मंजुल कुमार व डॉ. रिचा गिरी मौजूद थीं।

बीटा सेल ट्रांसप्लांट पर रिसर्च

डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि डायबिटीज को जड़ से समाप्त करने के लिए बीटा सेल ट्रांसप्लांट पर रिसर्च चल रहा है। इस रिसर्च के सफल होने पर डायबिटीज से छुटकारा मिल सकता है।

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गॉल ब्लॉडर से पथरी निकालना संभव

कानपुर : संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. प्रवीर राय ने कहाकि गंगा किनारे के क्षेत्र में गॉल ब्लॉडर में पथरी और कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। अभी बुजुर्गो के गाल ब्लाडर की पथरी इंडोस्कोपी एवं अल्ट्रासाउंड के जरिए निकालने पर रिसर्च चल रहा है। इसके परिणाम अच्छे मिल रहे हैं। आने वाले दिनों में सभी को लाभ मिलेगा। उन्होंने कहाकि पथरी दस मिमी से अधिक बड़ी हो तो फौरन आपरेशन कराएं। पीलिया की वजह लाल रक्त कोशिकाएं टूटने, लिवर में सूजन, पित्त नली में रूकावट, कीड़े हो सकते हैं। प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. गौरव चावला तथा चेयरपर्सन डॉ. अरुण खंडूरी, आलोक गुप्ता व डॉ. मयंक मेहरोत्रा मौजूद थे।


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