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हंसी-खेल नहीं बच्चों की परवरिश, जानें- बालमन समझने के लिए चाइल्ड काउंसलर के खास टिप्स

हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि बड़े तो एक बार दिल पर लगने वाली बातों को बर्दाश्त कर लेते हैैं लेकिन बालमन पर इसका बहुत गहरा असर होता है और बच्चे स्वयं को आहत महसूस करते है। बच्चों पर डांट का नकारात्मक असर पड़ता है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 03 Nov 2021 05:07 PM (IST)Updated: Wed, 03 Nov 2021 05:07 PM (IST)
हंसी-खेल नहीं बच्चों की परवरिश, जानें- बालमन समझने के लिए चाइल्ड काउंसलर के खास टिप्स
बच्चों पर डांट का नकारात्मक असर पड़ता है।

कानपुर, [दिनेश दीक्षित]। बच्चों की अच्छी परवरिश हंसी-खेल नहीं है। बच्चों के साथ प्यार और अपनत्व से पेश आना चाहिए साथ ही उनकी भावनाओं को भी समझना चाहिए। चाइल्ड काउंसलर डा. शुभांगी मेहरोत्रा बता रहीं हैं बालमन को गहराई से समझने के खास टिप्स..।

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बच्चों की देखभाल और परवरिश करना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। खासकर एकाकी परिवार में रह रहे कामकाजी माता-पिता के लिए तो यह समस्या और भी विकट होती है। कार्यालय का वर्कलोड, घरेलू कामकाज, परिवार की जरूरतों और अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाना कामकाजी महिला के लिए तो बहुत ही मुश्किल भरा काम होता है।

छुट्टी के दिन भी अक्सर घर की जरूरतों को पूरा करते हुए उनका सारा दिन बीत जाता है। कई बार तो वे दिन में आराम करने के लिए एक मिनट का भी वक्त नहीं निकाल पाती हैैं। इसके परिणामस्वरूप वे चिड़चिड़ाने लगती हैैं और तनावग्रस्त हो जाती हैैं। ऐसा होने पर वे अपना गुस्सा या तो पति पर निकालती हैैं या फिर बच्चों पर झल्लाकर निकालती हैैं।

चाइल्ड काउंसलर डा. शुभांगी मेहरोत्रा का कहना है कि इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि बड़े लोग तो एक बार दिल पर लगने वाली बातों को बर्दाश्त भी कर लेते हैैं, लेकिन बच्चों के बालमन पर नकारात्मक बातों का बहुत गहरा असर होता है। भले ही आपने गुस्से में कुछ कहा हो, लेकिन नकारात्मक बातों और डांट-फटकार से बच्चे स्वयं को आहत महसूस करते है। इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है।

डा. शुभांगी कहती हैैं कि कभी-कभार गुस्से में आपा खो देना स्वाभाविक है, पर इसके साथ यह भी जरूरी है कि हम ऐसी स्थिति से निपटने का रास्ता भी निकालें ताकि ऐसी स्थिति आने पर हमारे मुंह किसी भी तरह की कोई कड़वी बात न निकले। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डा. शुभांगी कहती हैैं कि कुछ बातें जो सबसे ज्यादा नुकसानदेह होती हैैं।

अपने बच्चों की कभी किसी और बच्चे से तुलना न करें। भले ही वह उसका सगा भाई या बहन हो। तुलना करने से बच्चे के अंदर उग्रता आती है और उनमें आपस में मनमुटाव हो सकता है। कोई भी बच्चा किसी दूसरे बच्चे जैसा हो ही नहीं सकता है। यदि किसी में कोई खामी होगी तो यकीन मानिए उसमें कोई न कोई खूबी भी होगी। जब आप अपने बच्चे की तुलना किसी दूसरे बच्चे से करने लगती हैैं तो वह बच्चा अपने आपको दूसरे से कमतर समझने लगता है। इससे उसका आत्मविश्वास कमजोर होता है और उसमें हीनभावना आने लगती है। आपके तुलना करने की आदत से बच्चा यह नहीं समझ पाता है कि आप उससे क्या चाहती हैैं? हां, उसे इतना अवश्य पता होता है कि आप उससे खुश नहीं रहती हैैं। इसलिए अपने बच्चे की किसी से तुलना करने से बेहतर है कि उसे ये समझाएं कि वो अपने को और बेहतर कैसे बना सकता है।

इसी तरह से आपने देखा होगा कि कुछ लोग अपने बच्चों को आलसी या जंगली जैसे नकारात्मक शब्दों के ताने मारते हैैं। ऐसा कहने से बच्चों में हीनभावना आती है। यदि आप अपने बच्चे को नालायक या नाकारा जैसे शब्द बोलते हैैं तो समझ लीजिए कि आप बच्चे को हीनभावना से ग्रस्त कर रहे हैैं। याद रखें कि बच्चे की अवहेलना करने की बजाय उसके द्वारा किए गए गलत कार्य की आलोचना करें। आप उससे कह सकते हैैं कि मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी या तुम इससे अच्छा कर सकते हो तो इन बातों से बच्चों का हौसला बढ़ता है और वे बेहतर काम करने के लिए सोचते हैैं।

इसी प्रकार से यदि कोई बच्चा किसी परीक्षा या किसी कार्य में असफल होता है तो उसकी असफलता पर ताने मारना भी सही नहीं होता है। उसकी असफलता पर ताने मारना जले पर नमक छिड़कने का काम करता है अर्थात उसे और पीड़ा पहुंचती है। इससे उसका न केवल आत्मविश्वास कमजोर होता है, बल्कि उसका उत्साह भी कम होता है। माता-पिता का यह फर्ज है कि वे अपने बच्चों को एक मजबूत आधार देते हुए उसके आत्मविश्वास को बढ़ाएं ताकि बच्चा उसके सहारे आगे बढऩा सीखे। याद रखें बच्चे धीरे-धीरे ही सीखते हैैं। इस दौरान संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए।

डा. शुभांगी कहती हैैं कि कुछ लोग बच्चों को चिढ़ाने के भी आदी होते हैैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत कर रहे हैैं। ऐसा करने से बच्चे बाहरी लोगों के तानों को आसानी से सहन कर सकेंगे, लेकिन हकीकत इसके विपरीत होती है। जिसे माता-पिता बच्चों को चिढ़ाना समझते हैैं, उसे बच्चा खुद का मजाक उड़ाना समझता है। इसलिए माता-पिता का यह फर्ज है कि वे अपने बच्चों को एक प्यार भरा अच्छा माहौल दें। समय आने पर बाहरी अनुभवों से वह खुद दो-चार होगा।

इस संदर्भ में एक और बात याद रखने वाली है कि जिस प्रकार से नकारात्मक बातों का बच्चों पर गहरा असर होता है, ठीक इसी तरह से ज्यादा सकारात्मक बातों का भी खराब प्रभाव पड़ता है। अगर आप अपने बच्चे से यह कहते हैैं कि तुमसे तो कोई गलती हो ही नहीं सकती या तुम ऐसा कर ही नहीं सकते हो तो इससे बच्चों के अंदर दूसरों से श्रेष्ठ होने का भ्रम हर समय बना रहता है। आप द्वारा कहे गए शब्द बच्चों को प्रोत्साहित नहीं करते हैैं, बल्कि एक तरह से देखा जाए तो उन पर कभी भी असफल न होने का अनदेखा दबाव बना रहता है।


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