पाकिस्तान में हुआ जन्म और भारत में 600 बेटियों के धर्मपिता बन जलाई समरसता की मशाल, ऐसे थे देवीदास आर्य
कानपुर में आर्य समाज की करीब 26 संस्थाएं काम कर रही हैं जिनकी संख्या भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय करीब दस थी। यहां सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में जन्मे स्व. देवीदास आर्य नारी उद्धारक बने और समरसता-सद्भाव का संदेश दिया।
कानपुर, [विवेक मिश्र]। उन्होंने बेबस बेटियों को सम्मान दिलाकर समाज में सद्भाव और समरसता की मशाल जलाई थी, जिसे उनका तंत्र (आर्य समाज से जुड़े लोग) अब भी प्रज्वलित किए है। सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में जन्मे नारी उद्धारक स्व. देवीदास आर्य जरूरतमंदों के मददगार रहे। आर्य कन्या इंटर कालेज गोविंद नगर के जरिये बेटियों की शिक्षा-दीक्षा को नए आयाम दिए। आजाद भारत के अमृत महोत्सव के सफर में धर्म पिता बनकर गरीब परिवारों की 600 बेटियों की शादियां कराईं और समाज में समरसता के साथ नारी सशक्तीकरण का मजबूत संदेश दिया। उनकी मुहिम आज मिशन बनकर काम कर रही है।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय कानपुर में आर्य समाज की करीब 10 संस्थाएं थीं, वर्तमान में इनकी संख्या 26 है। आर्य कन्या इंटर कालेज के प्रबंधक व आर्य समाज गोविंद नगर के संरक्षक 87 वर्षीय शुभ कुमार वोहरा बताते हैं कि स्व. देवी दास आर्य का जन्म तीन जून, 1922 को ग्राम केहर (जिला सक्खर, सिंध) में विद्याराम एवं पद्मादेवी हजारानी के घर हुआ था। उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आठ साल तक पढ़ाया भी। 1945 में सक्खर (पाकिस्तान) में आर्य वीर दल में शामिल होने के बाद जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वर्ष 1947 में कानपुर आकर विस्थापितों को दुकानें व आर्थिक सहायता दिलवाई।
पुलिस की मदद से वर्ष 1980 में मूलगंज से 3500 से भी अधिक महिलाओं को असामाजिक तत्वों व वेश्यालयों से मुक्त कराया। ऐसी ही गरीब परिवारों की 600 महिलाओं की शादी खुद धर्मपिता बनकर कराई। 55 वर्ष तक देवीदास आर्य का सानिध्य और उनके साथ बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। इस दौरान उन पर कई बार प्राणघातक हमले हुए, लेकिन बिना डरे जुटे रहे।
700 अंतरजातीय विवाह कराए, जबकि 300 दंपतीयों के मनभेद मिटाकर गृहस्थ जीवन को बचाया। 1983 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह व देश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। 1988 में उनके नागरिक अभिनंदन में भी ज्ञानी जैल सिंह ने शिरकत की थी। निजाम हैदराबाद की ओर से हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचारों के विरोध में उन्होंने आंदोलन चलाया और 149 दिन तक जेल में रहे थे। 25 अक्टूबर, 2001 को उनका देहावसान हो गया लेकिन उनके सेवा कार्यों को आगे बढ़ाने का सतत प्रयास अब भी जारी है।
गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन की स्थापना कराई : शुभ वोहरा ने बताया कि 1939 में मुस्लिम दंगों के कारण पढ़ाई अधूरी छोड़ उन्हें गांव त्यागना पड़ा। उन्होंने 'दीपक' समाचार पत्र भी निकाला। गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन, आर्य समाज, श्मशान घाट व कई संस्थाओं की स्थापना में अहम योगदान रहा। तत्कालीन महापौर रवींद्र पाटनी ने चावला मार्केट चौराहा का नाम देवीदास आर्य चौक किया था।
सभासद बने, भ्रष्टाचार के 50 से अधिक मामले खोले : द वीदास ने जनसंघ की ओर से नगर महापालिका के चुनाव में सभासद बनने का रिकार्ड बनाया। भ्रष्टाचार के 50 से अधिक मामले उजागर करने पर नगर महापालिका ने उन्हें सम्मानित किया था। 1975 के आपातकाल में उन्हें 'मीसा' के तहत जेल भेजा गया। जेल में गलत इलाज से उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। उन्होंने अपने जीवन में 14 बार जेल यात्रा की, लेकिन शासन से कोई पेंशन आदि नहीं ली।