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हमीरपुर में मिले 6 हजार साल पुराने दांत, बर्तन और अवशेष, नदियों किनारे प्राचीन मानव सभ्यता के प्रमाण

हमीरपुर में बेतवा व बिरमा नदी तट के गांवों में पुरातात्विक अन्वेषण का काम वर्ष 2017 से शुरू किया गया था। यहां पर बेतवा और बिरमा नदी की घाटियों के किनारे विकसित होती प्राचीन मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 10 Apr 2021 09:52 AM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 09:52 AM (IST)
हमीरपुर में मिले 6 हजार साल पुराने दांत, बर्तन और अवशेष, नदियों किनारे प्राचीन मानव सभ्यता के प्रमाण
बौद्ध काल के पूर्व की सभ्यता के भी अवशेष।

हमीरपुर, जेएनएन। मुस्करा विकासखंड के 73 राजस्व गांवों और मजरों में किए गए पुरातात्विक सर्वेक्षण में करीब 36 में नदियों के तट पर विकसित होती प्राचीन मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहां हल स्वरूप में नुकीला पत्थर मिला है, जिससे प्रमाणित हो रहा है कि बुंदेलखंड में नदियों और नालों के किनारे मानव ने खेती की शुरुआत कर जंगली जानवरों का शिकार कम किया था। वैसे, छह से 12 हजार साल पुराने दांत भी मिले हैं, जिससे माना जा सकता है कि मानव यहां काफी समय पहले से ही प्रवास करता रहा है और वह विकास की ओर अग्रसर था। इससे अब यहां के पर्यटन विकास की संभावनाएं बढ़ी हैं।

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क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ.एसके दुबे ने बताया कि हमीरपुर में बेतवा व बिरमा नदी तट के गांवों में पुरातात्विक अन्वेषण का काम वर्ष 2017 से शुरू किया गया था। वहां मिट्टी के बर्तन समेत तमाम अवशेष मिले थे। वर्तमान में विकासखंड राठ, गोहांड, सरीला और मुस्करा के सभी गांवों का पुरातात्विक सर्वेक्षण काम पूरा हो चुका है। मुस्करा में ग्राम स्तरीय पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशालय के निदेशक डॉ. आनंद कुमार सिंह के निर्देशन में उनकी टीम ने किया।

टीम में राहुल राजपूत व संदीप कुमार का अहम योगदान रहा। बताया कि बेतवा और बिरमा नदी की घाटियों के सर्वेक्षण में विकसित होती प्राचीन मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। करीब छह हजार साल पहले उन्होंने जंगली जानवरों के शिकार को कम करके खेतीबाड़ी की तरफ रुख कर लिया था। इस तरह वह अपने घुमक्कड़ जीवन को छोडऩे लगे थे। छोटी-छोटी नदियों, नालों और बड़ी-बड़ी झीलों के किनारे आशियाना बनाने लगे थे।ये नदियां अब छोटे नाले के रूप में तब्दील हो गई हैं। कुछ सौ वर्ष पहले तक इनमें साल भर पानी बहता रहता था।

बौद्ध काल के पूर्व की सभ्यता के भी अवशेष मिले

डॉ. दुबे के अनुसार, सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप 12 गांवों में बौद्ध काल से पहले की सभ्यता के अवशेष भी मिले हैं। वहां मिले मिट्टी के विशेष तरह के बर्तनों से टीलों की पहचान हुई है। प्राचीन स्थलों की संख्या सीमित होने के कारण यह कयास लगया जा रहा है कि वर्तमान से करीब दो से तीन हजार वर्ष पहले तक बस्तियां बहुत सीमित थीं। धीरे-धीरे इनका विकास हुआ।

चंदेल राजाओं के बनवाए मंदिर भी मिले

चंदेल राजाओं के समय अनेक मंदिरों का निर्माण आरंभ हो गया था। इनमें सरीला विकासखंड के अंतर्गत ग्राम करियारी में स्थित प्राचीन मठ सबसे भव्य है। इसे राज्य पुरातत्व विभाग ने राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया है।

170 गांवों में भी मिली प्राचीन धरोहरें

पुरातत्व अधिकारी ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान ऐसे अनेक स्थल मिले हैं, जिनकी समुचित देखभाल न होने के कारण वह नष्ट होने की कगार पर हैं। इनको ग्राम स्तर पर ही संरक्षित कराने की जरूरत है। जिले के चार विकास खंड़ों के सर्वेक्षण में 170 गांवों में पुरातत्व महत्व के अवशेष सामने आए हैं। ग्राम करियारी व खंडेह के स्मारकों को राजकीय संरक्षण में लिया जा चुका है। इसके साथ ही नांदगांव का चंदेली मंदिर, पहाड़ी भिटारी का भूमिगत मंदिर व हमीरपुर नगर में स्थित ब्रिटिश कालीन कलात्मक कब्रों को संरक्षित किया जा रहा है।

  • विकसित होती प्राचीन मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह करीब छह हजार साल पुराने हैं। कैथा व कछवा गांवों में विद्यमान स्मारकों को भारत सरकार ने पहले ही संरक्षित कर दिया है। -डॉ. एसके दुबे, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, झांसी।

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