खामोश हुई थिरकन, कलाकारों के मन व्यथित
पद्म विभूषण से सम्मानित कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज के निधन से शोक की लहर।
जासं, कानपुर : पद्म विभूषण से सम्मानित कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज के निधन से शास्त्रीय नृत्य के कलाकारों में शोक की लहर दौड़ गई। उनसे शिक्षा लेने वाले कलाकार अचानक इस घटना ने मानो आघात दिया है। उन्होंने महाराज को श्रद्धांजलि दी और अपने विद्यार्थियों को उनके जीवन संस्मरण सुनाए।
आजाद नगर स्थित कत्थक केंद्र की नृत्यांगना और डीजी कालेज में संगीत की विभागाध्यक्ष संगीता श्रीवास्तव ने बताया कि जैसे ही घटना का पता लगा, मन व्यथित हो गया। महाराज जी हमारे गुरु व मार्गदर्शक थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन कत्थक नृत्य को समर्पित कर दिया। यह मेरा सौभाग्य है कि वर्ष 2002 में गुरु जी से शिक्षा हासिल कर सकी। संगीता ने बताया कि उन्होंने दिल्ली में लगभग दो वर्ष रहकर महाराज जी से शिक्षा ग्रहण की और फिर समय-समय पर उनके द्वारा संपादित कार्यशालाओं में भी प्रतिभाग किया था। उनसे कानपुर, लखनऊ व दिल्ली में कई बार नृत्य की बारीकियों को सीखने का सौभाग्य मिला। उन्होंने बताया कि महाराज जी कहते थे कि संपूर्ण प्रकृति में नृत्य संगीत है। हमारे ह्रदय की धड़कन में संगीत है, रिद्म है। भावों की अभिव्यक्ति किस प्रकार होनी चाहिए, किस प्रकार अंग संचालन होना चाहिए, ठाठ का व खड़े होने का अंदाज भी उनसे ही सीखा।
कवि डा. सुरेश अवस्थी ने कहा कि बिरजू महाराज का जाना कला जगत की अपूर्णीय क्षति है। जैसे कत्थक की लय थम सी गई है। 15 मार्च 2008 को लाजपत भवन में स्मृति संस्था की ओर से आयोजित संगीत संध्या में डा. अवस्थी को महाराज जी से भेंट करने व कला दर्शन का सौभाग्य मिला था। समारोह में राजनेता श्रीप्रकाश जायसवाल व संयोजक राजेन्द्र मिश्र बब्बू ने उन्हें 'मुन्नू गुरु अवार्ड' से सम्मानित किया था। उनकी प्रस्तुतियों पर कला प्रेमियों का आनंद व उल्लास चरमोत्कर्ष पर था। महाराज जी ने जब हाथ जोड़कर अभिवादन किया तो प्रेक्षागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। जयपुरिया स्कूल के नृत्य विभागाध्यक्ष विपिन निगम ने बताया कि वह खुद को बहुत भाग्यशाली मानते हैं कि महाराज जी की सेवा करने का मौका मिला। बात वर्ष 2010 की है, जब पहली बार महाराज जी को सामने देखा। वह हमेशा प्यार से मुस्कराते और फिर हौसला बढ़ाते। एक बार कंधे पर हाथ रखकर बोले कि तुम कर सकते हो, बस मेहनत करनी होगी। इसके बाद जब भी विपिन को मौका मिलता, वह दिल्ली, मुंबई, लखनऊ आदि स्थानों पर आयोजित उनकी कार्यशाला में शामिल होने लगे।