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गंगा में जल की स्थिति का भविष्य बताएगा 'धारा वाटर लेवल' यंत्र

आइआइटी के छात्र श्रीहर्षा व उनकी टीम ने एक ऐसा यंत्र बनाया है जो गंगा के जलस्तर का डाटा इकट्ठा कर नदी में जल की स्थिति का भविष्य बता सकता है।

By Edited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 12:07 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 11:58 AM (IST)
गंगा में जल की स्थिति का भविष्य बताएगा 'धारा वाटर लेवल' यंत्र
गंगा में जल की स्थिति का भविष्य बताएगा 'धारा वाटर लेवल' यंत्र
कानपुर, विक्सन सिक्रोड़िया।आइआइटी के छात्र श्रीहर्षा व उनकी टीम ने एक ऐसा यंत्र बनाया है जो गंगा के जलस्तर का डाटा इकट्ठा कर नदी में जल की स्थिति का भविष्य बता सकता है। 'कृत्स्नम' स्टार्टअप के तहत विकसित किए गए इस यंत्र को 'धारा वाटर लेवल' नाम दिया गया है। ये एक साल तक डाटा इकट्ठा कर नदी में सूखे और बाढ़ की भविष्यवाणी करने में सक्षम है।
आइआइटी कानपुर से सिविल इंजीनिय¨रग ब्रांच से बीटेक व वाटर रिसोर्स से एमटेक करने वाले श्रीहर्षा ने दो साल तक शोध करने के बाद इसे तैयार किया है। इसे इजाद करने वाली टीम में आइआइटी के छात्र शिवम शर्मा, देवदीप, दीपक आर्या, मुद्रित गर्ग, पृथ्वी सागर व एनआइटी भोपाल के छात्र नीरज कुमार राय भी शामिल है। फिलहाल देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, मुरादाबाद व रामपुर समेत 19 स्थानों पर यह यंत्र गंगा के जलस्तर का डाटा तैयार कर रहा है। ऐसे काम करता है यंत्र श्रीहर्षा के मुताबिक इस यंत्र को रिमोट ट्रांसमीटर मॉड्यूल पर तैयार किया गया है।
वाटर सेंसर व टेम्प्रेचर सेंसर से बना यह उपकरण एक छोटी बैटरी व सोलर पैनल के सहारे साल भर तक जल स्तर व उसके तापमान को रिकॉर्ड कर सकता है। यह पहला ऐसा यंत्र है जो इतने कम समय अंतराल में जल स्तर बताने में सक्षम है। सेंट्रल वाटर कमीशन के साथ करार के तहत 18 स्थानों पर इसे लगाया गया है जबकि देवप्रयाग में इसे आइआइटी कानपुर ने अपने स्तर पर लगाया है। यह पानी से दस मीटर ऊंचाई पर लगाया जाता है और यह वहां से जल स्तर की मॉनीट¨रग करता रहता है।
किसानों को बारिश से आगाह करेगा 'पानी'
यह यंत्र मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए डाटा एनालिसिस की पानी (प्रोविजन ऑफ एडवाइजरी नेसेसरी एरीगेशन) टेक्निक तैयार की है। इसमें सेटेलाइन, ग्राउंड सेंसर, मिट्टी में नमी, तापमान का डाटा विश्लेषण कर अगले सात दिनों बाद के मौसम का मिजाज बताया जा सकता है। इससे किसान फसल की बोआई के दौरान मदद ले सकते हैं। इसके लिए कृषि विकास केंद्रों के साथ करार किया गया है। श्रीहर्षा ने बताया कि आइआइटी कानपुर व यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन इस परियोजना में मिलकर काम कर रहे हैं।

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