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साहब.. मैं जिंदा हूं, इंसाफ दिलाइये..

जागरण संवाददाता, कानपुर : नाना की नौकरी के अधिकृत वारिस की नौकरी का मौका उसके ही रिश्तेदारों ने फर्ज

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Jun 2018 03:37 PM (IST)Updated: Tue, 26 Jun 2018 03:37 PM (IST)
साहब.. मैं जिंदा हूं, इंसाफ दिलाइये..
साहब.. मैं जिंदा हूं, इंसाफ दिलाइये..

जागरण संवाददाता, कानपुर : नाना की नौकरी के अधिकृत वारिस की नौकरी का मौका उसके ही रिश्तेदारों ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर छीन लिया। यही नहीं फंड का पैसा भी हड़प लिया। अब वह पैराशूट फैक्ट्री से लेकर पुलिस अफसरों के पास इंसाफ के लिए भटक रहा है।

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तलाक महल निवासी फैज खान के नाना मुन्ना ऑर्डिनेंस पैराशूट फैक्ट्री में लाइनमैन थे। उनकी छह पुत्रियां थीं, इसलिए कैरेक्टर रोल में नाती फैज का नाम लिखा दिया था। 2001 में मुन्ना की मृत्यु हो गई। इसके बाद मृतक आश्रित के रूप में नौकरी का वारिस फैज था लेकिन उसकी मौसी रुकसार फातिमा और उनके पति मोहम्मद अहमद ने पैराशूट फैक्ट्री में फैज का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगा दिया कि उसकी मृत्यु बीमारी से 1998 में ही हो गई। फैज तब छोटा था, बालिग होने पर उसने पैराशूट फैक्ट्री में नौकरी और फंड के लिए आवेदन किया तो मामले का पता चला। फैज ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सवाल पूछा तो पैराशूट फैक्ट्री ने 27 अप्रैल 2018 को जानकारी दी कि प्रार्थिनी की बड़ी बहन रुकसार ने फैज का मृत्यु प्रमाण पत्र लगाया था। उन्होंने ही पत्राचार कर मुन्ना की सबसे छोटी बेटी को नौकरी के स्थान पर पारिवारिक पेंशन का आवेदन किया। उनकी पेंशन 2003 में चालू कर दी गई है। उसके बाद से फैज इंसाफ के लिए घूम रहा है। पैराशूट फैक्ट्री प्रबंधन का तर्क है कि कर्मचारी की मृत्यु के पांच साल बाद उसका आश्रित नौकरी का दावा नहीं कर सकता, समय निकल चुका है। वहीं, फर्जीवाड़ा कर उसे मृत दिखाने और मृतक की सभी पुत्रियों के समान अधिकार वाले फंड को हड़पने के मामले में रुकसार और उसके पति के खिलाफ कार्रवाई को फैज पुलिस के चक्कर काट रहा है। डीएम, एसएसपी को आवेदन दिया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं कर्नलगंज व रेल बाजार पुलिस एक दूसरे के क्षेत्र का मामला होने की बात कहकर उसे टरका रही है।


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