सुरक्षा एजेंसियों के लिए खास है सफेद गिद्ध, जो जन्म के समय काला और व्यस्क होने पर बदल देता है रंग
उन्नाव में रहने वाला वृद्ध मध्यप्रदेश के खंडवा में सफेद गिद्ध की तस्करी करते पकड़ा गया है। वैसे तो दुर्लभ प्रजाति वाले ये गिद्ध उत्तर भारतीय राज्यों में पाए जाते हैं जिनकी बीते कई सालों से संख्या कम होती जा रही है।
कानपुर, जागरण संवाददाता। दुर्लभ प्रजाति में शामिल सफेद गिद्ध (इजिप्शियन वल्चर) की संख्या तेजी से घट रही है। इसके पीछे इनकी तस्करी प्रमुख वजह है। हाल ही में मप्र के खंडवा में उन्नाव के एक बुजुर्ग को इन गिद्धों की तस्करी करते पकड़ा गया था। विशेषज्ञ बताते हैं कि शोध और दवाओं के निर्माण आदि के लिए भी इनकी तस्करी की जाती है। इन गिद्धों को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त घोषित किया है।
यहां मिलते हैं सफेद गिद्ध : हिमालय की शिवालिक रेंज के साथ ही यूपी, उत्तराखंड, पंजाब आदि उत्तर भारतीय राज्यों और पाकिस्तान व नेपाल में सफेद गिद्ध पाए जाते हैं।
जानवरों का मांस बना जान का दुश्मन : जानवरों का मांस भी इन गिद्धों की जान का दुश्मन बना हुआ है। दरअसल, ज्यादा दूध आदि के लिए जानवरों को प्रतिबंधित दवाएं दी जाती हैं। इन जानवरों का मांस गिद्ध खाते हैं तो दवाओं का अंश इनके अंदर भी चला जाता है। इससे इनके गुर्दे खराब हो जाते हैं। धीरे-धीरे इनकी मौत हो जाती है।
जन्म के समय काला होता है रंग : चिडिय़ाघर के पशु चिकित्सक डा. मोहम्मद नासिर के मुताबिक, उत्तर भारत के अलावा भारत में अन्य जगह यह प्रवासी पक्षी के तौर पर रहते हैं। सफेद गिद्ध अपने जन्म के दौरान काले रंग के होते हैं, लेकिन जब यह वयस्क हो जाते हैं तो इनका रंग सफेद हो जाता है। साथ ही इनकी चोंच पीले रंग की हो जाती है। इन गिद्धों की उपजातियों के रंगों में मामूली फेरबदल भी दिखाई देता है। यह जिस वातावरण में रहते हैं, उसके आधार पर भी इनके रंगों में अंतर पाया जाता है। इसके पंखों का रंग सफेद ही नहीं, स्लेटी से लेकर कत्थई रंग का भी हो सकता है, लेकिन उड़ते समय यह सफेद रंग का नजर आता है।
सुरक्षा एजेंसियां भी करती हैं इस्तेमाल : इन गिद्धों को प्रशिक्षण देकर तमाम सुरक्षा एजेंसियां इनका इस्तेमाल सूचना संकलन और सूचनाओं का आदान प्रदान करने में भी करती हैं।