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Coronavirus News: रियलिटी चेक में कानपुर के प्राइवेट हॉस्पिटल फेल, ये चार केस खोल रहे दावों की पोल

कानपुर शहर में शासन और प्रशासन के आदेशों को नर्सिंगहोम संचालक नहीं मान रहे हैं। हिदायत के बावजूद भर्ती से पहले एडवांस रकम मांगी जा रही है रुपयों के इंतजाम करने में गेट पर ही मरीज की जान जा रही है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 08:58 AM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 08:58 AM (IST)
Coronavirus News: रियलिटी चेक में कानपुर के प्राइवेट हॉस्पिटल फेल, ये चार केस खोल रहे दावों की पोल
नर्सिंगहोम संचालक नहीं मान रहे सरकारी आदेश।

कानपुर, जेएनएन। कोरोना संक्रमित मरीजों को इलाज में कोई समस्या न हो, इसलिए सरकार इलाज में बाधा बन रहे नियमों में रोजाना ढील दे रही है। दो दिन पहले मुख्यमंत्री बयान दे चुके हैं कि केवल पैसों के लिए मरीज का इलाज न रोका जाए। टेस्ट रिपोर्ट की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है और सरकार ने साफ कर दिया है कि कोई अस्पताल मरीज को बाहरी होने या पहचान पत्र न होने पर भर्ती करने से मना नहीं कर सकता। इसके बाद भी निजी अस्पतालों की मनमर्जी चल रही है। रिपोर्टर ने निजी अस्पतालों का रियलिटी चेक किया तो हर जगह मरीज व तीमारदार रोते बिलखते मिले। सरकार द्वारा नियमों में ढील देकर उन्हें मरहम लगाने की जो कोशिश की गई है, वह जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रही है।

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Case-1 : समय - दोपहर एक बजकर 15 मिनट। जेएल रोहतगी अस्पताल में मौजूद श्याम नगर निवासी आशीष आनंद ने बताया कि कुछ दिनों पहले माता-पिता को कोरोना संक्रमित होने पर भर्ती कराया। पहले बेड के आठ हजार रुपये लिए जा रहे थे, अब 10 हजार रुपये की सूची चस्पा कर दी गई है। प्रथम तल पर तीमारदार रहते हैं। शाम को जो चिकित्सक आते हैं, वह मरीज का हाल बताते हैं। अस्पताल में कोई स्क्रीन नहीं लगाई गई है। न ही नोडल अधिकारी का कहीं नंबर चस्पा दिखा। कोविड इंचार्ज मुरलीधरन ने बताया कि अभी स्वजन के लिए स्क्रीन नहीं लगाई गई है। हालांकि उनके कमरे में स्क्रीन लगी है। जो स्वजन कहेंगे, उन्हें इलाज की तस्वीरें दिखाई जा सकती हैं।

Case-2 : समय- दोपहर एक बजकर 35 मिनट। मरियमपुर अस्पताल के गेट के बाहर खड़े रतनलाल नगर निवासी अवनीश ने शुक्रवार रात अपनी मां को भर्ती कराया। अवनीश ने बताया कि ऑक्सीजन स्तर 85 हो गया था, जैसे ही लेकर आए तो एक लाख रुपये मांगे गए। रुपये देने के बाद ही मां को भर्ती किया गया। प्रशासन द्वारा जो रेट तय किए गए हैं, उसे लेकर कोई बात नहीं होती। न ही अस्पताल में कोई स्क्रीन लगाई गई है। मेनगेट से लेकर अंदर तक सावधानियों संबंधी निर्देश जरूर चस्पा थे, हालांकि नोडल अधिकारी का नंबर नहीं दिखा। अवनीश ने कहा, सभी मरीजों के स्वजन से भर्ती के समय एक लाख रुपये मांगे जाते हैं। एसीएम द्वितीय अमित राठौर ने बताया कि इस मामले को गंभीरता से दिखवाएंगे।

Case-3 : बर्रा विश्वबैंक निवासी वीनू सचान के परिवार के सदस्य दीपक कोरोना से संक्रमित थे। शनिवार सुबह उन्हें बर्रा स्थित प्रिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भर्ती से पहले उन्हें 2.62 लाख का पैकेज बताया गया। मजबूरी में एक लाख रुपये किसी तरह जमा कर दिए। बावजूद इसके मरीज की मृत्यु हो गई। आरोप है कि अंतिम संस्कार के समय ध्यान आया कि मृतक के हाथ की अंगूठी अस्पताल के कर्मचारियों ने उतार ली है। दाह संस्कार के बाद अस्पताल पहुंचे तो उन्हें अंगूठी वापस कर दी गई। अस्पताल में डीएम के आदेश के बाद भी स्क्रीन नहीं लगाई गई।

Case-4 :  नौबस्ता मछरिया निवासी कलावती का इलाज स्वरूप नगर के एक अस्पताल से चल रहा था। चिकित्सक ने प्रिया अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। नाती कलावती को लेकर प्रिया अस्पताल पहुंचा और सारे कागज रिसेप्शन में जमा कर दिए। इसके बाद अस्पताल ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया। स्वजन ने दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए अपने कागज मांगे, लेकिन पता चला कि कागज खो गए हैं। स्टैटिक मजिस्ट्रेट एमआइ सिद्दीकी ने बताया कि उन्हें जानकारी हुई तो कागज तलाश कराए। हालांकि तब तक देर हो गई और कलावती की मृत्यु हो गई।

सरकार के निर्देशों की उड़ रहीं धज्जियां

अस्पतालों में बेड खाली बताए जा रहे हैं, लेकिन मरीज आसानी से भर्ती नहीं हो रहे। अभी भी उन्हें कागजों की खानापूरी करनी पड़ रही है।

-मरीज के तीमारदारों पर एडवांस जमा कराने का दबाव बनाया जा रहा है।

-अधिकांश निजी अस्पतालों में उनके पैकेज के आधार पर इलाज हो रहा है।

-डीएम का निर्देश है कि अस्पताल में भर्ती मरीज का तीमारदार हाल देख सकें, इसलिए बाहर स्क्रीन लगाई जाए। यह सुविधा अब तक शुरू नहीं की जा सकी है।


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