राष्ट्रपति ने कानपुर की कलावती को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा, 32 साल से चला रहीं मुहिम
पिछले 32 साल से खुले में शौच के खिलाफ मुहिम चला रही कानपुर की कलावती को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया है।
कानपुर, जेएनएन। पिछले 32 साल से खुले में शौच के खिलाफ मुहिम चला रही कलावती को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रविवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ये सम्मान दिया है। शहर समेत उत्तर प्रदेश में ओडीएफ के लिए उन्होंने महिला होकर जो काम किया है, वह प्रेरणादायक है। मर्क का न्यरोबियॉन फोर्ट कलावती को टू हीरोज के रूप में सम्मानित करने के साथ ही अपना ब्रांड एंबेसडर भी बना चुका है।
42 साल पहले आईं थी कानपुर
राजापुरवा की मलिन बस्ती में रहने वाले जयराज सिंह पेशे से राजमिस्त्री थे और करीब 42 साल पहले कलावती से शादी करके सीतापुर से विदा कराकर शहर लाए थे। पति के साथ वह भी भवन निर्माण में मजदूरी करने लगी और उनके साथ राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया था। इसी बीच वह श्रमिक भारती संस्था से जुड़ गईं। संस्था के गनेश पाण्डेय से मिलकर उन्होंने कर्ज में डूबे बस्ती के लोगों की दयनीय हालत पर चिंता जताई थी। इसके बाद उन्होंने बूंद बचत नाम से समूह बनाकर प्रभावती और ऊषा समेत कई सदस्यों को जोड़ा और दस-दस रुपये का सहयोग लेना शुरू किया। इसके बाद जोड़ी हुई रकम जरूरत मंद को देकर धीरे धीरे सभी को कर्ज मुक्त कराया। यहां से उन्होंने समाज के लिए काम शुरू किया।
महिला सुरक्षा को लेकर उठाया था बीड़ा
बस्ती में शौचालय न होने के कारण लोग खुले में शौच करने जाते थे। ऐसे में महिलाओं की असुरक्षा पर उन्होंने चिंता जताई और शौचालय निर्माण के लिए मुहिम छेड़ दी। करीब 32 साल पहले पूर्व मुख्य नगर अधिकारी से मिलीं और तीन लाख की लागत से 55 सीट के सामुदायिक शौचालय का निर्माण कराया था।
अबतक 4 हजार से ज्यादा बनवाए शौचालय
कलावती ने मुहिम शुरू करते हुए पचास से लेकर तीन सौ रुपये तक परिवारों से जमा करके शौचालय का निर्माण कराना शुरू कर दिया था। इस तरह अभियान जारी रखते हुए उन्होंने राखी मंडी, जूही, समेत कई जगह सामुदायिक और तीन हजार एकल शौचालय बनवाकर लोगों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई। इसके बाद उनका अभियान गांवों की ओर बढ़ गया और घर-घर शौचालय का अभियान छेड़ दिया। शहर समेत आसपास क्षेत्र में अबतक वह चार हजार से ज्यादा शौचालय बनवा चुकी हैं। पति की मौत के बाद बेटी और दामाद के साथ रहने वाली कलावती का मानना है खुद बदलने से समाज की तस्वीर बदलेगी, केवल सरकारी मशीनरी के भरोसे बैठे रहेंगे तो समाज बदल चुका।