आनंदपुरी जैन मंदिर में प्रभु आराधना का हुआ आयोजन, भक्तों को दी जैन धर्म की शिक्षा
आनंदपुरी जैन मंदिर में प्रभु आराधना शांतिधारा पूजन गुरु भक्ति हुआ आयोजन। मुनिवचन में आचार्य ने भक्तों पर की जैन धर्म की शिक्षा की बरसात। गुरुवर ने कहा कि मानव के अंदर जिस प्रकार के गुण भरे जाएंगे। उसका आचरण भी उसी प्रकार का हो जाता है।
कानपुर, जेएनएन। मानव की प्रवृत्ति उसके कर्म को तय करती है। जब मानव शुभ प्रवृत्ति लेकर कार्य करता है तो शुभ कर्म आते और अशुभ कर्म लेकर कार्य करता तो अशुभ कर्म आते हैं। मनुष्य की आत्मा से कर्म का संबंध टेप रिकार्डर जैसा होता है। जैसा भरा जाएगा वैसा ही सामने आएगा। यह बातें सोमवार को आनंदपुरी जैन मंदिर में मुनिवचन के दौरान आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने कहीं।
आनंदपुरी जैन मंदिर में सात दिनों के प्रवास के दौरान आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने प्रात:काल भगवान पार्श्वनाथ का शांतिधारा अभिषेक पूजन अनुयायियों को कराया। पूजन के बाद हुए प्रभु आराधना में आचार्य श्री ने अनुयायियों संग भगवान का मनन किया। अनुयायियों ने आचार्य श्री का आशीष लेकर सुख-समृद्धि की कामना की। इसके बाद हुए मुनिवचन में आचार्य श्री ने कहा कि आत्मा का कर्म से संबंध टेप रिकार्डर जैसा होता है। जिसमें जो भी बाेले वो रिकार्ड हो जाता है। जिसका अनुसरण कर मानव की प्रवृत्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है। गुरुवर ने कहा कि मानव के अंदर जिस प्रकार के गुण भरे जाएंगे। उसका आचरण भी उसी प्रकार का हो जाता है। कर्म सिद्धांत का दर्शन ही स्वेच्छा से नहीं होता है। मानव जीवन में जैसा कर्म करता उसके साथ वैसा ही होता है। अनुयायियों के कर्म के महत्व के बारे में बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि बबुल का बीज बोकर किसी को भी आम प्राप्त नहीं होते हैं। कलियुग में मानव जाति पाप के मार्ग पर चलकर जीवन में सुख की कामना कर रही है। जबकि जग-जाहिर है कि बुराई का फल बुरा और भलाई का फल अच्छा होता है। इसलिए मानव को अपने जीवन काल में दूसरों की मदद व समाज सेवा के कार्य करते हुए ईश्वर का मनन करना चाहिए। इस अवसर पर मुनि पीयूष सागर महाराज, ऐलक पर्व सागर महाराज, डॉ. अनूप जैन, महेंद्र कटारिया, अजय पटौदी, संजय सोगानी, अनूप जैन आदि उपस्थित रहे।