पुण्यतिथि पर विशेष: कानपुर से शुरू हुआ था पं. दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक सफर, शहर से जुड़ी हैं सुनहरी यादें
Pandit Deendayal Updadhyaya Death Anniversary जाने-माने विचारक दार्शनिक और जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा में हुआ था। महज सात साल की अल्पायु में ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। Pandit Deendayal Updadhyaya Death Anniversary आज पूरा देश राजनीतिक पार्टी जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्वाण दिवस को समर्पण दिवस के रूप मनाएगा। लेकिन क्या अाप जानते हैं एकात्म मानववाद और अंत्योदय दर्शन के प्रणेता पं. दीनदयाल की शिक्षा कहां हुई, राजनीतिक सफर कहां व कैसे शुरू हुआ और कानपुर से उनका कैसा रिश्ता है? यदि नहीं, तो खबरों की इस कड़ी में हम आपको पं. दीनदयाल उपाध्याय के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही किस्से बताएंगे।
संक्षेप में जानिए - कैसा था पंडित जी का जीवन
जाने-माने विचारक, दार्शनिक और जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा में हुआ था। महज सात साल की अल्पायु में ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा। जन्म से बुद्धिमान और उज्ज्वल प्रतिभा के धनी दीनदयाल ने अपनी स्कूल की शिक्षा जीडी बिड़ला कॉलेज, पिलानी, और स्नातक की की शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय के सनातन धर्म कॉलेज (एसडी) कॉलेज से पूरी की। वर्ष 1937 में अपने कॉलेज के दिनों में वे कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ जुड़े। वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूर्ण करने के बाद वे संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आर.एस.एस. के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए। अल्पायु से ही कई उतार-चढ़ाव देखने वाली इस शख्सियत का 11 फरवरी 1968 को निधन हो गया।
कानपुर के एसडी कॉलेज से जुड़ी हैं कई यादें
नवाबगंज स्थित एसडी कॉलेज का पुराना छात्रावास पंडित दीनदयाल उपाध्याय की स्मृतियों को संजोए है। यहां वह वर्ष 1937 से 1939 तक रहे थे। इस कॉलेज से प्रथम श्रेणी में बीए करने के बाद वह एमए करने आगरा चले गए थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें ताजा करता छात्रावास का 100 नंबर कमरा किसी को आवंटित नहीं किया जाता है। इस कक्ष को बस सफाई के लिए ही खोला जाता है। कानपुर आने के बाद यहां विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज में उन्होंने प्रवेश लिया। इसे एसडी काॅलेज के नाम से भी पहचाना जाता है। ओल्ड हॉस्टल की सीढिय़ां चढ़कर जाने के बाद करीब सौ मीटर लंबे गलियारे में ठीक सामने सबसे अंतिम सौ नंबर कमरे में वह और उनके दोस्तों की तत्कालीन हालात पर चर्चा होती थी।
बापू के निधन के बाद मोती बिल्डिंग में रहे थे
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी के निधन के बाद जनसंघ से जुड़े पंडित दीनदयाल उपाध्याय काफी लंबे समय तक कलक्टरगंज स्थित मोती बिल्डिंग में मुख्य नारायण सिंह के साथ रहे थे। माहौल शांत होने के बाद वहां से निकले थे। इस भवन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने पिता के साथ उस समय रहते थे, जब वह कानपुर के डीएवी काॅलेज में पढ़ते थे।
कानपुर में बने थे जनसंघ के महामंत्री
फूलबाग मैदान में 1951 में जनसंघ का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था। उसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अध्यक्ष बनाया गया। पं. दीनदयाल उपाध्याय महामंत्री बने थे। हर वर्ष अधिवेशन में अध्यक्ष तो बदलते गए लेकिन 1967 तक वह लगातार महामंत्री ही बनते रहे। 1967 में वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, लेकिन कुछ माह बाद 11 फरवरी 1968 को उनका निधन हो गया। अधिवेशन के दौरान वह कानपुर में बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह के आवास पर रहते थे। वह पैदल ही अधिवेशन स्थल जाते थे।
इटैलियन सैलून में बाल कटवाने गए थे
कानपुर में वह एक बार जनसंघ के कार्यालय में रुके हुए थे। कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे। पता चला कि वह दाढ़ी बनवाने गए हैं। एक सज्जन सभी सैलून तलाश आए। जब वह लौटे तो उनसे पहले दीनदयाल उपाध्याय लौट आए। उन सज्जन ने पूछा कि मैं तो सभी सैलून देख आया, आप कहां गए थे। उन्होंने बताया कि इटैलियन सैलून गए थे। उनका आशय फुटपाथ पर पत्थर पर उस्तरा घिस कर दाढ़ी बनाने से था।
रोज शाम को जाते थे शाखा, उनके नाम पर बना स्कूल
पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहीं भी रहें, रोज शाम को शाखा जरूर जाते थे। बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह के परिवार से उनका काफी करीबी रिश्ता था। उनके निधन पर नरेंद्रजीत सिंह की धर्म पत्नी सुशीला सिंह काफी व्यथित हो गईं। उन्होंने अपने सभी जेवर बेच कर उनके नाम पर दीनदयाल विद्यालय शुरू कराया।
इनकी भी सुनिए
जिस तरह डीएवी कॉलेज में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति को संजोने के लिए सरकार ने धन जारी किया है। उसी तरह वीएसएसडी कालेज के छात्रावास के कक्ष को भी पंडित दीनदयाल के स्मारक के रूप में बनाया जाए। - डॉ. श्याम बाबू गुप्ता, निदेशक, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध केंद्र।