Move to Jagran APP

दीवाली के मौके पर फिर जगाएं रिश्तों का जादू, हर दिन होगी आपकी दीवाली

कोरोना संक्रमण का असर रिश्तों पर भी पड़ा है। कारण हर कोई अपने-अपने परिवार को सुरक्षित रखना चाहता है। ऐसे में कहीं पुराने रिश्तों की गांठें खुली हैं तो कहीं थोड़ा छिटक भी गए हैं। जो साथ रहकर भी दूर रहते हैं और कई बार दूर रहकर साथ चलते हैं..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 03:14 PM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 03:14 PM (IST)
दीवाली के मौके पर फिर जगाएं रिश्तों का जादू, हर दिन होगी आपकी दीवाली
टटोलिये उस रिश्ते को, क्योंकि जीवन के बहुत पल ऐसे होते हैं जहां सिर्फ सखी ही राहत हो सकती है।

अनीता सहरावत। कहते हैं न कि किताब आंखों के जितनी नजदीक होती है, उसे पढ़ना उतना ही मुश्किल होता है। रिश्तों की किताब के साथ भी कुछ ऐसा ही है। ये हमारे जितने नजदीक हैं, कई बार समझ से उतने ही दूर। रिश्तों के जितने रूप, उससे ज्यादा इनके रंग। कभी ये अनसुलझी पहेली है तो कभी जीने का सहारा। कभी आपने सोचा है कि यदि ये न होते तो कितनी फीकी होती हमारी जिंदगी? एक और जरूरी बात भी इसमें शामिल है। वह यह कि इन सभी रिश्तों की धुरी कहीं न कहीं महिलाओं से ही जाकर जुड़ती है। महिलाएं अपनी जिंदगी में रिश्तों के जितने पड़ाव जीती हैं, उन्हें सहेजती और निभाती हैं, क्या ये किसी और के बस की बात होती है। संबंधों में गुंथे इन रिश्तों के आसपास तो हम रहते हैं, लेकिन क्या हम इनसे बात भी करते हैं।

loksabha election banner

मां-बेटी

इस रिश्ते का नाम लेते ही जो मुस्कराहट, भरोसा, दुलार और आपकी आंख की कोर से जो आंसू की बूंद लुढ़क गई है, वही इस रिश्ते की खूबसूरती है, लेकिन पहले की बेटियां सिर्फ हां के साथ अपनी मां की हर बात मानती थीं, क्योंकि घर के बाद उनका रास्ता सिर्फ ससुराल तक ही जाता था। इसके बीच में कॅरियर, आत्मनिर्भरता और दोस्ती के लिए कोई जगह न थी। तब दुनिया सिर्फ उतनी ही दिखती थी जितनी मां के पल्लू से झांकती थी, लेकिन अब बेटियां झगड़ती हैं, डांटती है और सिखाती भी हैं। वे नए ट्रेंड्स के बारे में मां को अपडेट करती हैं। अब दोनों की दोस्ती का दायरा खुल रहा है। बेटी जन्म से ही मां की प्रिय सखी रही है, जहां मां भी अपने अनुभवों और दुख-सुख को उड़ेलकर हल्की होती रही है। आधुनिकता ने इस रिश्ते को खोला तो जरूर है, लेकिन परेशानी तब आती है, जब बेटी ये कहे कि मां उसे समझती नहीं। कई बार तो नौबत चीखने-चिल्लाने और बहसबाजी तक पहुंच जाती है। वे रूठने का हिस्सा भी सिर्फ अपने ही खाते में चाहती हैं, मां को मनाने की उन्हें जरूरत ही नहीं लगती। कई बार छोटी-छोटी बातें इतनी तल्ख हो जाती हैं कि दूरियां अपना मुकाम हासिल कर लेती हैं। हां, कई बार मां भी चीजों के सिरे ठीक से नहीं जोड़ पातीं। इसलिए इतना ध्यान जरूर रहे कि इस रिश्ते को प्यार के साथ भरोसे की भी दरकार है।

सास-बहू

इस रिश्ते को लेकर सबके अनुभव अलग मिलेंगे। खौफजदा बहू और सताई हुई सास के किस्से अब पुराने हैं, क्योंकि ये इसका असली रूप कभी था ही नहीं। ये रिश्ता मां-बेटी के रिश्ते का ही बदला रूप है। इसमें इतनी दिक्कतें क्यों? शायद इसलिए कि सास, बेटी की तरह बहू की गलतियां माफ नहीं कर पाती और न ही बहू, मां की तरह उन्हें प्यार करती है और दोनों ही ताउम्र बहू में बेटी और सास में मां को ढूंढ़ती हैं और शिकायत करती रह जाती हैं। इस रिश्ते की गहराई में उतरकर बातें बहुत कम ही होती हैं। इसलिए दोनों अपने डर और मन खोल ही नहीं पातीं! दोनों को ही यह समझना होगा कि मायका और ससुराल दो अलग-अलग जगह हैं। दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा होंगे ही। सबकी जीवनशैली और पारिवारिक माहौल एक सा हो ही नहीं सकता। तुलना और मैं से निकलकर जिन्होंने इस रिश्त को अपनाया है, वे इसकी खूबसूरती से मालामाल हैं। अगर संयुक्त परिवार में शादी के बाद कोई लड़की काम करना चाहती है तो सासूमां के सहयोग बिना वह अपने सभी कामों में तालमेल ही नहीं बिठा सकती। जाहिर है ऐसे में सास केवल सम्मान चाहती है तो बहू बस प्यार चाहती है।

ननद-भाभी

गौरी को जब भी कोई दिक्कत होती है तो वह तुरंत अपनी ननद अनुराधा को फोन लगाती हैं, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि वह हालात संभाल लेंगी। अनुराधा भी अपनी भाभी को निराश नहीं करती हैं। दोनों में गजब की दोस्ती है। इसकी वजह है, गौरी ने अनुराधा को बहन बनाया और गौरी ने उनमें अपनी सखी तलाशी। किसी भी रिश्ते की कामयाबी के लिए बहुत जरूरी है एक-दूसरे को समझना और सम्मान देना। जब कोई लड़की ब्याहकर आती है तो ससुराल उसके लिए बिल्कुल अंजान जगह है, जहां के रहन-सहन और लोगों के बारे में उसे कुछ पता नहीं, लेकिन अचानक पूरे घर को संभालने की न केवल जिम्मेदारी आ जाती है, बल्कि दबाव बढ़ जाता है सब कुछ परफेक्ट तरीके से करने का। ऐसे में ननद की भूमिका जितनी मददगार होती है, वैसा कोई और नहीं। अब ननद को लेकर दिमाग में बसी फिल्मी छवि टूट रही है। फिर भी जरूरत है इस संबंध पर थोड़ा और खुलकर सोचने की, क्योंकि ये रिश्ता दो घरों और पंरपराओं को जोड़ने या तोड़ने का बहुत ही खास सेतु है।

जेठानी-देवरानी

बड़ा ही खट्टा-मीठा रिश्ता है यह। नोक-झोंक और प्यार से भरे इस रिश्ते के बारे में बहुत ही कम बात होती है। कई जगह ये बहुत मजबूती से खड़ा मिलता है तो कई जगह इनमें तू और मैं की लड़ाई देखने को मिलती है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि घर में चार बर्तन होते हैं तो आपस में खटकते ही हैं। ये ऐसा रिश्ता है, जो दूर रहकर भी हमेशा साथ चलता है। अगर आप इसमें से कोई भी रिश्ता जी रही हैं तो इस बात से इत्तेफाक जरूर रखेंगी कि इसमें एक-दूसरे को स्पेस की जितनी जरूरत है, उतना ही जरूरी है एक-दूसरे का सम्मान और साथ। यूं तो हर रिश्ते की अपनी खूबसूरती है, लेकिन कोई भी रिश्ता किसी एक की जिम्मेदारी और दूसरे का हक नहीं हो सकता। रिश्तों को प्यार से ज्यादा सम्मान बांधकर रखता है। इसलिए समय का बहाना बनाकर रिश्तों से दूरियां न बनाएं।

सखी सहेली

संबंधों की दुनिया में सखी का अपना सुख है। ये अपने आप बन और बंध जाने वाला रिश्ता है। इसका रुतबा इस बात से ही जाहिर हो जाता है कि भगवान ने भी इसे पूजा है। हालांकि कुछ लड़कियां शादी होते ही बचपन की सहेलियों, स्कूल, कॉलेज की दोस्तों से ऐसे अनजान बन जाती हैं, जैसे उन्हें जानती ही न हों। वे रिश्तों की किताब में उन्हें महज एक पन्ना बनाकर बंद कर देती हैं। जब तब उसे खोलकर याद कर लिया और फिर अतीत में दबा दिया। हम ताउम्र अपनी सखियों, सहेलियों को क्यों नहीं सहेजते। शादी के बाद जब हम अपना पुराना कोई रिश्ता नहीं छोड़ते तो फिर सखियों से दूरी क्यों? ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इस संबंध का कोई विकल्प हो सके। हां, ये जरूर होता है कि शादी के बाद हम घर-परिवार में इस कदर रच-बस जाते हैं कि इस रिश्ते पर समय की धूल जमती चली जाती है। कसक तो इसकी जरूर उठती होगी कि बचपन के खेलों की सखी से दोबारा मुलाकात हो, पर पहला कदम कौन उठाए? 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.