चित्रकूट: बारह साल बाद फिर जिंदा हुए करौंहा के ओझा, चकबंदी विभाग की लापरवाही ने बुजुर्ग को सालों दौड़ाया
खुद को जिंदा साबित करने के किस्से तो बहुत सुने होंगे। लेकिन इस लड़ाई में जीत मिल जाए यह अपने आपमे बड़ी बात है। चित्रकूट में एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें बारह साल बाद एक बुजुर्ग खुद को जिंदा साबित कर पाया है।
चित्रकूट, जागरण संवाददाता। विकास खंड करौंहा के 80 वर्षीय ओझा 12 वर्ष बाद फिर से जिंदा हो गए। उनको चकबंदी विभाग ने मार डाला था। मृत दिखा कर उनकी संपत्ति को उनके भतीजों के नाम कर दिया था। शुक्रवार को उप जिलाधिकारी ने ओझा का नाम फिर खतौनी में दर्ज कर किया।
ग्रामीण इलाके में चकबंदी विभाग के लिए कहावत बोली जाती है ‘न खता न बही जो चकबंदी विभाग करे सब सही’। यह बात करौंहा के ओझा पुत्र दीनदयाल पर सटीक बैठती है। चकबंदी विभाग ने ओझा को खाता संख्या पांच में 24 अक्टूबर 2010 को मृतक दिखा दिया था और सगे भतीजे राजाराम व रामराज पुत्र रामशरन के नाम दर्ज कर दिए थे। मृत दिखाए जाने के बाद ओझा तहसील और कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाया रहा लेकिन दस सालों तक कोई मानने को तैयार नहीं था कि वह जीवित है। 8 जून 2022 को मानिकपुर तहसील समाधान दिवस का आयोजन था। जिसमें जिलाधिकारी शुभ्रांत कुमार शुक्ल लोगों के शिकायत सुन रहे थे। उसमें भी ओझा के जीवित होने का मामला पहुंचा। ओझा के पोता राजकिशोर ने डीएम से कहा कि साहब मेरे बाबा अभी जिंदा है लेकिन चकबंदी विभाग ने अपने दस्तावेज में मृत दिखा दिया है। डीएम ने एसडीएम प्रमेश श्रीवास्तव को जांच के आदेश दिए।
जांच के दौरान वास्तव में ओझा जीवित मिले। मानिकपुर तहसील में एसडीएम प्रमेश श्रीवास्तव ने ओझा पुत्र दीनदयाल का नाम खतौनी दर्ज कर उनको सौंपा। एसडीएम ने बताया ओझा को मृतक मानकर इनकी वरासत चकबंदी कर्ता ने वर्ष 2010 में खतौनी में दर्ज कर दी थी। जांच के बाद चकबंदी कर्ता का गलत आदेश निरस्त किया गया और ओझा का नाम बहाल रखते हुए खतौनी भी शुद्ध कर दी गई। लापरवाह चकबंदी विभाग के कानूनगो खिलाफ एफआइआर कराई जा रही है।