एक्सप्रेस- वे निर्माण के लिए पर्यावरण मंत्रालय से नहीं मिली एनओसी
कानपुर से लखनऊ तक 62.75 किमी लंबा एक्सप्रेस- वे बनाया जाना है लखनऊ में चार हेक्टेयर भूमि वनीकरण के लिए आरक्षित है इसलिए एनओसी जरूरी है । टेंडर खोलने की अनुमति इसी हफ्ते मिलने के संकेत मिले हैं।
कानपुर, जागरण संवाददाता : कानपुर- लखनऊ एक्सप्रेस वे निर्माण के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से फिलहाल एनओसी नहीं मिल पाई है। मंत्रालय की ओर से कुछ आपत्तियां लगाई गई हैं। आपत्तियों का निस्तारण कराने की प्रक्रिया एनएचएआइ की लखनऊ इकाई की तरफ से प्रयास शुरू हो गया है। उधर ठेकेदार कंपनी के चयन के लिए अगले हफ्ते टेंडर खुलना है। टेंडर खोलने की अनुमति इसी हफ्ते सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से मिलने के संकेत मिले हैं।
कानपुर से लखनऊ तक 62.75 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस - वे बनाया जाना है। इसके लिए भूमि के अधिग्रहण का कार्य पूरा हो गया है। एक्सप्रेस -वे के टेंडर मांग लिए गए हैं। कई बड़ी कंपनियों ने टेंडर डाले हैं। अब सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की अनुमति के बाद टेंडर खोले जाएंगे। एक्सप्रेस वे की राह में कुछ जगहों पर वन के लिए संरक्षित भूमि है। लखनऊ में जहां एक्सप्रेस और ङ्क्षरग रोड एक दूसरे से जुड़ेंगे वहां चार हेक्टेयर वन विभाग की भूमि है। इस वजह से पर्यावरण , वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से एनओसी लेने में दिक्कत आई है। मंत्रालय की ओर से कुछ आपत्तियां हैं उनका निस्तारण जल्द ही करने की तैयारी है। इस संबंध में लखनऊ के प्रभागीय वन निदेशक के साथ एनएचएआइ के परियोजना निदेशक बैठक करेंगे। मंत्रालय की एनओसी के बिना इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो सकता है।
अगर एक्सप्रेस वे की बात करें तो यह शहीद पथ लखनऊ से बनी तक एक पिलर पर बनेगा। इसी चौड़ाई छह लेन है और बनी के बाद बाद उन्नाव के आजाद चौराहा तक यह भूतल पर होगा। पूरा एक्सप्रेस वे छह लेन का है और ग्रीन फील्ड है। पुल, फ्लाईओवर आदि के स्ट्रक्चर छह लेन का होगा। इसे कानपुर ङ्क्षरग रोड, मेरठ-प्रयागराज गंगा एक्सप्रेस वे, उन्नाव-लालगंज हाईवे से भी जोड़ा जाएगा। एनएचएआइ के परियोजना निदेशक एनएन गिरि का कहना है कि पर्यावरण से संबंधित जो आपत्तियां हैं उनका निस्तारण शीघ्र हो जाएगा। टेंडर भी अगले हफ्ते खुलेगा। इसकी प्रक्रिया चल रही है।