नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट का कमाल, गन्ने की खोई से बनाया कैंसर के इलाज में उपयोगी केमिकल
100 किलो खोई से बनता है पांच किलो केमिकल मौजूदा समय में 100 ग्राम रसायन छह से आठ हजार रुपये का मिलता है।
कानपुर, जेएनएन। देश के एकमात्र राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआइ) ने आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत चरितार्थ कर दी है। चीनी बनाने के बाद बचने वाली गन्ने की खोई को इस कदर उपयोगी बना दिया है कि न सिर्फ मिलों को फायदा होगा बल्कि किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे। एनएसआई ने गन्ने की खोई से ऐसा केमिकल बनाया है, जिसका उपयोग कैंसर के इलाज में होता है और बाजार में उसकी कीमत प्रति सौ ग्राम हजारों में है।
खोई से बनाया केमिकल, जल्द कराएंगे पेटेंट
चीनी मिलों में हजारों मीट्रिक टन गन्ने की आपूर्ति होती है, यहां चीनी के लिए शीरा निकाले जाने के बाद खोई निष्प्रयोज्य हो जाती है। इस खोई को प्रयोग में लाने के लिए एनएसआई के विशेषज्ञ शोध में जुटे थे। हाल ही में खोई से डिटर्जेंट व साबुन समेत कई उपयोगी वस्तु बनाई थीं। अब एनएसआई के विशेषज्ञों को गन्ने की बेकार खोई से केमिकल बनाने में कामयाबी हासिल हुई है। इसे कैंसर के इलाज, प्लास्टिक, कीटनाशकों और कई तरह के ईंधन में उपयोग होने वाले केमिकल के सस्ते विकल्प के तौर पर तैयार किया है। इसका पेटेंट कराकर जल्द ही उत्पादन शुरू कराया जाएगा। इससे न सिर्फ चीनी मिलों को फायदा होगा बल्कि किसानों को भी लाभ होगा।
सौ ग्राम केमिकल की कीमत आठ हजार
निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि मिथाइल लिवुलिनेट का चिकित्सा क्षेत्र और उद्योगों में बहुत इस्तेमाल होता है। इसकी 100 ग्राम कीमत छह से आठ हजार रुपये है, जबकि एनएसआइ के विशेषज्ञों ने खास तरीके से गन्ने की खोई से तैयार किया। गन्ने की खोई एक से डेढ़ रुपये किलो मिलती है। कई उद्योग इनका उपयोग ईंधन के रूप में करते हैं। संस्थान भी इससे मूर्ल्य संवर्धन उत्पाद बनाने में जुटा है। बैगास (गन्ने की खोई) सेल्युलोस, लिगनिन और हेमीसेल्युलोस मिलता है। विशेषज्ञों ने सेल्युसोस को रसायनिक प्रक्रिया के माध्यम से मिथाइल लिवुलिनेट में परिवर्तित किया। 10 किलोग्राम खोई में चार से पांच किलो मिथाइल लिवुलिनेट मिलता है।