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200 वर्ष पहले मुंसिफ को एक हजार, सदर अमीन को 500 रुपये तक के मुकदमे सुनने के मिले थे अधिकार

अब मजिस्ट्रेट और जज का पद संयुक्त था। इसी बीच 1811 को कचहरी को बिठूर स्थानांतरित कर दिया गया। 1816 में कचहरी वापस कानपुर आई और इस बार यह सूटरगंज और नवाबगंज के बीच बनी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कचहरी के भवन को नष्ट कर दिया गया था

By Akash DwivediEdited By: Published: Thu, 31 Dec 2020 12:16 PM (IST)Updated: Thu, 31 Dec 2020 12:16 PM (IST)
200 वर्ष पहले मुंसिफ को एक हजार, सदर अमीन को 500 रुपये तक के मुकदमे सुनने के मिले थे अधिकार
अमीनों को 500 रुपये तक के मुकदमे सुनने के अधिकार दिए गए

कानपुर, जेएनएन। 24 मार्च 1803 को कानपुर जिला घोषित किया गया तो अब्राहम बेलांड कानपुर के पहले कलेक्टर, जज, मजिस्ट्रेट सबकुछ बने। सरसैया घाट स्थित एक बंगले में उन्होंने कचहरी स्थापित की। कानपुर में यूं तो 15 परगने थे, लेकिन यहां की अपील कोर्ट बरेली में थी और सुनवाई वहीं होती थी। उस समय कानपुर के परगनों में जाजमऊ, बिठूर, बिल्हौर, शिवराजपुर, डेरापुर, रसूलाबाद, भोगनीपुर, सिकंदरा, अकबरपुर, घाटमपुर, साढ़-सलेमपुर, औरैया, कन्नौज, कोड़ा और अमौली शामिल थे। 1813 में कलेक्टर का पद अलग किया गया। अब मजिस्ट्रेट और जज का पद संयुक्त था। इसी बीच 1811 को कचहरी को बिठूर स्थानांतरित कर दिया गया। 1816 में कचहरी वापस कानपुर आई और इस बार यह सूटरगंज और नवाबगंज के बीच बनी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कचहरी के भवन को नष्ट कर दिया गया था।

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1817 में पहली बार मुंसिफों की नियुक्ति की

न्यायिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अंग्रेजों ने जिले की स्थापना के 14 वर्ष बाद यानी 1817 में पहली बार मुंसिफों की नियुक्ति की। यह नियुक्ति कन्नौज, ठठिया, औरैया, सिकंदरा में की गई। अगले वर्ष 1818 में सदर अमीन की अदालत स्थापित की गई। 1817 में पहली बार मुंसिफ की स्थापना के बाद भी उन्हेंं 1821 में पहली बार 1,000 रुपये तक के मुकदमे सुनने के अधिकार मिले। इसी तरह सदर अमीनों को 500 रुपये तक के मुकदमे सुनने के अधिकार दिए गए। 

25 मार्च 1861 से यहां कार्य शुरू हो गया

आजादी के करीब सौ वर्ष पहले तक कानपुर के कुछ हिस्से दूसरे जिलों में जा चुके थे। इसके चलते 1846 में कानपुर में पांच मुंसिफ कायम की गईं। इसमें एक कानपुर नगर व छावनी थी। इसी तरह जाजमऊ और बिठूर के लिए एक अन्य थी। अकबरपुर, घाटमपुर और साढ़ - सलेमपुर के लिए अलग एक मुंसिफ थी। भोगनीपुर, सिकंदरा और डेरापुर को मिलाकर एक व रसूलाबाद, बिल्हौर, शिवराजपुर की एक मुंसिफ स्थापित हुई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कचहरी का भवन नष्ट कर दिया गया था। उसकी जगह 1861 में फिर से सरसैया घाट के पास नई कचहरी बनी। 25 मार्च 1861 से यहां कार्य शुरू हो गया।


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