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चुनावी चौपाल : चाय की दुकानों पर प्रधान पद को लेकर खूब गुणा-भाग लग रहे, तरह-तरह की हो ही चर्चा

आगे बढ़े तो राम सिंह मिल गए। कहा दो हजार से अधिक की आबादी का गांव है लेकिन परिषदीय स्कूल नहीं है। बच्चे दो किमी दूर दूसरे गांव पढऩे जाते हैं। शिवचरन परसादी पूरन व उमाकांत भी कहते हैं कि विकास की इच्छा शक्ति वाले को ही प्रधान चुनेंगे।

By Akash DwivediEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 11:27 AM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 11:27 AM (IST)
चुनावी चौपाल : चाय की दुकानों पर प्रधान पद को लेकर खूब गुणा-भाग लग रहे, तरह-तरह की हो ही चर्चा
विकास की इच्छा शक्ति वाले को ही प्रधान चुनेंगे

महाराजपुर (शैलेंद्र त्रिपाठी) : गांवों में पंचायत चुनाव का शोर हर तरफ सुनाई दे रहा है। खासकर प्रधान पद को लेकर कुछ ज्यादा ही गुणा-भाग लग रहे हैं। प्रत्याशी और उनके समर्थक मतदाताओं को रिझाने में रात दिन एक किए हुए हैं। वहीं किसी ग्रामीण के पीएम आवास की आस पूरी नहीं हुई तो कोई विधवा पेंशन न मिलने से परेशान है। मंगलवार को हम बाइक से सरसौल ब्लाक के पतारी गांव में प्रधान पद के चुनाव की तस्वीर देखने पहुंचे तो वहां समस्याएं व लोगों का दर्द भी दिखा।  गांव की गलियों में पहुंचे तो देखकर दंग रह गए क्योंकि यहां न तो सड़कें बनीं हैं और न ही जल निकासी का प्रबंध है। गांव के दिनेश राजपूत का परिवार झोपड़ी में रहता है। जब हम पहुंचे तो उनकी पत्नी नन्हकी बच्चों के साथ बैठी थीं। गांव में विकास के बारे में पूछा तो बोलीं, झोपड़ी में वर्षों से रह रही हूं। 

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कई बार प्रधानमंत्री आवास के लिए प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। बोलीं, सभी तो वादा करते हैं, पर पूरा कोई नहीं करता। बहुत सोच समझकर वोट दूंगी। आगे बढ़े तो महेश की पत्नी पुष्पा छप्पर के नीचे चूल्हे पर खाना बना रही थीं। पूछने पर पुष्पा बोलीं, प्रधानमंत्री आवास योजना से घर नहीं मिला। चुनाव में वोट तो करूंगी, लेकिन जाति पात पर नहीं। शिक्षित व ईमानदार को ही प्रधान चुनूंगी। राजकुमार, राजेंद्र, पिंटू, राजू राजपूत, रामकरन, शिवशंकर, अवधेश, गुलाब ने कहा कि विकास के पैमाने पर ही वोट करेंगे। आगे बढ़े तो राम सिंह मिल गए। कहा, दो हजार से अधिक की आबादी का गांव है, लेकिन परिषदीय स्कूल नहीं है। बच्चे दो किमी दूर दूसरे गांव पढऩे जाते हैं। शिवचरन परसादी, पूरन व उमाकांत भी कहते हैं कि विकास की इच्छा शक्ति वाले को ही प्रधान चुनेंगे। 

चार साल से नहीं मिली पेंशन : गांव में घर के बाहर बैठीं 70 वर्षीय विधवा कांती से हमने हालचाल पूछा तो बोलीं, सब ठीक है बस विधवा पेंशन नहीं मिलती। पहले मिलती थी, पर चार साल से एक फूटी कौड़ी भी नहीं आई। यही दर्द लालता व सरजू का भी था। 


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