स्मृति शेष : उस्ताद गुलाम मुस्तफा से सुरमई होती थी कानपुर की शाम, रियाज के लिए किराए पर लिया था कमरा
Ustad Ghulam Mustafa Death कानपुर में मछली वाला हाता में उस्ताद गुलाम मुस्तफा कभी साजिंदों के साथ मिलकर घंटों रियाज किया करते थे। हरिहरन एआर रहमान सोनू निगम और शान समेत अन्य संगीतकार व गायक उनके शागिर्द थे।
कानपुर, जेएनएन। कला व संस्कृति को संजोए शहर ने देश को अनेक रत्न दिए हैं। कुछ की यह जन्म स्थली रहा तो कुछ की कर्मस्थली। भारतीय संस्कृति, परंपरा व संस्कार देने वाले इस शहर ने संगीत की दुनिया के ऐसे नगीने दिए हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। उन्हीं में एक थे भारतीय शास्त्रीय गायक और पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साहब। रविवार को मुंबई में उनके निधन से संगीत जगत को बड़ा झटका लगा। कानपुर से उनका बड़ा गहरा नाता रहा। एक जमाने में उनके सुरों से शहर की शाम सुरमई हुआ करती थी। जब वह राग मालकोश व राग चंद्रकोश पेश करते तो श्रोता घंटों अपनी आंखें बंदकर उन्हें सुना करते।
आकाशवाणी में पिछले 40 वर्षों से गीत गाने वाले रेडियो कलाकार और उस्ताद गुलाम मुस्तफा के शागिर्द रहे सूटरगंज निवासी संतू श्रीवास्तव बताते हैं, खान साहब बदायूं से वर्ष 1953 में कानपुर आए थे। यहां पर इफ्तिखाराबाद में अपने रिश्तेदार व अंतरराष्ट्रीय सारंगी वादक गुलाम जाफर व गुलाम साबरी के पास रहा करते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रियाज के लिए मछली वाले हाते में एक कमरा किराए पर ले लिया। यहां पर वह साजिंदों के साथ घंटों रियाज किया करते थे। उद्यमी व पद्मश्री इरशाद मिर्जा भी यहां आया करते थे। उन दिनों वीएसएसडी डिग्री कॉलेज मे अंग्रेजी में प्राध्यापक रहे आचार्य बृहस्पति प्राचीन संगीत पर काम कर रहे थे। उन्होंने अपने प्राचीन संगीत की थ्योरी पर खान साहब की आवाज रिकॉर्ड की।
आचार्य बृहस्पति जब ऑल इंडिया रेडियो में चीफ प्रोड्यूसर बने तब यह रिकॉर्ड रेडियो पर प्रसारित किए गए। शहर में रहने के दौरान खान साहब ने फूलबाग में होने वाली धक्कू बाबू की कांफ्रेंस में कई कार्यक्रम किए। एक कार्यक्रम में उन्होंने जब राग चंद्रकोश गाया तो श्रोता उनकी आवाज के दीवाने हो गए। इस कांफ्रेंस में पं. रविशंकर, किशन महाराज व बड़े गुलाम अली खान साहब जैसे कलाकार आया करते थे।
चार साल बाद मुंबई चले गए
संतू श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी मुलाकात खान साहब से शहर में ही हुई थी। तब वह कक्षा नौ के छात्र थे। खान साहब से जब गायन की तालीम देने का निवेदन किया तो उन्होंने अपना शागिर्द बना लिया। संतू बताते हैं कि वह खान साहब के शहर में पहले शागिर्द हुए। खान साहब शहर में 1956 तक रहे। इस समय अंतराल में वह उनसे सरगम, राग व ख्याल सीखते रहे। आवाज व गायन के बेहतरीन अंदाज से खान साहब की प्रसिद्धि इतनी हो गई कि ऑल इंडिया रेडियो में चीफ प्रोड्यूसर हाफिज मोहम्मद खान ने उन्हें मुंबई बुला लिया। वहां पर हरिहरन, एआर रहमान, सोनू निगम व शान समेत अन्य संगीतकार व गायकों ने उनसे तालीम ली।