शहादत की यादें सहेज सजाया 'संग्रहालय'
जागरण संवाददाता, कानपुर: जवानी खून में ठीक से उतरी भी नही थी। उसी वक्त जिंदगी देश के नाम कर
जागरण संवाददाता, कानपुर: जवानी खून में ठीक से उतरी भी नही थी। उसी वक्त जिंदगी देश के नाम कर दी। सेना में कैप्टन बने और सरहद की रक्षा करने के लिए निकल पड़े। 2017 अप्रैल में कुपवाड़ा में सैन्य शिविर पर आतंकी हमला हुआ। 24 साल का ये नौजवान लड़ते-लड़ते शहीद हो गया। शेष रह गई तो सिर्फ यादें। अब यही मां-बाप का सहारा हैं। पिता ने इन्हीं को सहेजकर संग्रहालय का रूप दे दिया है।
जवान इकलौते बेटे का असमय दुनिया से विदा ले लेना मां-बाप को तोड़कर रख देता है। मगर यूपी पुलिस के सब इंस्पेक्टर अरुण कांत यादव और पत्नी सरला यादव किसी दूसरी मिट्टी से ही बने हैं। बेटे कैप्टन आयुष यादव की शहादत पर उन्हें गर्व है। नम आंखों से कहते हैं कि फख्र इस बात का है कि बेटा बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हुआ। उन्होंने कैप्टन आयुष के कमरे को करीने से सजाकर संग्रहालय की शक्ल दे दी है। बचपन से लेकर अब तक सभी यादें इसमें मौजूद है। अंतिम बार पहनी गई उनकी वर्दी, वह तिरंगा जिसमें लिपटकर बेटा घर आया था। वह सब इस कमरे में मौजूद है। सेना द्वारा उनकी बहादुरी का वर्णन करते हुए उनकी प्रतिमा। स्मरण पत्र सेना से जुड़े फोटोग्राफ्स और गर्व के वे क्षण जो पढ़ाई, खेलकूद और सेना में रहते हुए मेडल के रूप में मिले। इसे 'द वाल ऑफ फेम' का नाम दिया है।
युवाओं को करते हैं प्रेरित
जाजमऊ के डिफेंस कालोनी स्थित मकान नंबर 165 ई में रहने वाले अरुणकांत यादव बताते हैं कि बेटे की याद के सहारे ही वह दूसरे युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रेरित करते हैं। परिवार में माता-पिता के अलावा एक बहन भी है जो कि बैंक में अधिकारी है और पति के साथ हरिद्वार में रहती है।