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सीएसआर फंड से 'स्वाभिमानी' बन रहे दिव्यांग, 12 सालों से ऐसा काम कर रही है ये संस्था

चुनौतियां आईं लेकिन हौसले से मंजिल की ओर कदम बढ़ा दिए। मकसद था दिव्यांगों को हुनरमंद बनाकर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करना।

By Krishan KumarEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 06:00 AM (IST)
सीएसआर फंड से 'स्वाभिमानी' बन रहे दिव्यांग, 12 सालों से ऐसा काम कर रही है ये संस्था

दर्द तब सालता है, जब बेसहारा समझ लिया जाए। हाथ में हुनर न हो, जेब में पैसा न हो, तब कुछ हमदर्दी और ज्यादा हिकारत भरी नजर, और भी दर्द देती है। दिव्यांगजनों की बदतर स्थिति देख मन में पीड़ा हुई। यह दर्द न हो, इसका हल क्या हो। एक जवाब मिला, हुनर हो और अपने पैरों पर खड़े हों। यही सबसे अधिक जरूरी है। तब हालात सुधारने की ठानी और जुट गए। चुनौतियां आईं लेकिन हौसले से मंजिल की ओर कदम बढ़ा दिए। मकसद था दिव्यांगों को हुनरमंद बनाकर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करना। इसके लिए प्रयास किए और सीएसआर फंड जुटाना शुरू किया। इसी राशि से सहारे अब तक कई दिव्यांगों को स्वावलंबी बना चुके हैं।

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यह अनूठी सेवा कर रही हैं दृगश्रम स्वयंसेवी समिति और इसे आगे बढ़ा रहे हैं निदेशक सुनील मंगल। समिति के माध्यम से वह अब तक एक हजार दिव्यांगजनों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। इसके लिए बाकायदा प्रोजेक्ट तैयार कर सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी) फंड जुटाते हैं। वह कहते हैं कि दिव्यांगजनों को अगर हम प्रशिक्षित कर दें तो वह भी सामान्य लोगों की तरह बेहतर काम करके जीविकोपार्जन कर सकते हैं। मौजूदा समय में कई ऐसे दिव्यांगजन हैं, जो हुनरमंद हो चुके हैं और परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं।

ये दिलाते हैं प्रशिक्षण
दृगश्रम स्वयंसेवी समिति के निदेशक सुनील मंगल के मुताबिक दिव्यांगजनों को तीन से चार माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। इनमें अगरबत्ती-धूपबत्ती बनाना, कंप्यूटर डिजाइनिंग और अकाउंटिंग के साथ-साथ सिलाई-कढ़ाई का काम भी सिखाया जाता है। इसके लिए समिति सरकारी योजनाओं के साथ जुड़ती है और प्रोजेक्ट तैयार कर विभिन्न कंपनियों से सीएसआर फंड जुटाती है।

400 दिव्यांग कर रहे अपना काम
समिति की ओर से अब तक एक हजार से ज्यादा दिव्यांग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इनमें से 400 दिव्यांग ऐसे हैं जो अपना काम कर रहे हैं। इनमें 50 दिव्यांगजन अगरबत्ती-धूपबत्ती के कुटीर उद्योग से जुड़े हैं। 30-35 महिलाएं सिलाई कढ़ाई और 50 से 70 दिव्यांग खुद का कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट संचालित कर रहे हैं।


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