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कानपुर : बच्‍चों को शिक्षा में योगदान दे रहीं धार्मिंक संस्‍थाएं

सीएसआर फंड से समाजसेवा करने वाली कंपनियां ही नहीं व्यापारिक और धार्मिक संस्थाएं भी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 06:00 AM (IST)
कानपुर : बच्‍चों को शिक्षा में योगदान दे रहीं धार्मिंक संस्‍थाएं

कानपुर, जेएनएन। समाज का उत्थान शिक्षा से है। किसी भी देश या शहर की प्रगति में इसका अहम योगदान है। सीएसआर फंड से समाजसेवा करने वाली कंपनियां ही नहीं, व्यापारिक और धार्मिक संस्थाएं भी इसकी अहमियत को समझते हुए शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं। उन्हें अहसास है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में सरकार के स्कूल सहित संसाधन नाकाफी हैं।

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यही वजह है कि कथावाचक सुधांशु महाराज के सपने को साकार करने के लिए विश्व जागृति मिशन गरीब और असहाय बच्चों को नि:शुल्‍क शिक्षा मुहैया करा रहा है। बिठूर स्थित सिद्धिधाम आश्रम परिसर में ही देवदूत बाल आश्रम और गुरुकुल चलाए जा रहे हैं। इस सेवा के जरिये गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा हासिल हो रही है और उनका जीवन संवर रहा है। 

त्रासदी के मारे बच्चों को मिला सहारा
मिशन के आचार्य रजनीश ने बताया कि गुरुजी सुधांशु महाराज चाहते थे कि आध्यात्मिक सेवा के साथ गरीब-असहाय बच्चों के लिए भी काम किया जाए। उनकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए मिशन के कानपुर मंडल प्रधान आरपी सिंह ने 2005 में सिद्धिधाम आश्रम परिसर में देवदूत बाल आश्रम की स्थापना कराई।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में आई त्रासदी से बेसहारा हुए बच्चों को यहां लाया जाने लगा। आचार्य ने बताया कि यहां आश्रम में उन्हें सिर्फ रहने का ही सहारा नहीं दिया, बल्कि शिक्षा को मूल उद्देश्य बनाया। आश्रम में रहने वाले बच्चों को बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में पढऩे के लिए भेजा जाता है। उनकी शिक्षा का पूरा खर्च मिशन उठाता है। इसी तरह जब वह बच्चे 18 वर्ष से अधिक हो जाते हैं, तो उन्हें उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न संस्थाओं में पढ़ाने का खर्च भी मिशन ही वहन करता है।

गुरुकुल में भी मिलेगी शिक्षा
अब तक यहां देवदूत बाल आश्रम ही चल रहा था। शिक्षा क्षेत्र में सेवा कार्य को विस्तार देने के लिए हाल ही में गुरुकुल की भी स्थापना की गई है। आचार्य रजनीश ने बताया कि उत्‍तर प्रदेश सहित आसपास के राज्यों से बच्चे आकर यहां रह रहे हैं। यहीं रहकर नि:शुल्‍क शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अभी आश्रम में 20 बच्चे हैं। इनकी संख्या अभी और बढ़ाई जाएगी।


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