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सपरिवार देहदान का संकल्प ले चुके मनोज सेंगर, 2003 से चला रहे युग दधीचि देहदान अभियान

देहदानी मनोज सेंगर बताते हैं कि यह आंदोलन समाज की आस्था से टकराने वाला था। मृत शरीर का अंतिम संस्कार न होने को लेकर तमाम भ्रांतियां और मान्यताएं थीं।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 06:00 AM (IST)
सपरिवार देहदान का संकल्प ले चुके मनोज सेंगर, 2003 से चला रहे युग दधीचि देहदान अभियान

समाज के लिए तन, मन, धन समर्पित...। भावों में गुथा यह जुमला पढ़ा और सुना तो बहुत होगा। मगर, इसे जिया कैसे जाता है, यह जानने के लिए मनोज सेंगर की जिंदगी से रूबरू होना पड़ेगा। सेवाभावी सेंगर ने ताउम्र नि:संतान रहने का निर्णय लेने के साथ ही मृत्योपरांत देहदान का खुद संकल्प लिया।

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साथ ही युग दधीचि देहदान अभियान चलाकर 2500 लोगों से संकल्प पत्र भरवा चुके हैं। ताकि चिकित्सा छात्र मानव शरीर का विस्तृत अध्ययन कर सकें, इसके लिए अब तक 193 दिवंगत लोगों की देह विभिन्न चिकित्सा महाविद्यालयों को दान भी कर चुके हैं।

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जेके कॉलोनी जाजमऊ निवासी मनोज सेंगर का जन्म तीन जुलाई 1967 में हुआ। विज्ञान स्नातक मनोज ने 1999 में पत्नी माधवी सेंगर के साथ संकल्प लिया कि ताउम्र नि:संतान रहकर समाज की सेवा करेंगे। सेवा कार्यों में सक्रिय होने पर उन्हें पता चला कि मानव शरीर की आंतरिक संरचना के अध्ययन के लिए चिकित्सा महाविद्यालयों में मृत देह की भारी कमी है। दस छात्रों के लिए एक देह होनी चाहिए, जबकि एक मृत देह पर सौ-सौ छात्र अध्ययन कर रहे थे।

छात्र कुशल चिकित्सक बन सकें, इसी सोच के साथ उन्होंने 2003 में युग दधीचि देहदान अभियान की शुरुआत की। सबसे पहले मनोज सेंगर, उनकी पत्नी माधवी सहित परिवार के सात सदस्यों ने देहदान की शपथ ली। फिर इस अनूठी पहल से लोगों को जागरूक कर जोड़ने का प्रयास किया। सफलता मिली और 2500 लोग अब मृत्योपरांत देहदान का संकल्प पत्र भर चुके हैं।

उनका कहना है कि हमारा लक्ष्य दस हजार देहदानी तैयार करने का है। वहीं, 193 देह वह कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, अंबेडकर नगर, इटावा और आगरा के मेडिकल कॉलेज को दान दे चुके हैं। यही नहीं, सीमित संसाधनों में ही बिना किसी सरकारी मदद के वह अब तक 750 जरूरतमंद नेत्रहीनों को नेत्र प्रत्यारोपण भी करा चुके हैं।

मनोज सिंह सेंगर ने कहा कि ''वर्तमान में सबसे अधिक देहदान कानपुर में होते हैं, लेकिन कानपुर मेडिकल कॉलेज की क्षमता कुल 24 शव रखने की है। क्षमता बढ़ा दी जाए तो यहां मृत देह की जरूरत पूरी होने के बाद प्रदेश के अन्य मेडिकल कॉलेज को भी देह भेजी जा सकती है।

मान्यता बदलने की थी चुनौती

देहदानी मनोज सेंगर बताते हैं कि यह आंदोलन समाज की आस्था से टकराने वाला था। मृत शरीर का अंतिम संस्कार न होने को लेकर तमाम भ्रांतियां और मान्यताएं थीं। तब कुछ धर्माचार्यों को भी साथ लेना पड़ा। नुक्कड़ सभाएं आदि कर लोगों को शास्त्र, पुराणों तक के उदाहरण सहित समझाया। तब जाकर धीरे-धीरे सोच बदलनी शुरू हुई।

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