कानपुरः न जनप्रतिनिधि सुनते थे और न ही अफसर, नवाब सिंह ने समाजसेवियों के साथ मिलकर बनवा दिया पुल
मैंने सहयोगियों से बात की तो उन्होंने कहा कि हम लोग चंदा कर पुल बनवाएंगे। सभी ने सहयोग किया तो पुल बनकर तैयार हो गया। यहां से अब हजारों ग्रामीण हर दिन निकलते हैं।
पनकी क्षेत्र में पांडु नदी के एक तरफ फैक्ट्रियां हैं तो दूसरी तरफ दर्जनों गांव। हजारों ग्रामीण हर दिन औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरी करने आते हैं, मगर इनके लिए पहले कोई सीधा रास्ता नहीं था। मजबूरन 15 किलोमीटर के फेर से बचने के लिए रेलवे ट्रैक से गुजरते थे। आए दिन हादसों में ग्रामीणों की जान जाती थी। ग्रामीणों की कराह और करुण क्रंदन पर सियासत और अफसरशाही तो न जागी, लेकिन नवाब सिंह के दिल में दर्द उठा और उन्होंने कुछ समाजसेवियों की मदद से खुद ही नदी पर पुल बनवा डाला।
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जनता को आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराना शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी है। इसके लिए काम किया भी जाता है, लेकिन कई दफा ऐसी परिस्थितियां भी होती हैं, जब न अफसर सुनते हैं और न ही जनप्रतिनिधि। तब समाज को क्या करना चाहिए? इसी सवाल का जवाब समाजसेवी एवं पूर्व पार्षद नवाब सिंह की जिंदगी है। पनकी क्षेत्र में पांडु नदी के ऊपर रास्ते की जो समस्या थी, वह क्षेत्र दो विधानसभा और दो लोकसभा क्षेत्रों की सीमा है।
इसकी सीमा कानपुर नगर, अकबरपुर रनियां लोकसभा क्षेत्र और गोविंदनगर और बिठूर विधानसभा क्षेत्र से सटी हुई है। पनकी और दादानगर औद्योगिक क्षेत्र में नौकरी को आने वाले पतरसा, दमगढ़ा, सरसई, गोपालपुर, सिंहपुर, कछार, अड्डा, ठाकुर प्रसाद का पुरवा, भीमसेन, रामपुर, हृदयपुरवास कैंधा, मन्नीपुरवा, गंभीरपुर, सेन कला का पुरवा के ग्रामीणों को सड़क मार्ग से आने के लिए 15 किलोमीटर घूमकर आना पड़ता था, इसलिए रेलवे ट्रैक ही विकल्प था।
कई ग्रामीण ट्रेन हादसे के शिकार हुए, लेकिन जनप्रतिनिधि दशकों तक कोरे वादे ही करते रहे। तब क्षेत्र में समग्र विकास सेवा संस्थान के नवाब सिंह ने सेवाभावी डॉ. आरती लालचंदानी, डीसी खरे, नरेंद्र जुनेजा, देवेंद्र शंकर शुक्ल, एसएस तिवारी, डॉ. आरजे कुशवाहा, डॉ. महेश खट्टर आदि के सहयोग से पैसा जुटाया और पुल बनवाकर वर्ष 2007 में जनता को समर्पित कर दिया।
स्कूल और अस्पताल की जरूरत भी की पूरी
ग्रामीणों की आधारभूत जरूरतें पूरी करने का पूर्व पार्षद नवाब सिंह का सफर वाकयों के कदम पर आगे बढ़ता गया। सितंबर 2004 में उनके छोटे भाई रामबहादुर को महादेव चौक के पास कचरे में पड़ा एक बच्चा मिला। उसका इलाज कराया और घर ले आए। उसका नाम श्रीराम रखा। फिर ऐसे लोगों की मदद के संकल्प के साथ समग्र विकास सेवा संस्थान की स्थापना की। कुछ माह बाद ही एक पूर्ण दिव्यांग बच्चा एलएलआर अस्पताल (हैलट) में मिला। उसका नाम लखन रखा और उसे भी घर ले आए, इलाज कराने लगे। तब पनकी क्षेत्र स्थित अपनी पुश्तैनी भूमि पर शक्तिधाम परिसर में राम लखन विद्या मंदिर की स्थापना वर्ष 2005 में की।
आसपास के गांव और मलिन बस्तियों के बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दी जाने लगी। इसके बाद मधुर लोचनी धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की। दस बेड का अस्पताल वर्ष 2011 में बनकर तैयार हो गया। यहां समय-समय पर शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक शिविर भी लगाते हैं। वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल के एक बुजुर्ग शक्तिधाम परिसर पहुंचे। कुछ समय वहां रहे। उनके निधन पर ऐसे असहायों के लिए नवाब सिंह ने सुपोषण नाम से अनाथालय भी शुरू कर दिया है।
वर्ष 2005 में दीपावली के दिन पतरसा गांव का झब्बर नामक 20 वर्षीय युवक दादानगर फैक्ट्री एरिया से घर लौटते वक्त ट्रेन की चपेट में आ गया। त्योहार पर पूरे गांव में मातम छा गया। उस घटना ने मुझे झकझोर दिया। तब मैंने सहयोगियों से बात की तो उन्होंने कहा कि हम लोग चंदा कर पुल बनवाएंगे। सभी ने सहयोग किया तो पुल बनकर तैयार हो गया। यहां से अब हजारों ग्रामीण हर दिन निकलते हैं।
- नवाब सिंह समाजसेवी एवं पूर्व पार्षद