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कानपुरः यहां के प्राथमिक और माध्‍यमिक स्‍कूलों को चाहिए सुधार

कानपुर में आइआइटी और एचबीटीयू को छोड़ दिया जाए तो उच्च शिक्षा का हाल भी बुरा ही है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 04:10 PM (IST)
कानपुरः यहां के प्राथमिक और माध्‍यमिक स्‍कूलों को चाहिए सुधार

'बच्चे देश का भविष्य हैं...' यह जुमला दोहराने में न अफसरों का मुंह थकता है और ना ही जनप्रतिनिधियों का। इसके बावजूद लापरवाही इस हद तक है कि 'भविष्य की नींव बदइंतजामी के दलदल में धंसती जा रही है। यूं तो पूरा सरकारी शिक्षा तंत्र ही अव्यवस्थाओं का शिकार है, लेकिन सबसे बुरा हाल प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का है।

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कानपुर में लगभग ढाई हजार प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालय हैं। करीब-करीब सभी की स्थिति एक जैसी। कहीं इमारत जर्जर है तो कहीं किराए के भवन में स्कूल चल रहा है। ऐसे किस्से भी सामने आते हैं कि एक ही कक्ष में कई कक्षाएं या एक परिसर में दो-तीन स्कूल चल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की बात क्या करें। शहर में ही ऐसे स्कूल हैं, जहां बदहाली का आलम इंतहा की हद तक है।

कुछ स्कूलों के गेट पर शराब का ठेका चल रहा है, तो कहीं परिसर में ही तबेला। इमारत जर्जर है तो पढ़ाई मौसम पर टिकी है। धूप हो तो पेड़ की छांव में बच्चे बैठ जाएं और बरसात हो तो स्कूल की छुट्टी। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद पार्टी ने अपने जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों से एक-एक विद्यालय गोद लेने के लिए कहा। स्कूल गोद लिए भी गए, लेकिन वह सुधार ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है।

...तो जरूर आता बदलाव
कुछ समय पहले एक प्रस्ताव ने बड़ा जोर पकड़ा था कि अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं। इससे सुधार की संभावनाएं जताई गई थीं। जानकार मानते हैं कि यदि इसका पालन होता तो निश्चित ही स्कूलों की सूरत बदल जाती, लेकिन इस ओर किसी भी अधिकारी ने कदम ही नहीं बढ़ाया।

बेफिक्री की शिकार उच्च शिक्षा
आइआइटी और एचबीटीयू जैसे शिक्षण संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो उच्च शिक्षा का हाल भी बुरा ही है। सरकारी कॉलेजों में छात्र संख्या पर्याप्त है। इमारत से लेकर संसाधन भी लगभग पूरे हैं, लेकिन शैक्षिक वातावरण नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार से अच्छा-खासा वेतन प्राप्त कर रहे डिग्री कॉलेजों के शिक्षक अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे।

इसी वजह से छात्रों के बीच सोच बनती चली गई कि कॉलेजों में पढ़ाई नहीं होती और उनका मोहभंग होता चला गया। वह दाखिला सिर्फ डिग्री हासिल करने के लिए ले रहे हैं। इसके अलावा डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों की भी भारी कमी है। सरकार इस कमी को पूरा करे तो कुछ सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

आंकड़े : एक नजर
बेसिक और माध्यमिक शिक्षा
- प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के वेतन का खर्च- करीब 400 करोड़ रुपये वार्षिक
- विद्यालयों की संख्या- 2471
- विद्यार्थियों की संख्या- 200500

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