कानपुरः ग्रेजुएशन के नंबर को प्रतियोगी परीक्षा में जोड़ें तो पढ़ाई के प्रति गंभीर होंगे छात्र
डॉ. सिंह का कहना है कि कई सेल्फ फाइनेंस कॉलेज ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ाई से कोई वास्ता ही नहीं होता।
बदलते दौर के साथ आमदनी, सुख-सुविधाएं, संसाधन सभी कुछ बढ़ा है, लेकिन क्या वजह है कि शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है। सवालों का सिलसिला यहीं नहीं ठहरता। यक्ष प्रश्न ये भी है कि बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है, काबिलियत की कड़ी प्रतिस्पर्धा है, फिर भी छात्र-छात्राएं इतनी गंभीरता से कॉलेजों में पढ़ना नहीं चाहते। ये हाल उच्च शिक्षा का है। ये वह दहलीज है, जहां से अगला कदम छात्र को अपने बेहतर जीवन की ओर बढ़ाना होता है।
इस मुद्दे पर जब चर्चा हुई तो शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के लिए शहर के प्रतिष्ठित पीपीएन डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आइजे सिंह की अंगुली सरकारी व्यवस्था, शिक्षा का व्यवसायीकरण, छात्रों के अभिभावक और सबसे अधिक शिक्षकों की ओर उठती है। वह मानते हैं कि शिक्षा का स्तर तभी सुधरेगा, जब शिक्षक पहले की तरह छात्र और समाज के प्रति अपना समर्पण भाव दिखाएंगे। 'जागरण' के 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत बतौर शिक्षा विशेषज्ञ, पढ़िए डॉ. आइजे सिंह की राय-
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दूर करनी होगी शिक्षकों की कमी
प्राचार्य डॉ. आइजे सिंह मानते हैं कि सुधार की ओर कदम बढ़ाते हुए सबसे पहले शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी की कमी दूर करनी होगी, जिन सरकारी कॉलेजों में स्टाफ कम है, वहां मजबूरन पार्ट टाइमर शिक्षक रखने पड़ते हैं। चूंकि उन्हें वेतन अधिक नहीं दे सकते, इसलिए कम वेतन में अच्छे शिक्षक नहीं मिल पाते। दूरदराज के इलाकों में चलने वाले कॉलेजों में नाम किसी का होता है और उनकी जगह पढ़ाने कोई और शिक्षक जाता है। इन स्थितियों में सुधार करना ही होगा। जब कक्षा में शिक्षक नियमित रूप से पढ़ाने आएंगे तो छात्र भी पढ़ेंगे।
परीक्षा केंद्र के रूप में चल रहे कई कॉलेज
डॉ. सिंह का कहना है कि कई सेल्फ फाइनेंस कॉलेज ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ाई से कोई वास्ता ही नहीं होता। वह एडमिशन और परीक्षा केंद्र के रूप में चल रहे हैं। ऐसे ही कॉलेज नकल को भी बढ़ावा दे रहे हैं। दरअसल, ऐसे कॉलेज संचालक लाभ के लिए शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सोचना होगा कि किसी युवा को पढ़ाई के दौरान खराब कर दिया तो वह खुद जिंदगी भर नुकसान उठाएगा और समाज को भी प्रभावित करेगा।
खुद को राष्ट्रनिर्माता समझे शिक्षक
इस बात से डॉ. सिंह सहमत हैं कि शिक्षकों को पहले की तुलना में काफी अच्छा वेतन सरकार दे रही है। इसके बावजूद तुलना करें तो पहले शिक्षक ज्यादा गंभीरता से पढ़ाते थे। वह कहते हैं कि शिक्षक खुद को कोई अधिकारी, कर्मचारी या वेतनभोगी न मानें, जिसे सीमित घंटों में सिर्फ नौकरी पूरी करनी हैं। शिक्षकों को समझना होगा कि उनके ऊपर बहुत बड़ा दायित्व है। वह राष्ट्रनिर्माता हैं। देश के भविष्य को दिशा देने का जिम्मा उन्हीं का है। उनके आचरण से ही युवा सीखता है।
शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की जरूरत
डॉ. सिंह का मानना है कि हमें पारंपरिक पाठ्यक्रमों से थोड़ा हटना पड़ेगा। यदि बीए, बीएससी, एमए और एमएससी जैसी पढ़ाई युवा को रोजगार नहीं दिला सकती तो वह इसे गंभीरता से पढ़ेगा ही नहीं, वह सिर्फ परीक्षा पास कर डिग्री हासिल करने के लिए कॉलेज आएगा। पाठ्यक्रम बदलते हुए उन्हें इतना व्यावहारिक और रोजगारपरक बनाना होगा, जो कि जीवन में भी वाकई काम आएं।
इसके अलावा यह भी सुझाव है कि स्नातक और परास्नातक के अंकों को किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में बतौर बोनस अंक जोड़ा जाए तो छात्र पहले से ही पढ़ाई के प्रति गंभीर हो जाएंगे।
अभिभावक भी समझें जिम्मेदारी
अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। प्राचार्य कहते हैं कि देखने में आता है कि अच्छे कॉलेज में बच्चे का दाखिला कराने तक तो अभिभावक गंभीर नजर आते हैं। फिर उसके बाद यह देखने की जरूरत कभी महसूस नहीं करते कि बच्चा कॉलेज जा रहा है या नहीं, नियमित कक्षाओं में उपस्थित रहता है या नहीं।
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