कानपुर के भीतरगांव में जगन्नाथ मंदिर में टपकती बूंदों के पीछे छिपे हैं कई रहस्य
ग्राम प्रधान के पति अखंड प्रताप सिंह बताते हैं कि ध्वस्त मंदिर के स्तंभों पर ही किसी स्थानीय जमींदार ने करीब 150 वर्ष पूर्व चूने-मिट्टी से मंदिर का बाह्य आकार तैयार कराया है। मंदिर का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार या गहरवाल राजाओं के कार्यकाल का लगता है।
कानपुर, जेएनएन। शहर से करीब 50 किमी. दूर और भीतरगांव ब्लाक मुख्यालय से महज तीन किमी.दूर बेहटा बुजुर्ग गांव का जगन्नाथ मंदिर अनेक रहस्य समेटे हैं। विशेष धार्मिक, एेतिहासिक और भौगोलिक तथ्यों से परिपूर्ण यह मंदिर 21वीं सदी के विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल की टपकती बूंदों की तरह इस मंदिर से टपकने वाली बूंदों में भी कई रहस्य छिपे हैं।
ओडिशा शैली से जुदा है ये मंदिर
ओडिशा शैली के जगन्नाथ मंदिरों में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके अग्रज बलदाऊ और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं होती हैं किंतु भीतरगांव का यह मंदिर इससे अलग है। यहां काले पत्थर से बनी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ केवल उनके अग्रज बलराम की ही छोटी प्रतिमा है। उसके पीछे पत्थरों पर भगवान के दशावतार उकेरे गए हैं। इन दशावतारों में महात्मा बुद्ध के स्थान पर बलराम का चित्र उकेरा गया है।
बूंदों का आकार तय करता है बारिश
मंदिर से टपकने वाली पानी की बूंदों का रहस्य अनोखा है। भीषण गर्मी में गुंबद की शिलाओं से इन बूंदों का टपकना और बरसात आते ही सूख जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। 15 दिन पहले ही मंदिर में टपकने वाली पानी बूंदें मानसून आने का संकेत देती हैं। बुजुर्गों के मुताबिक तो इन बूंदों का आकार बताता है कि मानसून अच्छा रहेगा या कमजोर। बीते सैकड़ों वर्षों से लोग इस मंदिर की बूंदों से ही मानसून का आकलन कर फसल बोआई करते थे।
बौद्ध स्तूप जैसा दिखता है मंदिर
जगन्नाथ मंदिर बाहर से बौद्ध स्तूप जैसा दिखता है। हालांकि इस वैष्णव मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ की मुख्य प्रतिमा और शिल्पकला नागर शैली की हैं। इसलिए माना जाता है कि करीब 11वीं या 12वीं सदी में बना ये मंदिर ध्वस्त हो गया होगा। इसलिए किसी स्थानीय जमींदार ने इसकी मरम्मत करवाई होगी। ग्राम प्रधान के पति अखंड प्रताप सिंह बताते हैं कि ध्वस्त मंदिर के स्तंभों पर ही किसी स्थानीय जमींदार ने करीब 150 वर्ष पूर्व चूने-मिट्टी से मंदिर का बाह्य आकार तैयार कराया है। मंदिर की दीवारें 14 फीट मोटी हैं। अणुवृत्त आकार के मंदिर का भीतरी हिस्सा करीब 700 वर्ग फीट है। पूर्व मुखी द्वार के सामने प्राचीन कुआं और तालाब भी है।
निर्माण काल पर असमंजस
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर के निर्माण काल पर इतिहासकार एकमत नही हैं। कुछ इतिहासकार इसे दूसरी से 11वीं शताब्दी के मध्य का मानते हैं लेकिन गर्भगृह के भीतर व बाहर का चित्रांकन दूसरी से चौथी शताब्दी का होने की गवाही देता है। वीएसएसडी कालेज के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ.अनिल मिश्र मंदिर के बाहर निॢमत मोर व चक्र के निशान देख मंदिर के चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल का होने की पुष्टि करते हैं लेकिन मंदिर के द्वार पर स्थापित अयाग पट्ट को देख कुछ इतिहासकार इसे 2000 ईसा पूर्व की संस्कृति से जोड़ते हैं। हालांकि इतिहास के अन्य जानकार कहते हैं कि मंदिर का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार या गहरवाल राजाओं के कार्यकाल का लगता है इसलिए संभवत:यह 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच बना होगा।
बूंदों का वैज्ञानिक मत
आइआइटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. डीपी मिश्रा मंदिर के विशेष डिजाइन को इसकी वजह मानते हैं। प्राचीन भारत पर अनेक शोध कर चुके प्रो. मिश्रा कहते हैं कि मंदिर की डिजाइन ऐसी है कि जब मानसून आने वाला होता है तो तेज गर्मी और वाष्प के कारण यहां पानी निकल आता है।
इनका ये है कहना
इन मंदिरों का निरीक्षण किया था। वाकई ये पर्यटकों को आकर्षित करने वाले हैं। इन्हें पर्यटन के नक्शे पर उभारने के लिए पर्यटन विभाग से जानकारी मांगी है। उसी अनुरूप यहां का विकास कराया जाएगा। - राजशेखर मंडलायुक्त कानपुर मंडल