आज के दिन गांधी जी ने कानपुर में छोड़ा कांग्रेस का अध्यक्ष पद, फिर रखा था मौन व्रत
महात्मा गांधी 23 दिसंबर 1925 को राष्ट्रीय अधिवेशन में कानपुर आए थे और सरोजनी नायडू को अध्यक्ष पद सौंप दिया था। ग्वालटोली और नवाबगंज के बीच के मैदान में अधिवेशन का आयोजन हुआ था। बापू ने सिर्फ स्वदेशी प्रदर्शनी के उद्धाटन को पुण्य कार्य बताया था।
कानपुर, जेएनएन। आज से 95 साल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कानपुर की धरती पर ही कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ा था। उन्होंने सरोजनी नायडू को यह पद सौंपा था। उसके बाद कानपुर में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन सरोजनी नायडू की अध्यक्षता में ही हुआ था।
कर्नाटक के बेलगाम में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए महात्मा गांधी कानपुर में 23 दिसंबर 1925 को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ही कानपुर आए थे। 24 दिसंबर से यहां पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू होना था। अधिवेशन के पहले दिन 24 दिसंबर को उन्होंने अध्यक्ष पद सरोजनी नायड़ू को सौंप दिया। यह अधिवेशन 24 से 26 दिसंबर तक चला। 24 दिसंबर को ही गांधी जी ने स्वदेशी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। उस प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा था कि वह इसे एक पुण्य कार्य मानते हैं।
उस सप्ताह अधिवेशन में 30 सम्मेलन होने थे और सरोजनी नायडू ने उन्हें इन सभाओं का सभापति पदग्रहण करने के लिए भी कहा था लेकिन महात्मा गांधी ने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि वह खुद को केवल स्वदेशी की प्रदर्शनी का उद्घाटन करने के योग्य ही मानते हैं। महात्मा गांधी ने इस स्वदेशी प्रदर्शनी की अनुमति उसी स्थिति में दी थी जब उन्होंने साफ कर दिया था कि इस प्रदर्शनी में कोई विदेशी वस्तु नहीं होगी।
उन्होंने प्रदर्शनी में कहा कि बहुत से लोगों ने खादी के प्रति सहानुभूति भी दिखाई और प्रतिज्ञा भी ली लेकिन खादी नहीं पहनी। इसलिए एक वर्ष में स्वराज नहीं हासिल हो सका। सरोजनी नायडू को भी अध्यक्ष पद सौंपते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके काल मेें हमारी स्थिति और अच्छी हो जाए और जो बादल मंडरा रहे हैं वे छिन्न भिन्न हो जाएं। यहीं 28 दिसंबर को उन्होंने मौन व्रत भी रखा था।
दो माह पहले शुरू हुई थी तैयारी
कांग्रेस के 1925 के अधिवेशन की तैयारियां शहर में दो माह पहले शुरू हो गई थीं। 1,600 गज लंबी और 1,000 गज चौड़ी जगह को अधिवेशन के लिए चुना गया था और इसका उद्घाटन 25 अक्टूबर 1925 को मोतीलाल नेहरु ने किया था। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के नाम पर इसका नामकरण तिलक नगर किया था।