Coronavirus Effect: बकरीद पर भी मदरसों को होगा करोड़ों का घाटा, कम कुर्बानी का पड़ेगा सीधा असर
रमजान में जकात और बकरीद पर कुर्बानी से निकली खाल बेचकर होने वाली आय से मदरसों का खर्च चलता है।
कानपुर, [मोहम्मद दाऊद खान]। कोरोना के बढ़ते मामलों और लॉकडाउन के बीच ईद उल अजहा (बकरीद) पर नमाज और कुर्बानी को लेकर असमंजस है। कुर्बानी कम होने का असर मदरसों के संचालन पर पड़ेगा। कोरोना व लॉकडाउन की वजह से चमड़े की कीमत भी आधी हो चुकी है। रमजान में पहले ही मदरसों को इमदाद न न मिल सकी, अब बकरीद में भी ऐसे ही हालात हैं। ऐसे में मदरसों के संचालन को लेकर प्रबंधन परेशान है।
शहर में छोटे व बड़े लगभग 500 मदरसे हैं। मदरसा बाहर से आए छात्रों की शिक्षा के साथ ठहरने और खाने की व्यवस्था भी प्रबंधन करता है। बड़े मदरसों में प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च होता है। कई मदरसों का खर्च ही कुर्बानी से निकली खाल (क'चा चमड़ा) को बेच कर होने वाली आय तथा रमजान में फितरा व जकात की धनराशि से चलता है। साल भर मदरसों के प्रबंधक रमजान और बकरीद का इंतजार करते हैं।
कई मदरसों में तो सामूहिक कुर्बानी का इंतजाम भी किया जाता है। शहर में होने वाली कुर्बानी की खालों को एकत्र करने के लिए कलेक्शन सेंटर बनाए जाते हैं। कुर्बानी से हासिल खालों को टेनरियों में बेच कर मदरसों पर खर्च किया जाता है। लॉकडाउन की वजह से फिलहाल न तो किसी मदरसे में सामूहिक कुर्बानी का इंतजाम हो सका है, न पोस्टर-बैनर के जरिए खाले मदरसों में देने का प्रचार किया जा रहा है। मदरसों को रमजान में पहले ही बहुत कम एक चौथाई ही इमदाद मिल सकी है। कारोबार प्रभावित होने से मदरसों को पहले की तरह चंदा भी नही मिल पा रहा है।
ये कहना है इनका
- लॉकडाउन की वजह से बड़े जानवर की खाल की कीमत 500 से घट 100-250 रुपये रह गई है तो बकरे की खाल 100 से 10-20 रुपये पर आ गई है। व्यापारी भी नहीं आ रहे हैं, जिससे चमड़ा उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। -हाजी फरहत हुसैन, चमड़ा व्यवसायी
- ज्यादातर लोग कुर्बानी की खाले मदरसों को दान कर देते हैं। आय के लिए मदरसे भी कुर्बानी कराते हैं। इस वर्ष लॉकडाउन की वजह से असमंजस है। सरकार की तरफ से सामूहिक कुर्बानी को लेकर कोई गाइड लाइन भी जारी नहीं की गई है। कम कुर्बानी का असर मदरसों के संचालन पर पड़ेगा। -हाजी मोहम्मद सलीस, महासचिव, ऑल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल